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..दुल्हन तो चाहिए पर बेटियां नहीं बचाते हरियाणवी

भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का वोट के बदले कुंवारों की शादियां कराने संबंधी बयान भले ही राजनीतिक रूप से तूल पकड़ गया है, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य में कुंवारों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसके लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं हरियाणा के लोग ही दोषी हैं। उन्हें दुल्हनें तो चाहिए

By Edited By: Updated: Tue, 08 Jul 2014 08:21 AM (IST)
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चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का वोट के बदले कुंवारों की शादियां कराने संबंधी बयान भले ही राजनीतिक रूप से तूल पकड़ लिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि हरियाणा में कुंवारों की तादाद बढ़ती जा रही है। इसके लिए कोई दूसरा नहीं बल्कि स्वयं हरियाणा के लोग ही दोषी हैं। उन्हें दुल्हनें तो चाहिए पर कोख में पलने वाली बेटियां बचाना मंजूर नहीं है।

प्रदेश में गिरता लिंग अनुपात कुंवारेपन की प्रमुख जड़ है। सुप्रीम कोर्ट की 2006 की हिदायतों के बावजूद राज्य में कन्या भ्रूण हत्या रोकने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हुए हैं। राज्य में करीब 15 हजार अल्ट्रासाउंड मशीनें काम कर रही हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के कागजों में इनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक है। हाई सोसायटी के लोग ब्लड की जांच के जरिये लिंग जांच करा लेते हैं, लेकिन मध्यम वर्ग के लोग अल्ट्रासाउंड के जरिये पता लगाकर कन्या भ्रूण को पनपने का मौका नहीं देते। राज्य में एक हजार लड़कों के पीछे 879 लड़कियों का लिंग अनुपात है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के मुताबिक है। आज एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या 850 से 860 तक रह गई है। आबादी के लिहाज से प्रदेश में 32 लाख लड़कियों का अंतर है। यानि कुंवारों की बड़ी फौज तैयार हो चुकी है। इस वर्ग में कोई भी राजनीतिक उलट-फेर करने का पूरा माद्दा है।

भाजपा ने लपका मुद्दा

कुंवारे लड़कों की शादियों का मुद्दा पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में उठा था। राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता जींद जिले की बीबीपुर पंचायत के सरपंच सुनील जागलान ने अविवाहित पुरुष संगठन का गठन कर पहली बार कुंवारे लड़कों की शादियों का मुद्दा चुनाव में उठाया था। बीबीपुर पंचायत ने गांव की दीवारों पर लिखवा दिया था कि जो राजनीतिक दल कन्या भ्रूण हत्या रोकने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाएगा, उसे वोट देने पर विचार किया जाएगा। तब इसे हल्के में लिया गया था, लेकिन आज भाजपा ने इस मुद्दे को लपकने में देर नहीं लगाई।

झुलसाएगा बिहार कनेक्शन

जानकार बताते हैं कि इस मामले में भाजपा से कुछ चूक हुई है। वह बिहार विशेष का नाम लिए बगैर इस समस्या के प्रति अपना रुख स्पष्ट कर सकती थी, मगर बिहार कनेक्शन जोड़कर धनखड़ ने स्वयं के लिए तो परेशानी खड़ी की ही, साथ ही अपनी पार्टी के दूसरे नेताओं की दिक्कतें भी बढ़ा दी हैं। धनखड़ हालांकि सफाई दे चुके हैं कि वे दूसरे राज्यों से खरीद-फरोख्त कर लड़कियां लाने की बजाय वैध ढंग से हरियाणा के कुंवारे लड़कों की शादियां कराने के पक्षधर हैं और यही बयान उन्होंने दिया भी था, मगर इस अति संवेदशनील मसले ने सामाजिक बहस के लिए माहौल जरूर बना दिया है। राष्ट्रीय जनता दल, शिवसेना और जनता दल यूनाइटेड ने भाजपा की टिप्पणी को हाथों-हाथ लेते हुए उसे कठघरे में खड़ा कर दिया है।

खरीदकर लाई जाती हैं लड़कियां

हरियाणा में पश्चिम बंगाल, असम, उत्तराखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों से लड़कियां खरीदकर लाई जाती हैं। पांच हजार से 40 हजार रुपये तक में इनकी खरीद होती है। दृष्टि नामक संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इसका खुलासा किया है। ऐसी लड़कियों के लिए यहां कोड वर्ड भी है। उन्हें पारो कहा जाता है। धर्म परिवर्तन के बाद क्रिश्चियन बनने वाली लड़कियां भी खरीदी-बेची जाती हैं। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि बिना सामाजिक रीति-रिवाजों के ब्याह कर लाई गई ऐसी लड़कियां धोखाधड़ी से भी नहीं चूकतीं। वे कुछ दिन रहने के बाद न केवल भाग जाती हैं बल्कि अपने राज्यों में वापस जाकर धन की चाह में मुकदमेबाजी तक कर देती हैं। चिंतनीय पहलू यह भी है कि कई नादान लड़कियों को अधेड़ उम्र के लोगों के चुंगल में रहना मजबूरी हो जाती है। खरीद फरोख्त के बाद उन्हें गुलामों सरीखी जिंदगी जीनी पड़ती है। गठवाला व चौगामा खाप समेत खाप पंचायतों की चिंता राज्य में बिगड़ रहे सामाजिक ताने-बाने को सुधारने की है।

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