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महाराष्ट्र में थमी सियासी कलह

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राजग और संप्रग की जंग से पहले दोनों धड़ों का आपसी घमासान थम गया है और घटक दल फिर से दोस्त बनकर मोर्चा संभालने की तैयारी में जुट गए हैं। टूट की कगार से वापस आकर भाजपा और शिवसेना ने सीटों के बंटवारे पर फिर से बात शुरू कर दी है। यह और बात है कि पुरानी दोस्ती को बचाने के लिए नए और छोटे दोस्तों को कुर्बानी देनी होगी। दूसरी तरफ, यह भी लगभग तय हो गया है कि अलग-अलग चुनाव लड़ने की बात कर रही कांग्रेस और एनसीपी के बीच बुधवार तक समझौते का ऐलान हो जाएगा। बुधवार शाम या गुरुवार सुबह तक उम्मीदवारों की घोषणा भी हो सकती है। भाजपा और शिवसेना ने पहले ही अधिकतर सीटों के लिए सूची बना ली है। 27 सितंबर नामांकन की अंतिम तिथि है।

By Edited By: Updated: Wed, 24 Sep 2014 01:12 AM (IST)
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जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राजग और संप्रग की जंग से पहले दोनों धड़ों का आपसी घमासान थम गया है और घटक दल फिर से दोस्त बनकर मोर्चा संभालने की तैयारी में जुट गए हैं। टूट की कगार से वापस आकर भाजपा और शिवसेना ने सीटों के बंटवारे पर फिर से बात शुरू कर दी है। यह और बात है कि पुरानी दोस्ती को बचाने के लिए नए और छोटे दोस्तों को कुर्बानी देनी होगी। दूसरी तरफ, यह भी लगभग तय हो गया है कि अलग-अलग चुनाव लड़ने की बात कर रही कांग्रेस और एनसीपी के बीच बुधवार तक समझौते का ऐलान हो जाएगा। बुधवार शाम या गुरुवार सुबह तक उम्मीदवारों की घोषणा भी हो सकती है। भाजपा और शिवसेना ने पहले ही अधिकतर सीटों के लिए सूची बना ली है। 27 सितंबर नामांकन की अंतिम तिथि है।

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर शुरू हुई सीटों की मारामारी ने भाजपा और शिवसेना को दो ऐसे छोर पर खड़ा कर दिया था, जहां वार्ता की पहल भी मुश्किल होने लगी थी। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हस्तक्षेप और शिवसेना के नरम पड़े रुख और बहुत कुछ मजबूरी ने गठबंधन बचा लिया। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बीच संवाद हुआ तो भाजपा की 130 सीटों की मांग को खारिज कर चुके शिवसेना नेताओं ने मुंबई में भाजपा कार्यालय जाकर फिर से वार्ता शुरू की। दोनों दलों के नेताओं ने पहली बार यह भी स्पष्ट कर दिया कि सीटों पर बातचीत हो जाएगी। कोई भी दल गठबंधन तोड़ना नहीं चाहता है। राजग के दूसरे छोटे सहयोगियों से बातचीत कर सीटों का बंटवारा हो जाएगा।

फिलहाल माना जा रहा है कि भाजपा को 126 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है। जबकि शिवसेना अभी भी 150 पर अड़ी है। ऐसे में आरपीआइ, राष्ट्रीय समाज पक्ष, स्वाभिमानी पक्ष और शेतकारी संगठन जैसे दूसरे छोटे सहयोगियों को महज 12 सीटों से संतोष करना होगा, जो फिलहाल मुश्किल लग रहा है। ऐसे में संभव है कि शिवसेना पर थोड़ी और सीटें छोड़ने का दबाव बढ़ेगा। संभव है कि कुछ दल बगावत भी करें। बहरहाल, यह तय है कि भाजपा और शिवसेना की दोस्ती बरकरार रहेगी। मुख्यमंत्री पद को लेकर पुराना फार्मूला ही बरकरार रहेगा। इसके अनुसार जिसके खाते में ज्यादा सीटें होंगी, मुख्यमंत्री उसी का होगा।

राजग का कुनबा बचे रहने का संप्रग को फायदा हो सकता है। खासकर कांग्रेस अब दबाव से थोड़ा बाहर आकर बातचीत करेगी। राजग की एकजुटता के बाद कांग्रेस और एनसीपी भी अकेले मैदान में उतरना नहीं चाहेगी। मंगलवार को घंटों चली दोनों दलों की बैठक में सीटों को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका। लेकिन माना जा रहा है कि बुधवार तक अंतिम फैसला हो जाएगा। अब तक 114 सीटों पर चुनाव लड़ती रही एनसीपी ने कांग्रेस से इस बार बराबरी का दर्जा मांगा था। लोकसभा चुनाव के बाद पस्तहाल कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए इससे अच्छा अवसर भी नहीं था। कांग्रेस ने अब तक उसे 124 सीटों का प्रस्ताव दिया है। एनसीपी की ओर से दबाव बरकरार है, लेकिन कांग्रेस ने थोड़ा कड़ा रुख अख्तियार कर गठबंधन बचाने की जिम्मेदारी एनसीपी पर डाल दी है। माना जा रहा है कि बुधवार तक फार्मूला तैयार हो जाएगा।

'आज वरकरी समाज के कुछ लोग मेरे घर आए और चुनाव में शिवसेना को समर्थन देने की घोषणा की। मेरे लिए लोगों का यह प्यार ही बहुत है। महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने की मेरी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।'

-उद्धव ठाकरे, शिवसेना प्रमुख

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