Move to Jagran APP

इकोफ्रेंडली संग्रहालय बना भारत कला भवन

संग्रहालय पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए होती हैं। आमतौर पर यह सोचा भी नहीं जा सकता है कि पीली या तेज रोशनी बिखरने वाले बल्ब या हैलोजन से भी इन थातियों को नुकसान पहुंच सकता है। इस बारीक पहलू पर देश के प्रतिष्ठित संग्रहालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित

By manoj yadavEdited By: Updated: Mon, 29 Dec 2014 08:31 PM (IST)
Hero Image

वाराणसी। संग्रहालय पुरातात्विक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए होती हैं। आमतौर पर यह सोचा भी नहीं जा सकता है कि पीली या तेज रोशनी बिखरने वाले बल्ब या हैलोजन से भी इन थातियों को नुकसान पहुंच सकता है। इस बारीक पहलू पर देश के प्रतिष्ठित संग्रहालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित भारत कला भवन के विशेषज्ञों का ध्यान गया। विमर्श में तथ्य सामने आया कि पुरातात्विक धरोहरों पर तेज रोशनी पडऩे से उनकी नैसर्गिक आभा पर भी असर पड़ता है।

बेहद धीमी और लंबी इस प्रक्रिया को आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता है। लिहाजा छोटी-छोटी कवायदों के बड़े फैसले लिए गए। अब कला भवन इको फ्रेंडली संग्रहालय बन चुका है। यहां आपको परेशान करने वाली भारी भरकम हैलोजन लाइटें नहीं मिलेंगी। कम वोल्टेज खपत की अच्छी रोशनी देने वाले एलईडी बल्ब का फोकस दर्शकों को सुकून देता है।

बिना एसी के वातानुकूलन

भारत कला भवन की एक खासियत यह भी है कि यहां किसी भी वीथिका में एयर कंडीशन नहीं है। सभी एसी निकाल दिए गए हैं। सभी वीथिकाएं इस कदर व्यवस्थित हैं कि यहां हमेशा हवा का आवागमन होता है। पर्यटकों व इतिहास के जिज्ञासुओं को कोई दिक्कत नहीं होती।

कलाओं का संरक्षण

संग्रहालय के निदेशक प्रो. एके सिंह बताते हैं कि हैलोजन लाइटों से वस्तुओं पर खराब असर होता है। इनके बल्बों से क्लोरो फ्लोरो कार्बन, नाइट्रोजन आदि का उत्सर्जन होता है। यह तत्व पेंटिंग, ऐतिहासिक पत्थर, कपड़े आदि को नुकसान पहुंचाते हैं।

70 हजार कम हुआ बिल

संग्रहालय के सुपरवाइजर डा. आरएन सिंह के अनुसार संग्रहालय से पीली रोशनी वाले बल्ब व एसी हटवाने से भारत कला भवन का खर्च कम हो गया। उन्होंने बताया कि इस निर्णय से यहां का 70 हजार रुपये प्रतिमाह बिजली का बिल कम हो गया। इन कवायदों से यह पहला इकोफ्रेंडली संग्रहालय हो गया है।