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'नमो इच्छा', अब गृह मंत्रालय में हिंदी में होगा कामकाज, भड़के करुणानिधि

गृह मंत्रालय में अब सभी कामकाज हिंदी में होंगे। इसके अलावा इंटरनेट व सोशल मीडिया में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य होगा। सबसे अधिक हिंदी का प्रयोग करने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। गृह मंत्रालय ने ये कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उठाए हैं। इस बीच, डीएमके प्रमुख क

By Edited By: Updated: Thu, 19 Jun 2014 04:52 PM (IST)
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नई दिल्ली। गृह मंत्रालय में अब सभी कामकाज हिंदी में होंगे। इसके अलावा इंटरनेट व सोशल मीडिया में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य होगा। सबसे अधिक हिंदी का प्रयोग करने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। गृह मंत्रालय ने ये कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उठाए हैं। इस बीच, डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने गृह मंत्रालय के इस कदम की तीखी आलोचना की है।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी निर्देश के अनुसार सभी पीएसयू और केंद्रीय मंत्रालयों के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट पर हिंदी को अनिवार्य कर दिया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार की इच्छा है कि उसके अधिकारी हिंदी में ट्वीट करें और साथ ही फेसबुक, गूगल, ब्लॉग्स वगैरह में भी इसका इस्तेमाल करें।

गौरतलब है कि 27 मई को गृह मंत्रालय द्वारा लिखे एक पत्र के अनुसार सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों के लिए हिंदी भाषा का इस्तेमाल अनिवार्य माना गया है। पत्र में कहा गया था कि सरकारी अधिकारियों को अपने कमेंट अंग्रेजी के अलावा हिंदी में भी पोस्ट करने होंगे। कुल मिलाकर उनसे हिंदी को वरीयता देने का कहा गया है। पत्र में कहा गया है कि इस निर्देश को सभी विभागों के संज्ञान में लाया जाए।

करुणानिधि ने की कड़ी आलोचना

चेन्नई। डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने हिंदी में कामकाज को अनिवार्य करने को लेकर केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने एक बयान में कहा कि केंद्र सरकार का यह कदम गैर हिंदीभाषी लोगों को दूसरे दर्जे के नागरिक मानने की कोशिश नजर आ रहा है। अपने बयान में करुणानिधि ने सवाल उठाया है, भाषा की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हिंदी विरोधी आंदोलन इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। क्या हम नेहरू के उस आश्वासन को भूल सकते हैं कि जब तक गैर हिंदी भाषी लोग चाहेंगे, अंग्रेजी ही देश की आधिकारिक भाषा होगी। करुणानिधि ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गैर हिंदी भाषी लोगों पर हिंदी थोपने के बजाय देश के आर्थिक और सामाजिक विकास पर ध्यान देना चाहिए।

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