जानें- आखिर क्या है भारत के प्रोजेक्ट 75 और प्रोजेक्ट 17, जिस पर खर्च हो रहे हैं खरबों
Project 75 और Project 17 भारतीय नौसेना के लिए बेहद खास हैं। यह न केवल इनकी क्षमता में इजाफा करेंगे बल्कि इसके जरिए भारत तकनीक में भी आगे बढ़ जाएगा।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 13 Sep 2019 05:53 AM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत लगातार अपनी सैन्य क्षमता में इजाफा कर रहा है। इसके तहत दूसरे देशों से रक्षा सौदे भी किए जा रहे हैं और भारत अत्याधुनिक तकनीक के हथियारों की खरीद भी कर रहा है। इसको लेकर भारत बेहद गंभीर है। इसकेअलावा भारत ने इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए दो अलग-अलग प्रोजेक्ट चलाए हुए हैं। इनका नाम प्रोजेक्ट 75 और प्रोजेक्ट 17 है।
प्रोजेक्ट 75
1997 में भारत ने रक्षा मंत्रालय ने 24 सबमरीन के अधिग्रहण करने का एक प्लान मंजूर किया था जिसको प्रोजेक्ट 75 का नाम दिया गया था। लेकिन सरकार ने दो वर्षों तक इसको ठंडे बस्ते में डाले रखा था। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सरकार की तरफ से केबिनेट कमेटी और सिक्योरिटी ने इसको मंजूरी दी थी। इसके तहत 30 वर्षों के अंदर दो पैरलल प्रोडेक्शन लाइन शुरू कर 12 सबमरीन का निर्माण करना था। आपको बता दें कि सरकार ने पुराने मसौदे को नए प्लान के साथ मंजूर किया था। इसके लिए प्रोजेक्ट 75 के तहत सबमरीन का निर्माण और प्रोजेक्ट 75I के तहत दूसरे विदेशी निर्माताओं से इसकी तकनीक का ट्रांसफर शामिल था। आईएनएस कलावरी प्रोजेक्ट 75I का ही हिस्सा थी। इस सबमरीन को दो वर्ष पहले भारतीय नौसेना को सौंपा गया था। छह डीजल इलेक्ट्री सबमरीन
मसौदे के तहत नौसेना को छह डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन का अधिग्रहण करना था। इसके लिए दो बड़ी शर्त रखी गई थीं। इसमें से पहली इन पनडुब्बियों में एडवांस्ड प्रपल्शन सिस्टम का लगा होना और अधिक दिनों तक पानी के अंदर बने रहने की काबलियत और इसकी रेंज का अधिक होना जरूरी था। इसके अलावा इन सभी को भारत में ही बनाया जानाथा। मंजूरी के बाद भी 2013 तक इस को इस पर उहापोह की स्थिति बनी रही। कभी इस संबंध में रिक्वेस्ट फॉर इंफोर्मेशन इश्यू किया गया तो कभी विदेश से सबमरीन इंपोर्ट करने की बात कही गई। इसको बनाने को लेकर भी सही मायने में कुछ तय नहीं हो सका था।
1997 में भारत ने रक्षा मंत्रालय ने 24 सबमरीन के अधिग्रहण करने का एक प्लान मंजूर किया था जिसको प्रोजेक्ट 75 का नाम दिया गया था। लेकिन सरकार ने दो वर्षों तक इसको ठंडे बस्ते में डाले रखा था। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सरकार की तरफ से केबिनेट कमेटी और सिक्योरिटी ने इसको मंजूरी दी थी। इसके तहत 30 वर्षों के अंदर दो पैरलल प्रोडेक्शन लाइन शुरू कर 12 सबमरीन का निर्माण करना था। आपको बता दें कि सरकार ने पुराने मसौदे को नए प्लान के साथ मंजूर किया था। इसके लिए प्रोजेक्ट 75 के तहत सबमरीन का निर्माण और प्रोजेक्ट 75I के तहत दूसरे विदेशी निर्माताओं से इसकी तकनीक का ट्रांसफर शामिल था। आईएनएस कलावरी प्रोजेक्ट 75I का ही हिस्सा थी। इस सबमरीन को दो वर्ष पहले भारतीय नौसेना को सौंपा गया था। छह डीजल इलेक्ट्री सबमरीन
