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दुर्लभ ग्रंथ में छिपा अश्व विज्ञान का खजाना

प्राचीन काल में परिवहन के पूरक रहे घोड़ों की नई पहचान नमूदार हुई है। संवत 1616 में रचित दुर्लभ अश्व विज्ञान पुस्तक में दोहा, चौपाई और सोरठा के माध्यम से 32 प्रकार के अश्वों की जानकारी सामने आई है। यह चौंकाने वाला तथ्य है। वह इस लिए कि अभी तक नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इक्वाइन्स [एनआरसीई] घोड़

By Edited By: Updated: Sun, 16 Feb 2014 11:52 AM (IST)
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शाहजहांपुर, [आशीष त्रिपाठी]। प्राचीन काल में परिवहन के पूरक रहे घोड़ों की नई पहचान नमूदार हुई है। संवत 1616 में रचित दुर्लभ अश्व विज्ञान पुस्तक में दोहा, चौपाई और सोरठा के माध्यम से 32 प्रकार के अश्वों की जानकारी सामने आई है। यह चौंकाने वाला तथ्य है। वह इस लिए कि अभी तक नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर इक्वाइन्स [एनआरसीई] घोड़ों की मात्र छह प्रजाति ही सामने ला सका है। करीब साढ़े चार सौ साल पुरानी पुस्तक को जीएफ कॉलेज में प्राणि विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवप्रताप सिंह ने इस पुस्तक को हिंदी और अंग्रेजी में अनुदित किया और सहेजा है। पुस्तक में घोड़ों के लक्षण, खानपान, बीमारियों के साथ मंत्रों के माध्यम से उपचार का भी वर्णन है। राजा पुवायां की सेना के प्रमुख सेनापति श्रवण सिंह के पूर्वज चेतन चंद्र सिंह व कुशल सिंह ने यह ग्रंथ फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी दिन बुधवार संवत 1616 [सन् 1560] को संपूर्ण किया था। डॉ. शिवप्रताप को यह पुस्तक उनके दादा पृथ्वीराज सिंह से मिली। एनआरसीई ने घोड़ों को स्थानीयता के आधार पर मारवाड़ी, काठियावाड़ी, स्पीती, जेन्सकेरी, मणिपुरी, भूटिया छह वगरें में बांटा है। जबकि अश्व ज्ञान के क्षेत्र में समृद्ध धरोहर की प्रतीक इस किताब में घोड़ों को खानपान, व्यवहार व बनावट के आधार पर वर्गीकृत है।

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देश में थे 32 नस्ल के घोड़े

ग्रंथ में दोहा, चौपाई और सोरठा के जरिए 32 प्रकार के अश्व दर्शाए गए हैं। जैसे ऊंट के समान दांत वाले अश्व को शुतरदंदान, बिच्छू जैसी पूंछ वाले घोड़े को अकरब, फूल के आकार के पंजे वाले गुलदस्त घोड़े आदि-आदि..। ग्रंथ में वर्गीकरण के अतिरिक्त अश्व के जन्म आधारित लक्षण, अड़ियल अश्व पर नियंत्रण, बीमारियों एवं उपचार का वर्णन है। संपूर्ण ग्रंथ में 78 पृष्ठ हैं। जिनमें 46 में पाठ्य तथा 32 पृष्ठ पर हस्तरेखांकित चित्र हैं।

विदेशी भी नई खोज पर फिदा

असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवप्रताप सिंह ने दुर्लभ ग्रंथ के प्रकाशन के लिए उप्र हिंदी संस्थान लखनऊ के अतिरिक्त कई प्रकाशन केंद्रों से संपर्क साधा लेकिन निराशा हाथ लगी। हालांकि ग्रंथ को कई विदेशी विद्वानों की सराहना मिली है।

यूनिवर्सिटी आफ घेंट, बेल्जियम के प्रोफेसर ओडबर्ग ने अश्व के व्यवहार पर अध्ययन के लिए आमंत्रित किया है। इसके अलावा पेरिस यूनिवर्सिटी, जर्मनी के कोस्तांज क्रूजर, अफ्रीका के प्रोफेसर फिलिप शेलिया ने ज्ञान साझा करने का सुझाव दिया।