राजनीतिक दबाव में सीबीआइ अपने आरोपपत्र में इशरत जहां और उसके साथियों को आतंकवादी नहीं बताने का फैसला किया है। जांच एजेंसी अदालत को यह बताएगी कि इशरत और उसके तीन साथियों को खुफिया ब्यूरो [आइबी] ने पहले तो दो-दिन हफ्ते तक गैरकानूनी हिरासत में रखा और उसके बाद गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया।
By Edited By: Updated: Wed, 03 Jul 2013 06:48 AM (IST)
नई दिल्ली [नीलू रंजन]। राजनीतिक दबाव में सीबीआइ अपने आरोपपत्र में इशरत जहां और उसके साथियों को आतंकी नहीं बताने का फैसला किया है। जांच एजेंसी अदालत को यह बताएगी कि इशरत और उसके तीन साथियों को खुफिया ब्यूरो [आइबी] ने पहले तो दो-दिन हफ्ते तक गैरकानूनी हिरासत में रखा और उसके बाद गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया। बाद में क्राइम ब्रांच ने इन सभी को फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया। सीबीआइ के शुरुआती आरोपपत्र में इशरत और उसके साथियों को आतंकी बताया गया था, लेकिन उच्च अधिकारियों के दबाव में अब इसे हटाया जा रहा है।
इशरत जहां की और खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें इशरत और उसके साथियों को आतंकी नहीं बताने के बारे में पूछे जाने पर सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि गुजरात हाई कोर्ट ने उन्हें केवल मुठभेड़ की जांच तक सीमित रहने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि हमें इशरत के आतंकी होने या न होने की जांच से हाई कोर्ट ने रोक दिया है। इसीलिए आरोपपत्र में इसका उल्लेख नहीं करने का फैसला किया गया है। उनके अनुसार पहले दो पाकिस्तानियों को अहमदाबाद में तैनात आइबी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार ने अपनी हिरासत में लिया और इसके बाद इशरत और जावेद शेख को पकड़ा गया। दो-तीन हफ्ते तक गैरकानूनी हिरासत में रखने के बाद राजेंद्र कुमार और आइबी के कुछ कनिष्ठ अधिकारियों ने एक साजिश के तहत चारों को गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दिया। हैरानी की बात यह है कि सीबीआइ पूरी चार्जशीट में यह नहीं बताएगी कि दोनों पाकिस्तानी भारत में क्या करने आए थे और उन्हें आइबी ने किस आरोप में हिरासत में लिया था। यही नहीं, सीबीआइ इशरत के खिलाफ पहले से एक भी अपराधिक मामला होने का उल्लेख तो आरोपपत्र में करेगी, लेकिन यह नहीं बताएगी कि जावेद शेख और दो पाकिस्तानियों को वह कैसे जानती थी। गृह मंत्रालय के दबाव में सीबीआइ ने आरोपपत्र से फिलहाल राजेंद्र कुमार का नाम हटा दिया है, लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस महीने के अंत तक उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया जा सकता है। अधिकारी के अनुसार इशरत और उसके साथियों को गैरकानूनी हिरासत में रखकर क्राइम ब्रांच को फर्जी मुठभेड़ के लिए सौंपने में राजेंद्र कुमार की अहम भूमिका थी। ध्यान देने की बात है कि गृह मंत्रालय इशरत और उसके साथियों को आतंकियों को बताते हुए खुफिया ब्यूरो के अधिकारी के रूप में राजेंद्र कुमार की भूमिका का बचाव कर रहा है।
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