अब गोली नहीं भेद सकेगी जवानों के सिर, विस्फोटक भी कुछ ऐसे होंगे 'डिफ्यूज'
सीमा पर तैनात जवान हर तरह के हालातों में डटे रहते हैं। यह हर वक्त दुश्मन के निशाने पर होते हैं। लिहाजा इन्हें सुरक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। पुलिस और सेना को हमेशा ही परेशानियों से जूझना होता है। यह परेशानियां उस वक्त ज्यादा बढ़ जाती हैं जब जरूरी उपकरणों के अभाव में इन्हें काम करना होता है। जहां विधानसभा में खतरनाक विस्फोटक तक पहुंच जाते हों वहां यह सब बेहद जरूरी हो जाता है कि हमारी सुरक्षा में लगे इन जांबाजों की सुरक्षा को भी तवज्जो दी जाए। यही वजह है कि सेना को जवानों के लिए जहां बैलेस्टिक हैलमेट की खरीद की गई है वहीं दिल्ली पुलिस के लिए भी कई ऐसे उपकरण खरीदे गए हैं जिनकी जरूरत उन्हें अकसर पड़ जाया करती है। इतना ही नहीं पिछले दिनों ही सेना को इमरजेंसी में अपने लिए किसी भी तरह के साजो-सामान को खरीदने की भी छूट दे दी गई है।
सेना की बात करें तो सीमा पर हमारी सुरक्षा में लगे जवानों को अगले पल का भी पता नहीं होता है। ऐसे में उनकी सुरक्षा के लिए जिन खास हैलमेट को खरीदा गया है उसको गोली भी भेद नहीं पाएगी। इतना ही नहीं यह जवानों को उन छर्रों से भी बचाएगी जिसकी चपेट में आकर वह कई बार गंभीर रूप से जख्मी भी हो जाते हैं। देश की 11वीं योजना में ऐसे करीब 3,28,000 हेल्मेट्स की खरीद की जरूरत महसूस की गई थी। इसके बाद 1,58,279 हेल्मेट्स खरीदने का फैसला लिया गया। सेना को फिलहाल 7,500 हैलमेट की पहली खेप मिल गई है वहीं उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल 30,000 और हैलमेट जवानों को मिल जाएंगे। इसके अलावा अगले दो वर्षों में 2 वर्षों में प्रस्तावित सभी हैलमेट सेना के पास होंगे, जो विपरीत परिस्थितियों में उनकी रक्षा करने में सहायक साबित होंगे।
इन हैलमेट को प्राथमिकता के तौर पर पाकिस्तान और चीन से लगी सीमा पर तैनात जवानों और आतंकवाद के खिलाफ चल रहे अभियानों में लगे जवानों को दिया जाएगा। इसके अलावा नेवी और यूएन के अभियानों में लगे सैनिकों को भी 15 हजार हेल्मेट दिए जा रहे हैं। अगर 20 मीटर की दूरी से 9 एमएम की गोली मारी जाए तो यह हेल्मेट को भेद नहीं सकेगी। ये भी दो तरह के हैं। नॉर्मल हैलमेट और कमांडर हैलमेट। कमांडर हैलमेट से तीन तरह के रेडियो सेट्स के साथ काम हो सकेगा। अभी सेना जिस हेल्मेट का इस्तेमाल करती है, उसे पटका कहा जाता है। यह बुलेटप्रूफ है, लेकिन इनसे सिर्फ सिर के अगले और पिछले हिस्से की रक्षा हो पाती है। साइड का हिस्सा असुरक्षित समझा जाता है। इनका वजन दो किलो से ज्यादा होता है।
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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों ही उप सेना प्रमुख को किसी भी इमरजेंसी से निपटने के लिए हथियारों, पुर्जों और गोला-बारूद की कमी को पूरा करने के लिए पूरे अधिकार दिए हैं। अगर सेना को लगता है कि जंग की तैयारी के लिए उसके पास कोई हथियार होना चाहिए तो सेना बिनी किसी और से इसकी मंजूरी लिए यह सौदा कर सकती है। इसके लिए उपसेना अध्यक्ष 40 हजार करोड़ तक की खरीददारी करने का अधिकार तक दे दिया गया है। इससे सेना बिना इंतजार अपनी जरूरत का सामान खरीद सकेगी। सेना के पास मौजूदा समय में करीब 46 तरह के हथियार हैं, जिसमें 10 तरह के हथियारों के कलपुर्जे हैं, जबकि 20 तरह के गोला-बारूद और माइंस हैं। इस खास ताकत और फंड से सेना को 46 प्रकार के हथियार और दस तरह के हथियार सिस्टम के कलपुर्जे खरीदने की मंजूरी मिल गई है।
इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने भी कई ऐसे अत्याधुनिक उपकरणों को खरीदा है जो न सिर्फ उनकी रक्षा करने में सहायक होंगे बल्कि इनसे घातक विस्फोटकों को भी पहचान कर उन्हें डिफ्यूज किया जा सकेगा। हाल ही में यूपी विधानसभा में मिले घातक विस्फोटक पीईटीएन को किसी मैटल डिटेक्टर से पहचान पाना काफी मुश्किल होता है। यह किसी भी चीज में छिपाकर ले जाया जा सकता है और आतंक फैलाया जा सकता है। लेकिन अब जो उपकरण पुलिस ने खरीदें हैं वह इस तरह के घातक विस्फोटकों को भी पकड़ पाने में सक्षम हैं।
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दिल्ली पुलिस ने जिन उपकरणों को खरीदा है उनमें एक्सप्लोसिव डिटेक्टर, डीप सर्च मेटल डिटेक्टर, हुक लाइन मशीन, टेलिस्कोपिक मैनीपुलेटर्स, एक्सप्लोसिव प्रोटेक्ट सूट जैसे हाईटेक उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा दिल्ली पुलिस ब्लास्टिंग मशीन, रिमोट कार ओपनिंग किट, दूर से ऑपरेट करने वाले रिमोट वीकल खरीद रही है जो बाजारों और पार्किंग जैसी पब्लिक मूवमेंट वाली जगहों पर बम या अन्य विस्फोटकों का पता लगा सकते हैं। खरीदे गए खास तरह के उपकरण बम और इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज का पता लगाने और उन्हें डिफ्यूज करने में माहिर हैं।