अमेरिका के वायुमंडलीय और पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के चार सदस्यीय एक दल ने एक अध्ययन इस बात को जानने के लिए किया है कि अगर सीमित स्तर पर क्षेत्रीय परमाणु युद्ध का आगाज हो जाए तो क्या होगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की कल्पना करते हुए दुनिया पर उसके दुष्प्रभाव का आकलन करने की कोशिश
By Edited By: Updated: Mon, 21 Jul 2014 10:02 AM (IST)
नई दिल्ली। अमेरिका के वायुमंडलीय और पर्यावरणीय वैज्ञानिकों के चार सदस्यीय एक दल ने एक अध्ययन इस बात को जानने के लिए किया है कि अगर सीमित स्तर पर क्षेत्रीय परमाणु युद्ध का आगाज हो जाए तो क्या होगा। इसके लिए वैज्ञानिकों ने भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध की कल्पना करते हुए दुनिया पर उसके दुष्प्रभाव का आकलन करने की कोशिश की है। वैज्ञानिकों का मानना है कि हालांकि इस तरह से किसी भी दो देशों को बीच ऐसी कल्पना गलत है। चूंकि भारत और पाकिस्तान परमाणु क्लब के देशों में शामिल होने वाले सबसे छोटे जखीरे वाले देश हैं। अगर इनके बीच युद्ध होने पर यह भयावह दृश्य हो सकता है तो महाशक्तियों के बीच जंग की तस्वीर को तो सोचा भी नहीं जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने इस शोध के कंप्यूटर मॉडल तैयार करके उस हालात की भयावह तस्वीर देखने की कोशिश की है। यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल 'अर्थ फ्यूचर' के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। भयावह परिणामों पर एक नजर ..
विभीषिका : - पारमाणु विस्फोटों के तुरंत बाद पांच मेगाटन ब्लैक कार्बन वायुमंडल में प्रवेश कर जाएगा। ब्लैक कार्बन चीजों के जलने के बाद उत्पन्न होता है और यह धरती पर पहुंचने से पहले सूर्य की ऊष्मा को सोख लेता है।
- एक साल के बाद धरती का तापमान करीब दो डिग्री फॉरेनहाइट गिर जाएगा। पांच साल बाद धरती औसतन आज की तुलना में तीन डिग्री ठंडी हो जाएगी। हालांकि बीस साल बाद फिर से इसका तापमान एक डिग्री बढ़ जाएगा। फिर भी यह परमाणु युद्ध के पहले की स्थिति से ठंडी ही रहेगी। - पृथ्वी के गिरते तापमान के चलते इस पर होने वाली बारिश की मात्रा कम हो जाएगी। जंग के पांच साल बाद सामान्य की तुलना में बारिश में नौ फीसद कमी आ जाएगी। 26 साल बाद धरती पर परमाणु युद्ध होने से पहले की स्थिति से 4.5 फीसद कम बरसात होगी।
जंग : वैज्ञानिकों की टीम ने यह परिकल्पित किया कि अगर भारतीय उपमहाद्वीप में 100 परमाणु हथियार गिरा दिए जाएं और प्रत्येक परमाणु बम आकार और मारक क्षमता में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर गिराए गए बम यानी 16 किलोटन के बराबर हो तो कैसा भयावह मंजर होगा। - जंग के 2 से 6 साल के भीतर फसली चक्र 10 से 40 दिन छोटा हो जाएगा। यह क्षेत्र पर निर्भर करेगा। - वायुमंडल में होने वाली रासायनिक क्रियाएं धरती को सूरज की पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत को खत्म कर देंगी। जंग के पांच साल बाद ओजोन परत 20-25 फीसद पतली हो जाएगी। हालांकि दस साल बाद तक इसमें कुछ सुधार आएगा लेकिन तब भी इसकी मोटाई सामान्य की तुलना में 8 फीसद कम ही रहेगी। - पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा स्तर में कमी होने के चलते लोगों में सन बर्न और त्वचा के कैंसर जैसे रोग बढ़ेंगे। पौधों की वृद्धि प्रभावित होगी तो कुछ फसलों के डीएनए [डी ऑक्सी राइबो न्यूक्लियक एसिड] अस्थिर हो जाएंगे। - करीब दो अरब लोग भूखे रहने पर अभिशप्त हो सकते हैं।
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