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खुली अदालत में बताए जा सकते हैं खाताधारकों के नाम

स्विट्जलैंड ने कहा है कि भारत के साथ कर संधि के तहत दी गई जानकारीमामले की कार्यवाही से दिगर किसी अदालत को नहीं दी जकती

By Sudhir JhaEdited By: Updated: Fri, 31 Oct 2014 08:19 AM (IST)
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नई दिल्ली/बर्न । स्विट्जलैंड ने कहा है कि भारत के साथ कर संधि के तहत दी गई जानकारी सैद्धांतिक रूप से 'विशिष्ट और प्रासंगिक'मामले की कार्यवाही से दिगर किसी कोर्ट या अन्य किसी निकाय को नहीं दी जा सकती। ये जानकारियां ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही खुली अदालतों और उनके फैसलों में जाहिर की जा सकती हैं।

यह बयान ऐसे समय में आया है, जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेष जांच दल [एसआईटी] भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों सहित विदेशों में छिपाए गए काले धन की जांच कर रही है। काले धन के स्वर्ग के रूप में कुख्यात स्विट्जरलैंड ने भारत से वादा किया है कि वह भारत के साथ सहयोग करेगा और टैक्स चोरी तथा वित्तीय अपराधों के मामलों में मांगी गई जानकारी समयबद्ध ढंग से उपलब्ध कराएगा। यदि वह जानकारी नहीं दे सकता है तो इसका कारण भी बताएगा। ऐसी 'गुप्त सूचनाओं' को उजागर करने की संधि के प्रावधानों के बारे में बात करते हुए स्विट्जरलैंड के वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि द्विपक्षीय कर संबंधी मामलों में दोनों देशों के अधिकारी नियमित संपर्क में रहते हैं।

उन्होंने संधि में गोपनीयता के प्रावधानों का हवाला देते हुए किसी खास मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

क्या है संधि के मुख्य प्रावधान

भारत में इस बात पर बहस चल रही है कि बिना मुकदमे के इन नामों को जाहिर करने से क्या विभिन्न देशों के साथ की गई कर संधि का उल्लंघन होगा। ये जानकारियां इन्हीं संधियों के जरिए हासिल की गई है। इस बारे में स्विस वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरे कराधान से बचने की संधि [डीटीए] में कहा गया है कि अनुबंध के पक्षकार देश द्वारा हासिल की गई जानकारी उसी तरह से 'गोपनीय' मानी जाएगी, जिस तरह से उस देश के घरेलू कानून के तहत हासिल जानकारी गोपनीय मानी जाती है।

संधि में आगे कहा गया है कि ऐसी कोई भी सूचना केवल उसी व्यक्ति या प्राधिकारी [कोर्ट और प्रशासनिक निकाय भी शामिल] को दी जा सकेगी, जो कर के आकलन या संग्रहण [सूचना], प्रवर्तन या अभियोजन से संबंधित हो अथवा जो कर से संबंधित अपीलों में निर्णय लेता हो।

प्रवक्ता ने कहा कि ऐसा व्यक्ति या प्राधिकारी केवल इन्हीं मकसद से इन सूचनाओं का इस्तेमाल कर सकेगा। वे ये सूचनाएं खुली अदालत में जाहिर कर सकते हैं या न्यायिक फैसलों में भी इनका जिक्र कर सकते हैं। इसी तरह से डीटीए के तहत हासिल सूचनाएं कोर्ट को केवल ऐसी परिस्थिति में दी जा सकती है, जहां वह टैक्स से संबंधित किसी विशिष्ट मामले की सुनवाई कर रही हो, जहां ये सूचनाएं देना प्रासंगिक हो। इसके विपरीत ये सूचनाएं सैद्धांतिक रूप से ऐसी किसी कोर्ट या किसी अन्य प्राधिकारी को नहीं दी जा सकती, जो इस तरह की कार्यवाही से इतर हो।

सुप्रीम कोर्ट को दिए हैं 627 नाम

सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को ही केंद्र सरकार ने ऐसे 627 लोगों की सूची सौंपी है, जिनके एचएसबीसी बैंक की स्विट्जरलैंड स्थित शाखा में खाते हैं। इन खातों में काला धन जमा होने की जांच की जा रही है। कोर्ट को ये नाम सीलबंद लिफाफे में दिए गए हैं, वहीं इसके एक दिन पहले सरकार ने आठ खाताधारकों के नाम सार्वजनिक किए थे।

2010 में हुई थी संधि

भारत और स्विट्जरलैंड के बीच दोहरे कराधान की संधि 2010 में हुई थी और अक्टूबर 2011 में प्रभावी हुई थी। उन्होंने कहा कि यह समझौता अतंराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है और इसमें केवल मांगने पर जानकारी देने का प्रावधान है।

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