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जानिए क्‍या है जीएसएलवी मार्क - 3

भारत ने मंगलयान के बाद अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाई है। आज आंध्र प्रदेश के श्रीहिकोटा में भारत में बना सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी एमके - 3 को लॉन्‍च किया गया।

By Jagran News NetworkEdited By: Updated: Thu, 18 Dec 2014 11:06 AM (IST)

नई दिल्ली। भारत ने मंगलयान के बाद अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाई है। आज आंध्र प्रदेश के श्रीहिकोटा में भारत में बना सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी एमके - 3 को लॉन्च किया गया।

जिओ सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी मार्क-3) यानी भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान का वजन 630 टन है और इसकी ऊंचाई करीब 42 मीटर है। इसकी खासियत है कि यह अपने साथ 4 टन का वजन ले जा सकता है। इसको बनाने में 160 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।

क्या होगा फायदा
इसके साथ ही अंतरिक्ष में इंसान को भेजने का भारत का सपना जल्द पूरा हो सकता है। फिलहाल रूस, अमेरिका और चीन के पास इंसान को अंतरिक्ष में भेजने की काबिलियत है। अब भारत भी इन देशों की लीग में शामिल हो गया है।

42.4 मीटर लंबे जीएसएलवी एमके-3 के मिशन के पूरे होने से इसरो को भारी सेटलाइट्स को उनकी कक्षा में पहुंचाने में मदद मिलेगी। जीएसएलवी एमके-3 की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसैट - 4 श्रेणी के 4,500 से 5,000 किलोग्राम वजनी भारी कम्युनिकेशन सैटलाइट्स को लॉन्च करने की दिशा में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाएगा। इससे अरबों डॉलर के कमर्शल लॉन्चिंग मार्केट में भारत की क्षमता में इजाफा होगा।

क्या है जीएसएलवी?
भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान होता है। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है।

रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 फीसद उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है।

जीएसएलवी की उपलब्धियां
- जीएसएलवी-एफ 06 ने 25 दिसंबर, 2010 को जीसैट-5पी का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।

- जीएसएलवी-डी 3 ने 15 अप्रैल, 2010 को जीसैट-4 का प्रक्षेपण किया जो असफल रहा।

- जीएसएलवी-एफ 04 ने 2 सितंबर, 2007 को इन्सेट-4 सीआर का सफल प्रक्षेपण किया गया।

- जीएसएलवी-एफ02 ने 10 जुलाई, 2006 को इन्सेट-4 सी का प्रक्षेपण किया गया लेकिन यह असफल रहा।

- जीएसएलवी-एफ 01 ने 20 सितंबर, 2004 को एडुसैट (जीसैट-3) का सफल प्रक्षेपण किया गया।

- जीएसएलवी-डी 2 ने 8 मई, 2003 को जीसैट-2 का सफल प्रक्षेपण किया गया।

- जीएसएलवी-डी 1 ने 18 अप्रैल, 2001 को जीसैट-1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।

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