Move to Jagran APP

पर्यावरण मंजूरी में गड़बड़ी का आरोप

नए उद्योगों को दी जाने वाली पर्यावरण मंजूरी के मामले में भारी गड़बड़ियां हो रही हैं। बड़ी कंपनियां इस तरह की मंजूरी हासिल कर कीमती जमीन, पानी और लाइसेंस पर अपना कब्जा जमा रही हैं।

By Edited By: Updated: Thu, 22 Sep 2011 10:35 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नए उद्योगों को दी जाने वाली पर्यावरण मंजूरी के मामले में भारी गड़बड़ियां हो रही हैं। बड़ी कंपनियां इस तरह की मंजूरी हासिल कर कीमती जमीन, पानी और लाइसेंस पर अपना कब्जा जमा रही हैं। यह दावा है गैर सरकारी संगठन विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र [सीएसई] का। संगठन की प्रमुख सुनीता नारायण ने इस आधार पर मांग की है कि फिलहाल जब तक इन गड़बड़ियों को पूरी तरह दुरुस्त नहीं कर लिया जाता, नए उद्योगों को यह मंजूरी देना पूरी तरह बंद कर दिया जाए। साथ ही उन्होंने सरकार से इस पूरे मामले पर श्वेत पत्र जारी करने को भी कहा है।

सीएसई ने मौजूदा पंचवर्षीय योजना की अवधि में दी गई वन और पर्यावरण मंजूरी के कुल आंकड़ों का अध्ययन किया है। नारायण ने कहा कि पिछले कुछ समय से उद्योग जगत के साथ ही सरकार और नियामक एजेंसियां भी लगातार यह प्रचार कर रही हैं कि पर्यावरण मंजूरी में होने वाली देरी की वजह से देश का विकास मंद हो रहा है, जबकि हकीकत यह है कि पिछले तीन साल के दौरान पर्यावरण मंजूरी के सिर्फ एक फीसदी आवेदनों और वन मंजूरी के सिर्फ छह फीसदी आवेदनों को ठुकराया गया है।

1981 के बाद से नई परियोजनाओं को दी गई मंजूरी के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान एक चौथाई वन भूमि इन परियोजनाओं को सौंप दी गई है। पिछले पांच साल के दौरान यह रफ्तार दोगुनी हुई है। इसी तरह जहां 11वीं और 12वीं पंचवर्षीय योजना को मिला कर कुल डेढ़ लाख मेगावाट अतिरिक्त ताप बिजली हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था, वहीं अगस्त 2011 तक ही 2.1 लाख मेगावाट ताप बिजली परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। इसके बावजूद हकीकत में सिर्फ 32 हजार मेगावाट ताप बिजली ही हमें मिल पाई है। यही स्थिति दूसरी तरह की योजनाओं की भी है।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर