आखिर कैसे मुख्यधारा में आएंगे कश्मीरी युवा, आज भी है बड़ा सवाल
केंद्र के वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के आने से कश्मीरी युवकों में अपने भविष्य को लेकर एक उम्मीद की किरण दिख रही है
शशांक द्विवेदी
जम्मू कश्मीर में शांति बहाली के लिए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों दिनेश्वर शर्मा को मुख्य वार्ताकार नियुक्त किया जो राज्य के विभिन्न संबद्ध पक्षों से बातचीत कर रहे हैं। कश्मीर के लोगों और खासकर युवाओं में गुस्सा है। आखिर क्यों कश्मीर के युवा अपनी जान हथेली पर लेकर सुरक्षा बल के जवानों पर पत्थर फेंक रहें है? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, लेकिन एक कारण यह भी है कि सरकार प्रदेश के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने में नाकाम रही है। एक तरफ केंद्र सरकार दावा कर रही है कि वह जम्मू-कश्मीर के युवाओं को देश की मुख्य धारा से जोड़ना चाहती है तो दूसरी तरफ पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दौरान कश्मीर के युवाओं को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने और मुख्य धारा में लाने के लिए चलाई गई प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद अब दम तोड़ती नजर आ रही है। यहां तक कि कश्मीरी युवाओं के पक्ष में श्रीनगर हाईकोर्ट के निर्णय देने के बावजूद केंद्र सरकार उन्हें स्कॉलरशिप देने के लिए इच्छुक नहीं दिख रही है और वह इस फैसले के खिलाफ श्रीनगर हाईकोर्ट की डबल बेंच में चली गई है।
असल में, संप्रग सरकार ने 2011 में जम्मू-कश्मीर के गरीब युवाओं को शिक्षा मुहैया कराaने के लिए एक योजना शुरू की थी। इसके तहत कश्मीर के युवा देश के किसी भी हिस्सा में पढ़ाई लिखाई कर सकते हैं। प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना (पीएमएसएसएस) के तहत प्रतिवर्ष 5000 छात्रों को स्कॉलरशिप दी जानी है। इसमें 250 इंजीनियरिंग, 250 मेडिकल और अन्य पाठ्यक्रमों के लिए 4500 सीटें निर्धारित हैं। इस योजना के लिए संप्रग सरकार ने 1,200 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया था और इसके क्रियान्वयन के लिए एक अंतर मंत्रलयी समिति का भी गठन किया था।
इसका मकसद था कि प्रतिवर्ष कश्मीर से पांच हजार गरीब छात्र-छात्रएं प्रदेश से बाहर जाकर उच्च शिक्षा हासिल करेंगे ताकि उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाया जा सके। सरकार ने गरीब बच्चों को देश के किसी भी राज्य में पढ़ने-लिखने और प्रशिक्षण हासिल करने तथा रोजगार पाने का सुनहरा अवसर प्रदान किया था। इस छात्रवृत्ति योजना के तहत बच्चों का रहना, खाना और उनके पढ़ने की फीस शामिल थी। इसमें ऐसी सुविधा थी कि बच्चे अपनी मर्जी से मान्यता प्राप्त किसी भी कॉलेज या विश्वविद्यालय को चुन सकें। अपनी मर्जी के चुनिंदा कोर्स में पढ़ाई करें और इसकी सूचना सरकार को दें। यह सिलसिला 2011-12 से शुरू हुआ था। 2011-12 में 38, 2012-13 में 3775, 2013-14 में 4585, 2014-15 में 1314 , 2015-16 में 406 बच्चें जम्मू कश्मीर से निकले और उन्होंने देश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में दाखिला पाया। योजना की निगरानी के लिए मानव संसाधन मंत्रलय ने एक समिति बनाई है और इसके क्रियान्यवन की जिम्मेदारी एआइसीटीई को दी गई है। मगर बाद में इसके नियमों को इतना जटिल बना दिया गया कि अब यह योजना उलझकर रह गई है।
