Move to Jagran APP

भारत-पाक के बीच कब-कब हुई बातचीत, क्यों नहीं चढ़ सकी परवान?

भारत-पाकिस्तान के बीच कई बार बातचीत हुई ताकि आपसी रिश्तों को बेहतर बनाया जा सके। लेकिन, जितने भी बार प्रयास किए गए नतीजा सार्थक नहीं रहा।

By Rajesh KumarEdited By: Updated: Mon, 25 Apr 2016 09:58 PM (IST)
Hero Image

नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान अपने संबंधों को एक बार फिर से नई दिशा देने के लिए भले ही विदेश सचिव स्तर की वार्त कर समस्या का हल ढूंढने का प्रयास कर रहो हों लेकिन हकीकत यही है कि दोनों देशों का संबंध विभाजन के बाद से ही काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है।

भारत-पाक के बीच 4 लड़ाईयां

कश्मीर को लेकर दोनों ही देश एक दूसरे के खिलाफ लगातार आग उगलते रहे हैं और पाकिस्तान की तरफ से कई बार भारत पर हमला कर इसे हड़पने की भी कोशिश की गई हालांकि, वे नाकाम रहे। भारत और पाकिस्तान अब तक चार बार लड़ाईयां लड़ चुके हैं। पहली लड़ाई 1947, दूसरी लड़ाई 1965, तीसरी लड़ाई 1971 और 1999 में चौथी लड़ाई करगिल वॉर के रूप में लड़ी गई।

कई बार बातचीत लेकिन नतीजा सिफर

ऐसा नहीं है कि दोनों देशों ने आपसी कटुता को दूर करने के कोई प्रयास नहीं किए। भारत की तरफ स लगातर कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान से मधुर संबंध बनाए जाने के प्रयास किए जाते रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार के साथ भारत हमेशा एक साकारात्मक रवैये के साथ बात करना चाहा लेकिन वहां के कट्टरपंथी संगठनों और वहां के सैन्य दबाव के चलते दोनों देशों के बीच होते मधुर संबंध खटास में बदल गए।

ये भी पढ़ें- पाक के विदेश सचिव कल आएंगे भारत, पठानकोट मामला उठाए जाने की उम्मीद

वाजयेपी ने की दोस्ती की पहल

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए फरवरी 1999 में लाहौर बस यात्रा की और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीस से मुलाकात की।

मई-जून 1999 में हुआ करगिल युद्द

भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में करगिल को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा जब पाकिस्तान के तरफ से भारत के पीठ के छूरा घोंपने की कोशिश की गई एक तरफ तत्लानी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तरफ लाहौर बस यात्रा कर रिश्ते सामान्य बनाने की कोशिश की गई तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत के साथ दगा किया। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है।

पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। पाकिस्तान ने दावा किया कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी।

2001 राष्ट्रपति मुशर्रफ का आगरा दौरा

जुलाई 2001 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जरनल परवेज़ मुशर्रफ की आगरा में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बातचीत हुई। लेकिन, ये बातचीत बेनतीता ही रही।

संसद पर हमले ने बढ़ाई पाक से तनानती

दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर चरमपंथियों ने हमला कर दिया। जिसके बाद दोनों देशों के बनते रिश्तों में ऐसी कड़वाहट आ गई कि दोनों तरफ से सीमा पर करीब दस लाख सेनाओं को तैनात कर दिया गया।
फिर जनवरी 2004 में पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ की भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इस्लामाबाद में मुलाकात हुई और दोनों देशों के बीच समग्र वार्ता शुरू हुई। उसके बाद सितंबर 2004 में दोनों देशों के विदेशमंत्रियों की नई दिल्ली में बैठक हुई।

काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले ने घोला जहर

फरवरी 2005 में भारत के प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तान के प्रशासित कश्मीर के बीच बस सेवा की शुरूआत की गई। लेकिन जुलाई 2008 में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में भारतीय दूतावास पर चरमपंथी हमला हुआ। भारत ने इसके लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की जिम्मेदार ठहराया और रिश्ते फिर खराब हुए।

