घुट रहा है दिल्ली का दम, हवा में लगातार बढ़ रहा है जानलेवा महीन कणों का स्तर
पहले से ही दमघोंटू हवा में सांस लेने को मजबूर लोगों के लिए स्थिति और गंभीर हो गई है।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार खतरनाक होता जा रहा है। आलम यह है कि यह करीब 11 गुना बढ़ गया है। पहले से ही दमघोंटू हवा में सांस लेने को मजबूर लोगों के लिए स्थिति और गंभीर हो गई है। सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक शनिवार को वायु प्रदूषण आपात स्तर से नीचे चले जाने के बाद रविवार की दोपहर हवा में पीएम 2.5 का स्तर एक बार फिर बढ़ गया। दिल्ली में शनिवार को जहां यह 552 माइक्रोग्राम था, वहीं रविवार की दोपहर बढ़कर 661 के स्तर पर पहुंच गया। यह सुरक्षित मानक 60 माइक्रोग्राम से 11 गुना ज्यादा है। इंसान के लिए यह स्तर सबसे खतरनाक माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो दिल्ली में करीब 5.25 लाख लोग सीधे तौर पर वायु प्रदूषण से प्रभावित हैं।
गाजियाबाद का हाल सबसे बुरा
लगातार बढ़ते प्रदूषण के चलते लोगों की आंखों में जलन होना और सांस लेने में तकलीफ के मामले भी सामने आ रहे हैं। ऐसा दरअसल दिल्ली के वातावरण में पीएम 2.5, पीएम 10 और कार्बन मोनोऑक्साइड सामान्य से कई गुना अधिक होना है। दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हालत और खराब हैं। पिछले कई दिनों से प्रदूषण के मामले में अपना ही रिकार्ड तोड़ता दिखाई दे रहा है। गाजियाबाद के वसुंधरा में सोमवार सुबह 11 बजे पीएम 2.5 का स्तर 668 µg/m3 और पीएम 10 का स्तर 928 µg/m3 मापा गया है। वहीं नोएडा के सेक्टर 62 में इसी समय पीएम 2.5 का स्तर 481 µg/m3 पीएम 10 का स्तर 786 µg/m3 रहा। नोएडा के सेक्टर 125 में पीएम 2.5 का स्तर 532 µg/m3 और पीएम 10 का स्तर 726 µg/m3 रहा है। नोएडा में शनिवार के मुकाबले प्रदूषण का स्तर आठ गुना बढ़ गया था। लगातार प्रदूषित हो रहे गाजियाबाद में 242 व नोएडा में 35 औद्योगिक यूनिटों को बंद करा दिया गया है। इसके अलावा गुरुग्राम में इसी समय पीमए 2.5 का स्तर 485 µg/m3 और फरीदाबाद में पीएम 2.5 का स्तर 280 µg/m3 और रोहतक में पीएम 2.5 का स्तर 275 µg/m3 रहा है।
विश्व स्तर पर भारत की स्थिति खराब
यह आंकड़े अपने आम में बेहद डराने वाले हैं। लेकिन इन आंकड़ों से डरने से ज्यादा जरूरी यह भी है कि आखिर पीएम 10 और पीएम 2.5 है क्या। इसके अलावा यह भी जानने की जरूरत है कि इनके अलावा और ऐसे कौन सी चीजें हैं जो हमारे लिए बेहद घातक साबित हो सकती हैं। यहां पर हम आपको बता दें कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के साथ मिलकर येल व कोलंबिया यूनिवर्सिटी हर दूसरे साल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक जारी करती हैं। इसमें देशों की पर्यावरण गुणवत्ता को कई मानकों पर मापा जाता है। जुलाई, 2016 में जारी हुए पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 180 देशों में से भारत को 141वां स्थान मिला। कुल 100 अंकों में से भारत को 53.58 मिले हैं। सभी ब्रिक्स देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे निराशाजनक रहा। ब्राजील 46वें, रूस 32वें, चीन 109वें और दक्षिण अफ्रीका 81वें स्थान पर रहा। पड़ोसी देशों के मुकाबले भले ही भारत का प्रदर्शन अच्छा रहा लेकिन यह संतोषजनक नहीं है।
प्रदूषण को लेकर वर्ल्ड मीडिया में भारत की किरकिरी
दिल्ली समेत अन्य राज्यों में लगातार खराब हो रहे वातावरण को लेकर भारत की मीडिया में ही नहीं बल्कि विश्व की मीडिया में भी काफी शोर है। पूरी दुनिया भारत के राज्यों के आसमान में छाए धूल और धुएं के गुबार पर अपनी नजर बनाए हुए है। यही वजह थी कि इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय अखबारों और वेब मीडिया में विभिन्न हेडिंग से खबरें प्रकाशित की गईं।
सीएनबीसी -गैस चैंबर दिल्ली बीजिंग के मुकाबले दस गुना प्रदूषित
अल जजीरा -भारत की गैस चैंबर राजधानी स्माग की चपेट में आई, स्कूल बंद
यूरो न्यूज -भारत की राजधानी खतरनाक स्माग के साये में
सीएनएन -दिल्ली में प्रदूषण के संकट ने आपात उपायों के लिए मजबूर किया
टाइम- भारत की राजधानी फिर से विषैले स्माग से घिरी
एबीसी न्यूज- स्मागग्रस्त दिल्ली में स्कूल का दौरा नहीं कर पाया शाही दंपत्ति
द टाइम्स- दिल्ली में घने स्माग ने किया प्रिंस आफ वेल्स का स्वागत
सोशल मीडिया पर छाया प्रदूषण का मुद्दा
जहरीली होती आबोहवा को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चा हो रही हैं। पर्यावरण को लेकर चिंचित लोगों द्वारा इस पर तरह-तरह के कमेंट किए जा रहे हैं। इनका कहना है कि सरकार और सरकारी एजेंसियों की कार्यशैली ही इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदार है। इनके द्वारा जब-जब वायु प्रदूषण का संकट गहराता है तभी शोर मचाया जाता है इसके बाद फिर से खामोशी छा जाती है। प्रदूषण के मुख्य कारणों को दूर नहीं किया जाता है। यही आलम जारी रहा तो आने वाले दिनों में किसी को सांस लेने के लिए शुद्ध आक्सीजन नहीं मिलेगी।
इंसान की मौत तक के लिए जिम्मेदार होते हैं ये कण
सूक्ष्म कणों का प्रदूषण(पॉर्टिकल पाल्यूशन)
ये ठोस और तरल बूंदों के मिश्रण होते हैं। कुछ सूक्ष्म कण सीधे उत्सर्जित किए जाते हैं तो कुछ तमाम तरह के उत्सर्जनों के वातावरण में परस्पर क्रिया द्वारा अस्तित्व में आते हैं। ये तत्व इंसानी स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक होते हैं। आकार के लिहाज से इनके दो प्रकार होते हैं:-
पीएम 2.5:
ऐसे कण जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या इससे कम होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। इनके प्रमुख उत्सर्जक स्नोत मोटर वाहन, पॉवर प्लांट, लकड़ियों का जलना, जंगल की आग, कृषि उत्पादों को जलाना हैं।
पीएम 10:
ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 से लेकर 10 माइक्रोमीटर तक होता है। इन कणों के प्राथमिक स्नोत सड़कों पर वाहनों से उठने वाली धूल, निर्माण कार्य इत्यादि से निकलने वाली धूल हैं।
दुष्परिणाम: 10 माइक्रोमीटर से कम के सूक्ष्म कण से हृदय और फेफड़ों की बीमारी से मौत तक हो सकती है। सूक्ष्म कणों के प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित समूह ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हृदय या फेफड़े संबंधी रोग होते हैं।
ओजोन
फेफड़ों के रोगों जैसे अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और इंफीसीमा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए ओजोन संवेदनशील हो सकती है। ऐसे लोगों के लिए कम स्तर वाला ओजोन प्रदूषण भी गंभीर साबित हो सकता है। इसके अलावा नियमित रूप से अधिक समय तक बाहर रहने वाले बच्चे, किशोर, अधिक आयु वाले वयस्क और सक्रिय लोगों समेत स्वस्थ व्यक्ति को भी नुकसान पहुंच सकता है।
दुष्परिणाम: ओजोन के असर से श्वसन तंत्र प्रभावित हो सकता है। खांसी, गले की खराश, गले में जलन, सीने में तनाव या लंबी सांस लेने पर सीने में दर्द भी महसूस हो सकता है। फेफड़ों के काम करने की क्षमता कम हो जाती है।
कार्बन मोनोक्साइड
यह एक गंधरहित, रंगरहित गैस है। यह तब पैदा होती है जब ईंधन में मौजूद कार्बन पूरी तरह से जल नहीं पाता है। वाहनों से निकलने वाले धुएं इस गैस के कुल उत्सर्जन में करीब 75 फीसद भागीदारी निभाते हैं। शहरों में तो यह भागीदारी बढ़कर 95 फीसद हो जाती है।
दुष्परिणाम: फेफड़ों के माध्यम से यह गैस रक्त परिसंचरण तंत्र में मिल जाती है। ऑक्सीजन के वाहक तत्व
हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है। विभिन्न अंगों और ऊतकों तक पहुंचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को बेहद कम कर देती है। लिहाजा कार्डियोवैस्कुलर रोगों से पीड़ित लोगों के लिए यह बहुत खतरनाक साबित होती है। ऐसे लोग इस घातक प्रदूषक की चपेट में आने पर सीने में दर्द महसूस करने लगते हैं।
सल्फर डाईआक्साइड
यह एक रंगहीन क्रियाशील गैस है। सल्फर युक्त कोयले या ईंधन के जलने पर पैदा होती है। सामान्यतौर पर सल्फर डाईऑक्साइड की सर्वाधिक मात्रा बड़े औद्योगिक संयंत्रों के पास मिलती है। इसके प्रमुख स्नोत ऊर्जा संयंत्र, रिफाइनरीज, औद्योगिक भट्टियां हैं।
दुष्परिणाम: यह एक जल पैदा करने वाली गैस है। अस्थमा पीड़ित कोई व्यक्ति अगर इस गैस से प्रभावित क्षेत्र में शारीरिक क्रिया करता है तो इसकी चपेट में आ सकता है।
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