इसका मूल उद्देश्य ही खत्म हो गया। अचानक लागू एक नई प्रक्रिया में तय किया गया है कि प्रत्येक संस्था को सिर्फ दो छात्र दिए जाएंगे, जबकि पहले यह नियम मूल योजना में नहीं था। शुरू के 2-3 साल तो यह योजना ठीक चली, लेकिन बाद में इसमें ऐसे नियम कायदे जोड़ दिए गए कि जम्मू कश्मीर के युवाओं का देश के अन्य हिस्सों में पढ़ने के लिए जाना मुश्किल काम हो गया। 1योजना के तहत पांच सालों में जम्मू कश्मीर के 25,000 युवाओं को देश के दूसरे हिस्सों में पढ़ने के लिए भेजना था और इसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति मुहैया कराई जानी थी। मगर 2011 से लेकर 2016 तक 14,882 सीटें खाली रह गईं। 2014-15 में 3,686 सीटें खाली रह गईं और 2015-16 में सरकार द्वारा सिर्फ 406 सीटों के लिए छात्रवृत्ति मुहैया कराई गई जबकि बाकी 4,594 सीटें खाली रह गईं। कुछ युवाओं ने एआइसीटीई में पंजीकरण कराकर अपने स्तर पर कॉलेज ढूंढे और उनमें पढ़ रहे हैं, लेकिन सरकार ने अब ऐसे छात्रों की छात्रवृत्ति रोक दी है। 2014-15 के लगभग पचास प्रतिशत छात्रों को और 2013-14 के लगभग 25 प्रतिशत छात्रों को अभी तक छात्रवृत्ति नहीं मिली है।
इन युवाओं की कोई गलती न होते हुए भी वे दर-दर की ठोकर खा रहे हैं। शिक्षण संस्थान, जहां वे पढ़ रहे हैं, उनसे पैसा मांग रहे हैं। वे गरीब हैं पैसा दे नहीं सकते, लेकिन अब ये छात्र कहां जाएं? अहम बात यह है कि छात्रवृत्ति के मुद्दे पर एक निजी विश्वविद्यालय की याचिका पर इन छात्रों के पक्ष में श्रीनगर हाईकोर्ट का निर्णय आया, लेकिन इसके बावजूद केंद्र सरकार इस फैसले के खिलाफ श्रीनगर हाईकोर्ट की डबल बेंच में चला गई। इससे सरकार की कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। इस योजना से कश्मीरी छात्रों में भारत के प्रति सकारात्मक समझ विकसित हो रही थी। ऐसे प्रयासों से ही कश्मीर के युवाओं का अलगाव खत्म होगा, लेकिन इस को लेकर जिस तरह का रवैया सरकार दिखा रही है वह हैरान करने वाला है। लगभग ढाई साल पहले संसद में तत्कालीन पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जम्मू कश्मीर के बच्चों की विशेष छात्रवृत्ति योजना पर उदासीनता बरतने को लेकर सवाल उठाया था।
कश्मीर के कई सांसद भी इस मसले को संसद में उठा चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने शिक्षा से जुड़े इतने अहम मुद्दे पर अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है न कोई संजीदगी दिखाई है। संप्रग सरकार ने पांच साल के लिए यह विशेष योजना बनाई थी जिससे कश्मीरी बच्चे देश की मुख्य धारा से जुड़ सकें, लेकिन अब राजग सरकार इस योजना को उसके मूल स्वरूप में जारी नहीं रखना चाहती। यह बात समझनी होगी कि कश्मीर समस्या का सही हल शिक्षा से ही निकलेगा, दूसरा कोई रास्ता नहीं है। कश्मीरी बच्चों की समस्याओं का निराकरण करते हुए सरकार को पिछले कुछ सालों से लंबित उनकी छात्रवृत्ति तत्काल देनी चाहिए। फिलहाल केंद्र सरकार के मुख्य वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के आने से कश्मीरी युवाओं में अपने भविष्य के लिए उम्मीद की किरण जगी है, अब देखना यह है कि वह कश्मीरी युवाओं से जुड़े इस मुद्दे पर कितनी संजीदगी दिखा पाते हैं।
(लेखक राजस्थान स्थित मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं)