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गुलबर्ग सोसायटी केस में कोर्ट का फैसला- 36 बरी, 24 आरोपी दोषी करार

साल 2002 के गोधरा कांड के बाद गुलबर्ग सोसायटी में हुए दंगों के मामले में एक विशेष एसआईटी कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए 24 आरोपियों को दोषी करार दिया है।

By kishor joshiEdited By: Updated: Thu, 02 Jun 2016 03:29 PM (IST)
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अहमदाबाद। साल 2002 के गोधरा कांड के बाद गुजरात के चर्चित गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड मामले में एक स्पेशल एसआईटी कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। विशेष अदालत के न्यायाधीश पीबी देसाई ने फैसला सुनाते हुए 24 आरोपियों को दोषी करार दिया जबकि 36 आरोपियों को बरी कर दिया गया है। अदालत 6 जून को आरोपियों की सजा का एलान करेगी।

फरवरी 2002 में गोधरा कांड के बाद उत्तेजित लोगों ने गुलबर्ग में कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसान जाफरी सहित 69 लोगों को मार डाला था। अदालत में 22 सिंतबर 2015 से आठ माह तक इस मामले की सुनवाई चली। इस मामले की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत से 31 मई तक फैसला सुनाने को कहा था।

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66 गिरफ्तार, 335 गवाह, 3000 दस्तावेज

गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड गुजरात दंगों के उन 10 बड़े दंगों में है, जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की बनाई एसआईटी ने की थी। इस मामले की सुनवाई 2009 से शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित एसआईटी ने गुलबर्ग सोसायटी मामले में 66 लोगों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार लोगों में नौ जमानत पर हैं, जबकि शेष 14 वर्षों से सलाखों के पीछे हैं। एसआइटी ने मामले में 335 गवाह व 3000 दस्तावेज पेश किए। गुलबर्ग हत्याकांड में 28 फरवरी 2002 को 39 लोगों के शव गुलबर्ग सोसायटी में मिले थे। अन्य 30 लोगों के शव नहीं मिलने पर 7 साल बाद उन्हें मृत मान लिया गया। मृतकों में पूर्व कांग्रेसी सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे जो वहां रहते थे।


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जानिए, गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार और अदालती कार्यवाही में कब क्या हुआ?

  • 28 फरवरी, 2002- गोधराकांड के एक दिन बाद, यानी 28 फरवरी को 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी जहां पर अधिकांश मुस्लिम परिवार रहते थे, वहां पर उत्तेजित भीड़ ने हमला किया गया। शाम होते- होते यहां कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया। 39 लोगों के शव बरामद हुए जबकि कई गायब भी हुए जिन्हें बाद में मृत मान लिया गया। कुल मौतों का आंकडा 69 था और मृतकों में कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे।
  • 8 जून, 2006- एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज की जिसमें इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई मंत्रियों और 62 अन्य लोंगो को ज़िम्मेदार ठहराया गया लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया।
  • अक्टूबर, 2007- तहलका पत्रिका ने एक एक स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमें विश्व हिंदू परिषद और बंजरग दल के 14 लोगों सहित तत्कालीन भाजपा विधायक हर्ष भट्ट, जो उस समय बजरंग दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे वो हत्याओं को अंजाम देने की बात कर रहे थे।
  • 3 नवंबर, 2007- जकिया जाफरी ने इस मामले को लेकर गुजरात हाईकोर्ट से संपर्क किया लेकिन हाईकोर्ट ने शिकायत लेने से मना कर दिया और कहा कि कि पहले वो मजिस्ट्रेट कोर्ट में मामले को ले जाए।
  • 26 मार्च, 2008- सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े मामलों की जांच के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को आदेश दिया जिनमें गुलबर्ग का मामला भी था। कोर्ट ने पूर्व सीबीआई निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता में जांच के लिए एक एसआईटी बनाई।
  • सितंबर 2009- ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई (ट्रायल) शुरू हुई।
  • 27 मार्च 2010- नरेंद्र मोदी को एसआईटी ने ज़किया की फरियाद के संदर्भ में समन किया और गुलबर्ग सोसायटी सहित एहसान जाफरी की हत्या के मामले में उन पर लगे आरोपों के मामले में पूछताछ की।
  • मार्च 2010- विशेष लोक अभियोजक आर के शाह निचली अदालत के न्यायाधीश तथा एसआईटी पर यह आरोप लगाते हुए ईस्तीफा दे दिया कि वे आरोपी पर नरमी बरत रहे हैं जिसके बाद इस केस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा थी।
  • दिसंबर 2010- जकिया जाफरी सहित अन्य पीड़ित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दाखिल करते हुए कोर्ट से आग्रह किया कि एसआईटी 30 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करे।
  • मार्च 2011- सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को न्यायविद् राजू रामचंद्रन द्वारा व्यक्त की गई शंकाओं पर ध्यान देने को कहा।
  • 18 जून, 2011- रामचंद्रन ने अहमदाबाद का दौरा किया और गवाहों तथा उन अन्य लोगों से मुलाकात की जिसके आधार पर एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार की।
  • जुलाई 2011- न्यायविद् राजू रामचन्द्रन ने इस रिपोर्ट पर अपना नोट सुप्रीम कोर्ट में रखा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय लिया कि रिपोर्ट को गोपनीय रखा जाएगा और कोर्ट ने गुजरात सरकार व एसआईटी को रिपोर्ट देने से इनकार कर दिया।
  • सितंबर 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला ट्रायल कोर्ट पर छोड़ा कि क्या मोदी या अन्य से पूछताछ की जा सकती है।
  • 8 फरवरी 2012 - एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की।
  • 10 अप्रैल 2012- मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष रखी गई एसआईटी रिपोर्ट में माना गया कि तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी की इस नरसंहार में कोई भूमिका नहीं है।

इस मामले में अभी तक ट्रायल के दौरान चार लोगों की मौत हो चुकी है। इस नरसंहार मामले में अभी तक 338 से ज्यादा लोगों की गवाही हो चुकी है। सितंबर 2015 में ही इस मामले का ट्रायल खत्म हो गया था।

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