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केदारनाथ में परंपराएं ही सर्वोपरि: महाराजा टिहरी

गोपेश्वर, जागरण संवाददाता। केदारनाथ में पूजा को लेकर रावल भीमाशंकर लिंग और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बीच जारी विवाद में हस्तक्षेप करते हुए टिहरी महाराजा मनुजयेंद्र शाह ने कहा है कि पूजा को लेकर केदारनाथ में परंपराएं ही सर्वोपरि हैं। परंपराओं का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। महाराजा टिहरी ने साफ किया कि वे स्वयं केदारनाथ जाकर स्थानीय लोगों व पुजारियों से बात करेंगे।

By Edited By: Updated: Fri, 28 Jun 2013 07:14 PM (IST)

गोपेश्वर, जागरण संवाददाता। केदारनाथ में पूजा को लेकर रावल भीमाशंकर लिंग और शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बीच जारी विवाद में हस्तक्षेप करते हुए टिहरी महाराजा मनुजयेंद्र शाह ने कहा है कि पूजा को लेकर केदारनाथ में परंपराएं ही सर्वोपरि हैं। परंपराओं का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए। महाराजा टिहरी ने साफ किया कि वे स्वयं केदारनाथ जाकर स्थानीय लोगों व पुजारियों से बात करेंगे।

केदारनाथ में पूजा को लेकर शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की टिप्पणी को रावल भीमाशंकर लिंग शिवाचार्य ने दुखद बताया है। उन्होंने कहा कि वह इस मसले पर दक्षिण भारत में भ्रमण करेंगे और धर्म संसद बुलाकर चर्चा करेंगे।

बदरीनाथ व केदारनाथ धाम में टिहरी महाराजा के धार्मिक अधिकार निहित हैं। रावल के रूप में वीर शैव लिंगायत संप्रदाय के जंगम लिंगी ब्राहमणों को केदारनाथ धाम में पूजा का अधिकार टिहरी महाराजा ने ही दिया था। अंग्रेजों ने केदारनाथ, बदरीनाथ मंदिर के संचालन के लिए समिति जरूर बनाई, लेकिन इसके बाद भी इन मंदिरों में राजा के धार्मिक अधिकार सुरक्षित हैं। केदारनाथ में आज भी रावल को तिलक का अधिकार टिहरी महाराजा को है। इसी तिलक के बाद मंदिर समिति से चयनित रावल को केदारनाथ की गद्दी में बैठने का अधिकार मिलता है। तिलक परंपरा के अनुसार रावल को पगड़ी, वस्त्र व सोने के कंगन आदि दान देने की परंपरा है। गढ़वाल के करीब तीन सौ से अधिक मंदिरों के संरक्षण का अधिकार टिहरी राज परिवार के पास है।

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