ये भी पढ़ें- आतंकियों के लिए पाकिस्तान व खाड़ी देशों से कश्मीर पहुंच रहा है हवाला का धन

मुंबई हमले के बाद फिर खराब हुए रिश्ते

26 नवंबर 2008 को मुंबई हमला हुआ जिसमें करीब 166 लोगों की मौत हो गई और भारत ने इसके लिए जमात-उद-दावा के चीफ हाफिज सईद को जिम्मेदार ठहराते हुए पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कठघड़े में खड़ा करने की कोशिश की। हालांकि, फरवरी 2009 में अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान ने मुंबई हमले की जांच शुरू की और पहली बार ये माना का मुंबई हमले की साचिश पाकिस्तान से ही रची गई थी। इस बात का भारत की तरफ से स्वागत किया गया। जिसके बाद जून 2009 में भारतीय पीएम मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के बीच शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन(एससीओ) की बैठक के दौरान मुलाकात हुई।

जुलाई 2009 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की पाक के तत्कालनी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से बात हुई जिसमें आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर चर्चा की गई। फरवरी 2010 में भारत ने पाकिस्तान को बातचीत के लिए एक बार फिर से न्यौता दिया। 28 अप्रैल 2010 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के बीच भूटान की राजधानी थिंपू में सार्क सम्मेलन के दौरान द्विपक्षीय बातचीत हुई। और दोनों तरफ से अपने राजनयिकों को बातचीत आगे बढ़ाने के निर्देश दिए गए।

फिर फरवरी 2011 में तत्लानी भारतीय विदेश सचिव निरूपमा राव ने पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर से थिंपू में मुलाकात की और दोनों ही देशों ने सभी आठ मुद्दों पर बातचीत करने का फैसला किया। 26 जुलाई 2011 को तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश सचिव सलमान बशीर और भारतीय विदेश सचिव सलमान बशीर की नई दिल्ली में मुलाकात हुई। उसके बाद 27 जुलाई 2011 को पाकिस्तान की विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार की भारतीय विदेशमंत्री एस.एम.कृष्णा के साथ नई दिल्ली में बातचीत हुई।

लांसनायक हेमराज और सुधाकर सिंह की हत्या

हालांकि, एक बार फिर दोनों देशों के बीच तल्खी तब आई जब 13 राजपूताना रायफल्स के लांस नायक हेमाराज और लांस नायक सुधाकर सिंह की 8 जनवरी 2013 को चौकसी करते वक्त पाकिस्तान सैनिकों ने घात लगाकर निर्दयता पूर्वक हत्या कर दी और उनके सिर को अलग कर लेकर चले गए।


पीएम मोदी की नवाज शरीफ से हुई पांच बार मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और पाकिस्तान के उनके समकक्षीय नवाज शरीफ के बीच आपसी रिश्ता बेहद सामान्य है इसका संकेत उस वक्त देखने को मिला जब मोदी के बुलावे पर उनके शपथग्रहण समारोह में 27 मई 2014 को नवाज शरीफ दिल्ली आए थे। इस मौके पर पीएम मोदी ने नवाज शरीफ के सामने आतंकवाद समेत कई मुद्दों पर चर्चा की और पाकिस्तान की धरती से चल रहे आतंकवाद को खत्म करने को कहा।

काठमांडू में मोदी-नवाज की दूसरी मुलाकात

इसके बाद दोनों देशों के पीएम की मुलाकात नवंबर 2014 में नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान हुआ। यह सम्मेलन पाकिस्तान द्वारा भारत समर्थित प्रस्तावों को ठुकराने की वजह से नाकाम माना जाने लगा था। हुआ यह था कि पीएम मोदी और शरीफ ने सम्मेलन शुरू होने के बाद से ही न सिर्फ एक-दूसरे से दूरी बनाए रखी, बल्कि आमना-सामना होने के बावजूद एक-दूसरे से नजरें बचाते भी दिखे थे। बाद में सार्क सम्मेलन की समाप्ति पर काठमांडू के बाहर धुलीखेल में आयोजित अनौपचारिक रिट्रीट के दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने हाथ मिलाकर एक-दूसरे का अभिवादन जरूर किया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हुई।

