आखिर क्यों और कैसे भारत से NSA वार्ता के लिए तैयार हुआ चीन, क्या है वजह
डोकलाम विवाद समेत सीमा से जुड़े दूसरे मुद्दों के समाधान के लिए आखिर चीन एनएसए वार्ता के लिए राजी हो गया है। चीन के रुख में आया यह बदलाव काफी अहम है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। लगभग ढाई माह तक चले डोकलाम विवाद की समाप्ति के बाद चीन और भारत के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) वार्ता होगी। इसको दोनों देशों के बीच एक बेहतर पहल और मजबूत इच्छा शक्ति के तौर पर देखा जा रहा है। इससे पहले दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों ने मनीला में शनिवार को मुलाकात भी की थी। ढाई माह के उस कष्टदायी माहौल के बाद यहां पर अब विश्वास बहाली को लेकर जो माहौल में बदलाव आया है, उसके कई मायने भी हैं।
डोकलाम विवाद को सुलझाने पर बनी सहमति
यहां पर यह भी बता देना जरूरी होगा कि कुछ ही दिन पहले चीन में मौजूद भारतीय राजदूत विजय गोखले के साथ चीन के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक हुई थी, जिसमें डोकलाम विवाद को सुलझाने पर सहमति बनी थी। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ब्रिक्स के बाद जिस तरह से दोनों देशों के बीच एक बेहतर तालमेल और माहौल बनता दिखाई दे रहा है, वह काफी सराहनीय है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात से बने माहौल को भारत व चीन फिलहाल किसी भी सूरत में बिगाड़ना नहीं चाहते।
दोनों देशों के बीच बातचीत बेहद खास
दोनों देशों के एनएसए के बीच होने वाली वार्ता इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि डोकलाम विवाद के दिनों में जब भारतीय एनएसए अजीत डोभाल ने चीन की यात्रा की थी तब चीन का रुख काफी अडि़यल दिखाई दिया था। इसके अलावा दो दिन पहले भी जिस तरह से भारत के आर्मी चीफ ने चीन और पाकिस्तान को लेकर बयान दिए, उसे देखते हुए भी यह वार्ता काफी खास होने वाली है।
द्विपक्षीय रणनीतिक मसलों पर होगी एनएसए वार्ता
भारतीय एनएसए अजीत डोभाल और चीन के एनएसए यांग जिची के बीच यह वार्ता द्विपक्षीय रणनीतिक मसलों पर होगी। इन दोनों के बीच पिछले कुछ वर्षों में कई दौर की बातचीत हो चुकी है। हाल ही में ब्रिक्स सम्मेलन की तैयारियों और ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान शियामिन में भी इनकी मुलाकात हुई थी। सूत्रों के मुताबिक डोकलाम विवाद शुरू होने से पहले डोभाल और जिची के बीच अंतिम द्विपक्षीय आधिकारिक वार्ता नवंबर 2016 को हैदराबाद में हुई थी। तब यह सहमति बनी थी कि तमाम सीमा विवादों के स्थायी निपटारे के लिए इस वर्ष 2017 में आधिकारिक वार्ताओं का नया दौर शुरू किया जाएगा।
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पूर्व एनएसए के बिंदुओं पर बढ़ा जाएगा आगे
उस वक्त यह भी तय हुआ था कि पहली वार्ता भारत में होगी और पूर्व एनएसए शिवशंकर मेनन के कार्यकाल में चीन के साथ सीमा विवाद निपटारे के लिए जो बातचीत हुई है उसे अब जमीनी तौर पर लागू करने की कोशिश होगी। अब दोनों देश हैदराबाद में बनी इस सहमति के मुताबिक आगे कदम उठा सकेंगे। यही आगे चलकर 3500 किलोमीटर लंबी सीमा से जुड़े तमाम विवादों के समाधान का रास्ता दिखा सकते हैं। इसके अलावा चीन की तरफ से आया बयान भी उसके रुख में नरमी का संकेत देता दिखाई दे रहा है। दरअसल चीन ने कहा है कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों को कुछ दूरी तय करनी होगी।
भारतीय बाजार चीन के लिए एक बड़ी कमजोरी
यहां पर एक चीज को समझना बेहद जरूरी होगा और वह है भारतीय बाजार। भारतीय बाजार में कई देश जगह पाना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरफ भारत और चीन के बीच व्यापारिक रिश्ते काफी मजबूत हैं। भारत से निर्यात में जहां चीन का तीसरा नंबर है वहीं आयात में वह पहले नंबर पर आता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार आंकड़ों पर नजर रखने वाली संस्था द ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकॉनोमिक कॉम्प्लेक्सिटी के मुताबिक वर्ष 2015 में 12 बिलियन डॉलर का निर्यात भारत से चीन को किया गया था वहीं 59 बिलियन डॉलर का आयात किया गया था। यह आंकड़े बताते हैं कि चीन के लिए भारतीय बाजार कितना अहम है। डोकलाम विवाद की सूरत में चीन को इस कारोबार से हाथ धोना पड़ सकता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा।
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चीन की घुसपैठ
विदेश मामलों के जानकार कमर आगा मानते हैं कि चीन न सिर्फ भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना अधिकार जताता रहा है, बल्कि कई मौकों पर उसने उत्तर से लेकर पूर्व तक कई जगहों पर घुसपैठ भी की है। बाड़ाहोती हो या फिर लद्दाख के दूसरे इलाके या फिर सिक्किम के कुछ सीमावर्ती इलाके या अरुणाचल प्रदेश से लगती सीमा, सभी पर उसके सैनिकों ने घुसपैठ को अंजाम दिया है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में उसका रुख पूरी दुनिया देख ही रही है। पाकिस्तान के साथ बढ़ते रिश्तों के चलते दोनों फ्रंट पर भारत को दिखाई देते खतरे से भी वह इंकार नहीं करते हैं। उन्होंने जनरल रावत के बयान से संबंधित सवाल के जवाब में साफतौर पर इस बात को माना कि जनरल रावत की कही गई बातों को न तो नजरअंदाज किया जा सकता है और न ही उन्हें झुठलाया जा सकता है। दोनों देश जिस तरह से सुर में सुर मिलाकर बात करते हैं उस तरह से भारत को दोनों ही फ्रंट पर खतरा व्याप्त है।
सरकार के हाथों में नहीं है पीएलए
आगा ने बातचीत के दौरान कहा कि चीन की सेना वहां की सरकार के हाथों में नहीं है। इतना ही नहीं वह ज्यादातर कदम अपने मन मुताबिक और अपने सेनाध्यक्षों के कहे मुताबिक उठाती है। इसके अलावा वह कम्यूनिस्ट एजेंडे पर काम करती है और उसको ही फॉलो करती है, लिहाजा वह भारत के लिए हमेशा से ही खतरा बनी रही है। पाकिस्तान पर चीन के बदले रुख के संबंध में उनका कहना था ब्रिक्स में जो रुख चीन ने अपनाया है वह अच्छा है, लेकिन उन आतंकियों को लेकर जिनसे भारत को सरोकार है, उस पर वह अभी अपने उसी स्टेंड पर कायम है। वह मानते हैं कि चीन पाकिस्तान का साथ नहीं छोड़ने वाला है। आगा ने कहा कि सावधानी बरतने के साथ आगे बढ़ने की भी जरूरत है।
चीन द्वारा पंचशील सिद्धांत का जिक्र करना
चीन के इस वार्ता की टेबल पर आने से पहले नहीं भूलना चाहिए कि ब्रिक्स में सीमा विवाद के मुद्दे सुलझाने के लिए पंचशील सिद्धांत का जिक्र किया था। पंचशील सिद्धांत का जिक्र सबसे पहले 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। इसका जिक्र उन्होंने 29 अप्रैल सन 1954 ई. को हुए तिब्बत संबंधी भारत-चीन समझौते में भी किया गया जो सिद्धांतों को आधारभूत मानकर की गई थी। इसमें दोनों देशों के आतंरिक मामलों में हस्तनक्षेप न करना, एक दूसरे की सीमाओं पर आक्रमण न करना, एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना, एक दूसरे के हितों का सम्मांन करते हुए परस्पर लाभकारी संबंध बनाना और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व जैसे सिद्धांत शामिल थे। लेकिन 1962 में चीन द्वारा भारतीय सीमा पर किए गए आक्रमण के बाद इन सिद्धांतों को काफी धक्काा भी लगा। ब्रिक्से में चीन द्वारा इन सिद्धांतों का जिक्र करना अपने आप में बड़ी बात है।