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'NSG सदस्यता पर चीन से बातचीत जारी, NPT पर नहीं करेंगे दस्तखत'

सुषमा स्वराज ने सदन में कहा कि भारत सरकार चीन से मतभेदों को दूर करने का प्रयास कर रही है साथ ही हम कभी भी एनपीटी पर हस्‍ताक्षर नहीं करेंगे

By anand rajEdited By: Updated: Wed, 20 Jul 2016 09:21 PM (IST)
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नई दिल्ली (जेएनएन)। आज लोकसभा में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कर दिया है कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर भारत कभी दस्तखत नहीं करेगा। साथ ही कहा कि भारत निरस्त्रीकरण के लिए प्रतिबद्ध है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के भारत के प्रयासों में चीन की ओर से प्रक्रियागत बाधाएं खड़ी करने की बात को भी स्वराज ने स्वीकार किया।

स्वराज ने कहा कि चीन के साथ मतभेदों को दूर करने का प्रयास जारी है। लोकसभा में बुधवार को सुप्रिया सुले, सौगत बोस के पूरक प्रश्न के जवाब में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि मैंने पहले भी कहा था और आज भी कह रही हूं, सदन में कह रही हूं कि चीन ने एनएसजी में भारत की सदस्यता को लेकर प्रक्रियागत विषयों को उठाया था।

चीन ने कहा था कि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने वाला देश एनएसजी का सदस्य कैसे बन सकता है। इस तरह से चीन ने प्रक्रियागत बाधा खड़ी की। सुषमा ने अपने जवाब के दौरान कांग्रेस पर भी चुटकी लेते हुए कहा कि एक बार कोई नहीं माने तो हम यह नहीं कह सकते हैं वह कभी नहीं मानेगा। अब जीएसटी को ही ले लीजिए। सभी दल मान गए हैं, लेकिन हमारे कांग्रेस के मित्र नहीं मान रहे हैं। हम मनाने में लगे हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि हो सकता है कि कांग्रेस मान जाए और जीएसटी इसी सत्र में पास हो जाए।

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सुषमा स्वराज ने कहा कि 2008 में असैन्य परमाणु संबंधी जो छूट हमें मिली थी, उसमें एनपीटी का सदस्य बने बिना ही इसे आगे बढ़ाने की बात कही गई थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि हम एनपीटी पर कभी हस्ताक्षर नहीं करेंगे। लेकिन इसके लिए हमारी पूर्ण प्रतिबद्धता है। हम इसके लिए पूर्व की सरकार को भी श्रेय देते हैं।

2008 के बाद से छह वर्ष इस प्रतिबद्धता को पूर्व की सरकार ने पूरा किया और इसके बाद वर्तमान सरकार इस प्रतिबद्धता को पूरा कर रही है। विदेश मंत्री ने कहा कि एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत ने आधा अधूरा नहीं बल्कि भरपूर प्रयास किया। दुनिया में परमाणु हथियारों को रोकने के मकसद से 1 जुलाई, 1968 से नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी यानी परमाणु अप्रसार संधि की शुरुआत हुई थी।

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हालांकि इसे लागू 1970 में किया गया था। इसका उद्देश्य हथियारों के प्रसार पर रोक के साथ ही परमाणु परीक्षण पर भी लगाम लगाना है। अब तक इस संधि पर 190 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं। इनमें अमरीका, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और चीन जैसे परमाणु संपन्न देश भी शामिल हैं। जबकि भारत, इस्राइल, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान जैसे प्रमुख संप्रभुता संपन्न देशों ने इस पर साइन नहीं किए हैं।
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