उफा में मोदी-नवाज की तीसरी मुलाकात

उसके बाद तीसरी मुलाकात दोनों के बीच उफा में जुलाई 2015 में शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइजेशन(एससीओ) के दौरान हुई जो करीब एक घंटा तक चली। इस बैठक में दोनों देशों के बीच कई मुद्दों पर आपसी सहमति बनी।

पेरिस में मोदी-नवाज की चौथी मुलाकात

चौथी मुलाकात दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच नवंबर 2015 में पेरिस में उस वक्त हुई जब मोदी वहां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे।

लाहौर में मोदी-नवाज की पांचवीं मुलाकात

जबकि पांचवी मुलाकात दोनों के बीच उस वक्त हुई जब पीएम मोदी अफगानिस्तान से नई दिल्ली आते वक्त सीधे लाहौर जाकर सबको चौंका दिया। लाहौर जाकर मोदी वहां नवाज शरीफ की मां और उनके परिवार से मुलाकात की। लेकिन, पठानकोट हमले ने एक बार फिर से दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ाकर रख दी।

पठानकोट हमले ने बढ़ाई दूरी

शुरुआती कार्यक्रमों के अनुसार ये वार्ता 15 जनवरी को पाकिस्तान में होना तय था। पाकिस्तान के आंतकी संगठन जेश-ए-मोहमम्द द्वारा 2 जनवरी को पठानकोट एयरबेस पर हुए आंतकी हमले के बाद वार्ता की स्थिति आसमान्य हो गई थी। बाद में भारत की तरफ से वार्ता स्थगित कर दी गई थी। भारत ने इस मामले में पाकिस्तान से जैश प्रमुख मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी की मांग की थी। जिस पर पाक नवाज शरीफ ने पीएम मोदी को फोन कर उचित कार्रवाही करने का आश्वाशन दिया था।

हमले के बाद नवाज ने पठानकोट की जांच के लिए पंजाब (पाकिस्तान) के एडिशनल आईजी राय ताहिर की अगुवाई में 6 सदस्यीय जांच दल का गठन किया। इसमें पुलिस, आईएसआई, आईबी और एमआई के अधिकारियों को शामिल किया गया था। हालाकी इसके बाद भारत की तरफ से विदेश प्रवक्ता विकास स्वरूप ने साफ कर दिया था कि मामले पर पाकिस्तान द्वारा किसी कड़े कदम के बाद ही भारत वार्ता को आगे बढ़ाएगा।

जिसके बाद नेपाल के पोखरा में 17 मार्च को विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष सरताज अजीज से द्विपक्षीय वार्ता की थी। वार्ता में पाक विशेष जांच टीम के भारत आने की बात पर मुहर लगी और 27 मार्च की तारीख चुनी गई। 27 मार्च को भारत आई पांक जांच दल ने भारतीय एंजेंसियों की मदद से सभी सबूतों
की जांच की। पाक दल पठानकोट भी गया था।

हालांकि, पाक जांचदल ने वापस पाकिस्तान जाकर पलटी मार ली थी। जिसके बाद 7 मार्च को भारत में पाकिस्तानी राजदूत अब्दुल बासित ने प्रेस वार्ता कर द्विपक्षीय संधि वार्ता पर विराम लगाने के संदेश दिए थे। हालांकि, भारतीय विदेश मत्रांलय ने इस बात पर पाकिस्तान की तरफ से किसी बी आधिकारिक पुष्टी होने से एतराज जताया था।

22 अप्रैल को पाकिस्तान के विदेश प्रवक्ता नफीस जकारिया ने कहा कि भारत जब भी तैयार होगा पाकिस्तान उससे वार्ता करने के लिए तैयार है।