गुजरात में कांग्रेस के मुर्दे का जागना भारत के लिए खतरे की घंटी: शिवसेना
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुमत की सरकार बनने के डेढ़ वर्ष के बाद आए राजनीतिक बदलावाें पर शिवसेना ने चिंता जाहिर की है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने वाली भाजपा ने बिहार में जबरदस्त हार देखी । लेकिन
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 04 Dec 2015 12:20 PM (IST)
मुंबई। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुमत की सरकार बनने के डेढ़ वर्ष के बाद आए राजनीतिक बदलावाें पर शिवसेना ने चिंता जाहिर की है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि लोकसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने वाली भाजपा ने बिहार में जबरदस्त हार देखी । लेकिन गुजरात के निकाय चुनाव में उसका हार का मुंह देखना उसके लिए खतरे की घंटी जरूर है।
सामना में लिखा गया है कि इन चुनावों में जहां खात्मे के कगार पर पहुंची कांग्रेस एक बार फिर से उठ खड़ी हुई वहीं मोदी के गुजरात में भाजपा निकाय चुनाव जीत कर भी हार गई। इसकी वजह यह थी कि 31 में से 21 जिला परिषदों में कांग्रेस के प्रत्याशियों की निर्विवाद जीत हुई है। इसका अर्थ यह है कि राज्य में कांग्रेस का मुर्दा जाग गया है। यह भाजपा के लिए अच्छी खबर नहीं है।शिवसेना ने पाकिस्तान को बताया दोमुंहा सांप, कहा- बचकर रहे भारत संपादकीय में लिखा है कि बिहार में प्रधानमंत्री ने कई चुनावी रैलियां की लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। जबकि बिहार में लोकसभा के दौरान भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था। वहीं गुजरात में भी कमोबेश यही हाल रहा।पत्र के मुताबिक भाजपा के लिए यह गंभीर विचार का विषय है कि आखिर केंद्र में मोदी सरकार बनने के डेढ़ वर्ष बाद ही ऐसा क्यों हुआ है। हालांकि पत्र लिखता है कि इन चुनावों में पा टीदार आंदोलन का भी असर साफ देखने को मिला है।
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पत्र के संपादकीय में केंद्र सरकार को महंगाई पर अंकुश न लगा पाने के लिए आड़े हाथों लिया है। संपादकीय में कहा गया है कि गुजरात में भाजपा की सरकार होने के बाद अरहर जैसी दाल के भाव आसमान छू रहे हैं। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही हाल है। सामना लिखता है कि गुजरात के निकाय चुनाव यह बताते हैा कि राज्य में सभी लोग भाजपा के साथ नहीं हैं। इस विषय पर भाजपा के साथ संघ को भी सोचना होगा।
पत्र के संपादकीय में केंद्र सरकार को महंगाई पर अंकुश न लगा पाने के लिए आड़े हाथों लिया है। संपादकीय में कहा गया है कि गुजरात में भाजपा की सरकार होने के बाद अरहर जैसी दाल के भाव आसमान छू रहे हैं। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी कमोबेश यही हाल है। सामना लिखता है कि गुजरात के निकाय चुनाव यह बताते हैा कि राज्य में सभी लोग भाजपा के साथ नहीं हैं। इस विषय पर भाजपा के साथ संघ को भी सोचना होगा।