मसौदे के तहत नौसेना को छह डीजल इलेक्ट्रिक सबमरीन का अधिग्रहण करना था। इसके लिए दो बड़ी शर्त रखी गई थीं। इसमें से पहली इन पनडुब्बियों में एडवांस्ड प्रपल्शन सिस्टम का लगा होना और अधिक दिनों तक पानी के अंदर बने रहने की काबलियत और इसकी रेंज का अधिक होना जरूरी था। इसके अलावा इन सभी को भारत में ही बनाया जानाथा। मंजूरी के बाद भी 2013 तक इस को इस पर उहापोह की स्थिति बनी रही। कभी इस संबंध में रिक्वेस्ट फॉर इंफोर्मेशन इश्यू किया गया तो कभी विदेश से सबमरीन इंपोर्ट करने की बात कही गई। इसको बनाने को लेकर भी सही मायने में कुछ तय नहीं हो सका था।
भारत में ही होगा निर्माण
2014 में डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल द्वारा ये तय किया गया कि सभी छह सबमरीन का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। इस पर 53000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था, जो 2018 तक बढ़कर 630 बिलियन हो गया था। इसके तहत सभी सबमरीन मझगांव डॉक, हिंदुस्तान शिपयार्ड, कोचिन शिपयार्ड में तो कुछ प्राइवेट पार्टनर के साथ मिलकर बनाई जानी थी। इसके निर्माण के लिए फ्रांस की कंपनी को आरएफआई भी इश्यू किया गया। इस वर्ष 40 हजार करोड़ का बजट इसके लिए रखा गया है। अप्रेल 2019 में ही इसको लेकर एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट इश्यू किया गया। इसके तहत सबमरीन को जमीन पर हमले के लिए और एंटी शिप क्रूज मिसाइल युक्त बनाना था। प्रोजेक्ट 17
भारतीय नौसेना को मजबूती देने के मकसद से ही प्रोजेक्ट 17A शुरू किया गया। इसके तहत शिवालिक क्लास की श्रेणी के युद्धपोत तैयार किए जाने हैं। यह युद्धपोत मझगांव और गार्डन रिज शिपबिल्डर एंडइंजीनियर्स बनाए जाने हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत 2017 में युद्धपोतों का निर्माण शुरूहुआ था। 2022 में इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय नौसेना को पहला युद्धपोत मिल जाएगा। हर एक युद्धपोत पर करीब चार हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह पूरा प्रोजेक्ट 6400 करोड़ रुपये का है। इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले युद्धपोतों में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके तहत युद्धपोतों अत्याधुनिक राडार सिस्टम, वैपंस प्लेटफॉर्म लगाना है।
2014 में डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल द्वारा ये तय किया गया कि सभी छह सबमरीन का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। इस पर 53000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था, जो 2018 तक बढ़कर 630 बिलियन हो गया था। इसके तहत सभी सबमरीन मझगांव डॉक, हिंदुस्तान शिपयार्ड, कोचिन शिपयार्ड में तो कुछ प्राइवेट पार्टनर के साथ मिलकर बनाई जानी थी। इसके निर्माण के लिए फ्रांस की कंपनी को आरएफआई भी इश्यू किया गया। इस वर्ष 40 हजार करोड़ का बजट इसके लिए रखा गया है। अप्रेल 2019 में ही इसको लेकर एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट इश्यू किया गया। इसके तहत सबमरीन को जमीन पर हमले के लिए और एंटी शिप क्रूज मिसाइल युक्त बनाना था। प्रोजेक्ट 17
भारतीय नौसेना को मजबूती देने के मकसद से ही प्रोजेक्ट 17A शुरू किया गया। इसके तहत शिवालिक क्लास की श्रेणी के युद्धपोत तैयार किए जाने हैं। यह युद्धपोत मझगांव और गार्डन रिज शिपबिल्डर एंडइंजीनियर्स बनाए जाने हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत 2017 में युद्धपोतों का निर्माण शुरूहुआ था। 2022 में इस प्रोजेक्ट के तहत भारतीय नौसेना को पहला युद्धपोत मिल जाएगा। हर एक युद्धपोत पर करीब चार हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह पूरा प्रोजेक्ट 6400 करोड़ रुपये का है। इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले युद्धपोतों में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके तहत युद्धपोतों अत्याधुनिक राडार सिस्टम, वैपंस प्लेटफॉर्म लगाना है।
