दूध के लिए दुधारू पशुओं को दिये जा रहे इंजेक्शन के असर की होगी जांच
दूध में कथित तौर पर धीमा जहर मिश्रित करने वाले इंजेक्शन को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इसे ध्यान में लेते हुए सरकार ने गहन जांच कराने का फैसला लिया है।
By anand rajEdited By: Updated: Sun, 12 Jun 2016 12:54 AM (IST)
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। दूध निकालने के लिए दुधारू पशुओं को दिए जा रहे इंजेक्शन के असर की जांच सरकार कराएगी। ऐसे इंजेक्शन से निकाले गए दूध का मानव सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव की भी जांच की जाएगी। दूध में कथित तौर पर धीमा जहर मिश्रित करने वाले इंजेक्शन को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं। इसे ध्यान में लेते हुए सरकार ने गहन जांच कराने का फैसला लिया है।
आक्सीटोसिन एक विवादित हार्मोनल ड्रग है, जिसका दुरुपयोग दुधारू पशुओं और बागवानी में कुछ फसलों पर धड़ल्ले से किया जा रहा है। दूध, फल और सब्जियों में इसके बढ़ते प्रयोग को लेकर शिकायतें मिलती रही हैं। इसके विपरीत ज्यादातर राज्यों में इसकी जांच की प्रयोगशालाएं तक नहीं हैं। इस तरह के इंजेक्शन की सबसे अधिक मांग डेयरी में होती है। ज्यादातर राज्यों में आक्सीटोसिन दवा की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं है।ये भी पढ़ेंः इन क्षणों में सुन्न होता है महिलाओं का नर्वस सिस्टमः सर्वे केंद्रीय पशुधन व डेयरी मंत्रालय ने देशभर के प्रमुख अनुसंधान संस्थानों के आला अफसरों की उच्च स्तरीय बैठक बुलाई थी। बैठक में गाय व भैंस को इंजेक्शन लगाकर दूध निकालने की जांच सहित कई अहम फैसले लिए गए। जानकारों का मानना है कि इससे दुधारू पशुओं से औसत से अधिक दूध निकालने में सफलता मिलती है। करनाल के नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट की देखरेख में इंजेक्शन से दूध निकालने और मानव सेहत पर इसके असर की जांच कराई जाएगी। बैठक की अध्यक्षता पशुधन व डेयरी सचिव देवेंद्र चौधरी ने की।
ये भी पढ़ेंः जन्म से विचित्र बीमारी की शिकार है ये बच्ची, जानकर हैरान रह जाएंगे आप इसके अलावा जिन प्रमुख विषयों पर फैसला लिया गया, उनमें भैंस के बच्चों के युवा होकर बच्चा देने लायक होने में लगने वाली अवधि में कटौती प्रमुख है। देसी प्रजातियों की भैंस व गायों को प्रोत्साहित करने और उनके विकास पर जोर देने का फैसला लिया गया है। बैठक में देश में खुरपका व मुंहपका की संक्रामक बीमारी से निपटने वाली वैक्सीन के असर पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। बैठक में कहा गया कि इस दिशा में तेजी से असरदार अनुसंधान की जरूरत है। इसके लिए शोध व विकास संस्थानों को अपने कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिया गया।