अमेरिका से युद्ध हुआ तो उत्तर कोरिया की आग में चीन का झुलसना तय
उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव को कम करने का सिर्फ एक ही उपाय है उसको वार्ता के लिए राजी करना। क्योंकि यदि युद्ध हुआ तो इसकी आग में चीन भी झुलसेगा।
अधिक परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम
हालांकि यहां पर यह साफकर देना भी सही होगा कि इस मिसाइल से सीधेतौर पर अमेरिका को कम ही खतरा है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच करीब दस हजार किमी की दूरी है। लेकिन यहां पर एक बात और अहम है और वह यह कि जिस मिसाइल का परीक्षण इस बार उत्तर कोरिया ने किया है वह अधिक दूरी तक ज्यादा परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। उत्तर कोरिया की मंशा अधिक दूरी या फिर इंटरकोंटिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल बनाना है जिसकी दूरी कम से कम सात हजार किमी की होनी चाहिए। इसको हासिल कर पाना फिलहाल उत्तर कोरिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
चीन से उम्मीद
बहरहाल, इस तनाव के बीच अमेरिका समेत सभी देशों को एक देश से ढेर सारी उम्मीदें लगी हुई हैं। इस देश का नाम है-चीन। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चीन उत्तर कोरिया को खुलेआम अपना दोस्त बताता रहा है। उत्तर कोरिया के साथ चीन के 50 के दशक से ही व्यापारिक और राजनयिक संबंध हैं। इसके अलावा हाल के कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच व्यापार भी काफी बढ़ा है। यही वजह है कि चीन को लेकर अमेरिका भी शायद कुछ हद तक आश्वस्त है कि वह उत्तर कोरिया को बातचीत की मेज तक लाने में सफल हो पाएगा। बातचीत के संकेत अमेरिका की ओर से मिले हैं। लेकिन ताजा मिसाइल परीक्षण की वजह से फिर संशय के बाद मंडरा रहे हैं।
वार्ता के संकेत
वहीं सोमवार को इस बाबत कुछ और सकारात्मक संकेत उस वक्त मिले थे जब अमेरिका ने बातचीत के लिए कुछ शतों को तय करने की बात कही थी। इसके बाद उत्तर कोरिया ने भी कहा था कि यदि शर्त तय होती हैं तो वह भी वार्ता के लिए अपने नेता को भेजने के लिए तैयार है। जाहिर सी बात है कि यहां पर चीन की भूमिका काफी अहम हो जाती है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यदि युद्ध होता है तो उत्तर कोरिया की आग में चीन भी झुलस सकता है। इसका सीधा प्रभाव चीन पर भी देखने को मिलेगा। ऐसा इसलिए भी है कि चीन और उत्तर कोरिया की करीब 1500 किमी की सीमा एक दूसरे से मिलती है। यही वजह है कि चीन के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह युद्ध की आशंकाओं को दरकिनार कर हर हाल में इसका हल निकाले और उत्तर कोरिया को बातचीत की मेज तक लेकर आए।
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'उत्तर कोरिया को उसकी सुरक्षा के लिए आश्वस्त करना बेहद जरूरी है'-
प्रोफेसर अलका आचार्य, इंस्टिटयूट ऑफ चाइनीज स्टडीज, जेएनयू
विदेश मामलों की जानकार अलका आचार्य का मत है कि चीन के लिए यह राजनीतिक चुनौती भी है कि वह इसको सफलतापूर्वक अंजाम दे। इसके लिए बेहद जरूरी होगा कि चीन उत्तर कोरिया को उसकी सुरक्षा के लिए अाश्वास्त करे। इसमें उसकी कूटनीतिक और राजनीतिक परीक्षा भी होगी। अलका मानती हैं कि बिना सुरक्षा का अाश्वासन दिए यह संभव नहीं होगा कि उत्तर कोरिया वार्ता के लिए तैयार हो। वहीं उनका यह भी कहना है कि यह काम बेहद मुश्किल इसलिए भी है कि क्योंकि उत्तर कोरिया ने कई बार चीन को ही घेरने की भी कोशिश की है। लिहाजा यहां पर चीन को बेहद सावधानी के साथ कदम उठाने की जरूरत है। उनका साफ कहना है कि यदि युद्ध होता है तो इसकी आग चीन को भी झुलसा सकती है। इसकी वजह यह है कि दोनों देशों की सीमाएं आपस में मिलती हैं, युद्ध होने की सूरत में इसका खामियाजा चीन को भी बराबर उठाना पड़ेगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह किस तरफ है।
उत्तर कोरिया पर चारों और से वार्ता के लिए राजी करने का दबाव बनाया जाए'-
प्रोफेसर अलका आचार्य, इंस्टिटयूट ऑफ चाइनीज स्टडीज, जेएनयू
यह पूछे जाने पर कि युद्ध के हालात में क्या चीन उत्तर कोरिया से उस संधि को समाप्त कर लेगा जिसके तहत ऐसी स्थिति में एक दूसरे की मदद के लिए सेना भेजने का प्रवाधान है, उनका कहना था कि जिस वक्त यह हुई थी उस वक्त माहौल कुछ और था आज कुछ और है। आज यह संधि उतनी प्रासंगिक नहीं है जितनी उस वक्त थी, लिहाजा युद्ध की सूरत में चीन इससे पीछे भी हट सकता है। चीन के लिए ऐसे समय में अपने देश और अपने नागरिकों की सुरक्षा ज्यादा मायने रखेगी न कि उत्तर कोरिया। उत्तर कोरिया को रोकने के लिए अलका एक विकल्प उस पर दबाव बढ़ाने को भी मानती हैं।
'युद्ध हुआ तो इसकी आग में चीन का झुलसना तय है'-
प्रोफेसर अलका आचार्य, इंस्टिटयूट ऑफ चाइनीज स्टडीज, जेएनयू
उनका यह भी कहना है कि उत्तर कोरिया पर यदि अमेरिका, दक्षिण कोरिया, जापान समेत अन्य देश दबाव बनाएंगे तो वह वार्ता की मेज पर आ सकता है। लेकिन इसमें भी कुछ मुश्किलें जरूर हैं। विदेश मामलों की जानकार होने की हैसियत से वह दक्षिण चीन सागर और उत्तर कोरिया को अलग-अलग मानती हैं। उनके मुताबिक उत्तर कोरिया के मुद्दे पर अमेरिका का साथ देना चीन के लिए अमेरिका के दबाव में आना नहीं होगा। चीन के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनाैती उत्तर कोरिया को वार्ता की मेज पर लाना है, यही उसके हित में भी है और वक्त की मांग भी यही है, क्योंकि युद्ध हुआ तो इसकी आग में चीन का झुलसना लगभग तय है।
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