छोड़ी जा सकेंगी ब्रह्मोस और बराक मिसाइलें
इसके अलावा इन्हें ऐसा इन्हें बराक और ब्रह्मोस मिसाइल छोड़ने लायक भी बनाना है। इस प्रोजेक्ट की एक और खासियत है, वो ये कि इन युद्धपोतों में कर्मियों की संख्या तो कम होगी लेकिन दुश्मन को खत्म करने की ताकत अधिक होगी। ऐसा करने से न केवल इसकी ऑपरेशनल कॉस्ट कम होगी बल्कि यह अपने मकसद में भी खरा उतर पाएंगे। इसके डैक से ही मिसाइलों को दागा जा सकेगा। यह युद्धपोत करीब 6670 टन वजनी होंगे। इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले युद्धपोतों में चार मझगांव डॉक लिमिटेडऔर तीन गार्डन रिच शिपबिल्डर एंड इंजीनियर्स, कोलकाता में बनेंगे। केबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने रक्षा मंत्रालयका प्रस्ताव स्वीकार कर इसको मंजूरी दे दी है। पहली बार हुआ जिक्र
आपको बता दें कि प्रोजेक्ट-17 का पहली बार जिक्र 2012 में किया गया था। इसके बाद दो युद्धपोतों के निर्माण को लेकर 2015 में एक समझौता भी हुआ। फरवरी 2017 में इन युद्धपोतों के निर्माण की स्टील कटिंग सरमनी हुई थी। 2016 में रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए 13000 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। 2018 में मिश्रधातु निगम लिमिटेड और जीआरएसई को भारत इलेक्टिॉनिक्स लिमिटेड ने सात बराक-8 एयर डिफेंस सिस्टम का कांट्रेक्ट दिया था। बीईएल ने इसको लेकर 777 मिलियन की डील इजराइल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री से की थी। चांद पर भारत के Vikram से 1134 Km. दूर है चीन का लैंडर, इतनी ही दूरी पर लगा है US Flag!
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इसके अलावा इन्हें ऐसा इन्हें बराक और ब्रह्मोस मिसाइल छोड़ने लायक भी बनाना है। इस प्रोजेक्ट की एक और खासियत है, वो ये कि इन युद्धपोतों में कर्मियों की संख्या तो कम होगी लेकिन दुश्मन को खत्म करने की ताकत अधिक होगी। ऐसा करने से न केवल इसकी ऑपरेशनल कॉस्ट कम होगी बल्कि यह अपने मकसद में भी खरा उतर पाएंगे। इसके डैक से ही मिसाइलों को दागा जा सकेगा। यह युद्धपोत करीब 6670 टन वजनी होंगे। इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले युद्धपोतों में चार मझगांव डॉक लिमिटेडऔर तीन गार्डन रिच शिपबिल्डर एंड इंजीनियर्स, कोलकाता में बनेंगे। केबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने रक्षा मंत्रालयका प्रस्ताव स्वीकार कर इसको मंजूरी दे दी है। पहली बार हुआ जिक्र
आपको बता दें कि प्रोजेक्ट-17 का पहली बार जिक्र 2012 में किया गया था। इसके बाद दो युद्धपोतों के निर्माण को लेकर 2015 में एक समझौता भी हुआ। फरवरी 2017 में इन युद्धपोतों के निर्माण की स्टील कटिंग सरमनी हुई थी। 2016 में रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए 13000 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। 2018 में मिश्रधातु निगम लिमिटेड और जीआरएसई को भारत इलेक्टिॉनिक्स लिमिटेड ने सात बराक-8 एयर डिफेंस सिस्टम का कांट्रेक्ट दिया था। बीईएल ने इसको लेकर 777 मिलियन की डील इजराइल एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री से की थी। चांद पर भारत के Vikram से 1134 Km. दूर है चीन का लैंडर, इतनी ही दूरी पर लगा है US Flag!
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