सीबीआई ने इशरत जहां मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। मुठभेड़ के नौ साल बाद दायर सीबीआइ के आरोपपत्र में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का नाम तक नहीं लिया गया है। सीबीआइ ने कहा है कि आइबी के तत्कालीन निदेशक राजेंद्र कुमार समेत तीन अधिकारियों की भूमिका की जांच जारी रहेगी। मुठभेड़ में मारे गए युवकों के पास रखे गए हथियार आइबी ऑफिस से ही लाए गए थे।
By Edited By: Updated: Thu, 04 Jul 2013 04:52 AM (IST)
अहमदाबाद [शत्रुघ्न शर्मा]। सीबीआइ ने इशरत जहां मुठभेड़ को फर्जी करार दिया है। मुठभेड़ के नौ साल बाद दायर सीबीआइ के आरोपपत्र में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का नाम तक नहीं लिया गया है। सीबीआइ ने कहा है कि आइबी के तत्कालीन निदेशक राजेंद्र कुमार समेत चार अधिकारियों की भूमिका की जांच जारी रहेगी। मुठभेड़ में मारे गए युवकों के पास रखे गए हथियार आइबी दफ्तर से ही लाए गए थे। आइपीएस पीपी पांडे, डीजी वंजारा, जीएल सिंघल सहित गुजरात पुलिस के सात अफसरों को आरोपी माना है।
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एक्शन हीरो की भूमिका में थे पी पी पांडेय अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएस खुटवड की अदालत में बुधवार शाम को सीबीआइ के वकीलों ने आरोपपत्र पेश किया, जिसमें कहा गया है कि इशरत और उसके तीन साथियों को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया था। आरोपपत्र में गुजरात खुफिया ब्यूरो के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार समेत आइबी के दो अफसरों एनके सिन्हा और राजीव वानखेड़े को भी मुठभेड़ में शामिल माना गया है, लेकिन सीबीआइ ने उनकी भूमिका को लेकर अभी और जांच करने की बात कही है। सीबीआइ ने गुजरात के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे, पूर्व डीआइजी डीजी वंजारा, आइपीएस जीएल सिंघल समेत सात अधिकारियों को आरोपी बताया है। पढ़ें:
इशरत जहां मुठभेड़ में आइपीएस गिरफ्तार पढ़ें:
इशरत जहां मुठभेड़ से संबंधित अन्य खबरें सीबीआइ ने सभी के खिलाफ आइपीसी की धारा-302, 120बी के तहत साजिश, अपहरण, हत्या व सुबूत नष्ट करने के मामले दर्ज किए हैं। इस मामले में 21 फरवरी, 2013 को पहली गिरफ्तारी आइपीएस सिंघल की हुई। इसके बाद तरुण बारोट, जेआर परमार और भरत पटेल को भी पकड़ा गया। सीबीआइ की ओर से 90 दिन में आरोपपत्र दाखिल नहीं करने के कारण सभी जमानत पर छूट गए, जबकि साजिश के मुख्य कर्ताधर्ता डीजी वंजारा को सीबीआइ ने 28 जून को साबरमती जेल अहमदाबाद से गिरफ्तार किया है। सीबीआइ ने अदालत से कहा है कि वह जल्द ही पूरक आरोपपत्र भी दाखिल करना चाहती है।
यहां पढ़ें: क्या है इशरत जहां मुठभेड़ मामला? इशरत को आतंकी नहीं बताएगी सीबीआई आरोपपत्र में कहा गया है कि 12 जून, 2004 को इशरत व जावेद को आइबी के एमके सिन्हा व राजीव वानखेड़े की मदद से पुलिस उपाधीक्षक एनके अमीन और पुलिस निरीक्षक तरुण बारोट आणंद के वासद से हिरासत में लेकर अहमदाबाद के सरखेज गांधीनगर हाईवे पर खोडियार धाम लाए। हत्या के दो दिन पहले इन्हें अर्हम फार्म हाउस लाया गया, जो तत्कालीन भाजपा पार्षद के भाई का है। सोहराबुद्दीन व कौशरबी को भी हत्या से पहले इसी फार्म हाउस में रखा गया था। आइबी निदेशक राजेंद्र कुमार व वंजारा ने यहीं पर इशरत व उसके साथियों से पूछताछ की थी। मुठभेड़ से पहले बाकी दोनों को भी अहमदाबाद लाकर अलग जगह पर रखा गया था। आइपीएस जीएल सिंघल ने 14 जून को स्टेट आइबी के कार्यालय से एके-56 व अन्य हथियार लिए, जिन्हें बाद में इन चारों के शवों के साथ रखा गया था। इशरत की मां शमीमा कौसर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआइ जांच की मांग की थी। सीबीआइ ने हाई कोर्ट के निर्देश पर बुधवार को ट्रायल कोर्ट में इशरत मामले में आरोपपत्र दायर किया। आरोपपत्र में यह भी कहा गया है कि जांच के दौरान ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि ये सभी मोदी की हत्या करने के लिए गुजरात आए थे। इशरत व उसके तीन साथियों की 15 जून 2004 को आइबी व गुजरात पुलिस के अधिकारियों ने हत्या कर दी थी। पुलिस ने इन चारों की मौत मुठभेड़ में होना बताते हुए दावा किया था कि सभी लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी थे और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात आए थे। मजिस्ट्रेट तमांग ने बताया था कोल्ड ब्लडेड मर्डर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एसपी तमांग ने 7 सिंतबर 2009 को अपनी रिपोर्ट में इशरत व उसके साथियों की मौत को कोल्ड ब्लडेड मर्डर बताया था। शमीमा की याचिका पर हाई कोर्ट ने विशेष जांच दल (एसआइटी) से मामले की जांच कराई, जिसने नवंबर 2011 को इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। सीबीआइ का आरोपपत्र -गुजरात पुलिस और आइबी का संयुक्त अभियान थी फर्जी मुठभेड़ -पांडे, वंजारा, सिंघल सहित सात पुलिस अफसरों को माना आरोपी -निदेशक सहित आइबी के चार अफसरों के खिलाफ और होगी जांच -12 जून, 2004 को ही गिरफ्तार कर लिए गए थे इशरत व जावेद -भाजपा पार्षद के भाई के फार्म हाउस पर रखे गए थे दोनों -13 जून को वंजारा, पांडे और राजेंद्र कुमार ने की थी पूछताछ -15 जून को गुजरात पुलिस व आइबी ने चारों को मारा 'आइबी निदेशक को राजनीतिक दबाव के चलते बचाया गया है। भाजपा ने दबाव बनाया और कांग्रेस इस मामले में कमजोर साबित हुई।' -मुकुल सिन्हा, जावेद शेख के वकील 'आरोपपत्र से साफ है कि इशरत और उसके साथी मौत से पहले पुलिस की हिरासत में थे। यह पूरी तरह हत्या का मामला है।' -आइएच सैयद, सीबीआइ के वकील
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