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13 हजार करोड़ की लागत से बना है हादसों का यमुना-आगरा ‘एक्‍सप्रेस वे’

यमुना एक्‍सप्रेस पर साल-दर-साल हादसों की संख्‍या में इजाफा हुआ है। जिसको देखते हुए इसको हादसों का ‘एक्‍सप्रेस वे’ कहना गलत नहीं होगा।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sat, 18 Nov 2017 09:10 AM (IST)
13 हजार करोड़ की लागत से बना है हादसों का यमुना-आगरा ‘एक्‍सप्रेस वे’

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्क)। उत्तर भारत के कई हिस्‍सों में सर्दियों की शुरुआत के साथ ही स्‍मॉग ने भी दस्‍तक दे दी है। नासा द्वारा जारी दो तस्‍वीरों में पाकिस्‍तान से लेकर बिहार की राजधानी पटना तक इसका कहर आसानी से देखा जा सकता है। इसका कहर सबसे ज्‍यादा 13 हजार करोड़ की लागत से यमुना एक्‍सप्रेस वे पर देखने को मिल रहा है, जहां 8 नवंबर को (बुधवार) को करीब 18 गाडि़यां आपस में भिड़ गई थीं। यह पहला मौका नहीं था जब एक्‍सप्रेस वे पर इस तरह की घटना देखने को मिली है। इस एक्‍सप्रेस की शुरुआत से देखा जाए तो यहां पर साल-दर-साल हादसों की संख्‍या में इजाफा हुआ है। जिसको देखते हुए इसको हादसों का ‘एक्‍सप्रेस वे’ कहना गलत नहीं होगा। हजारों करोड़ रुपये की लागत से बने इस एक्‍सप्रेस पर इस तरह के हादसों को रोकने के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए थे उनका आज तक भी इंतजार है। इसका ताजा उदाहरण यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा मंडल में हुई छह मौतें हैं। इन हादसों में कई अन्‍य घायल भी हुए हैं।

165 किमी लंबा है ‘आगरा एक्‍सप्रेस वे’

यमुना एक्‍सप्रेस वे करीब 165 किमी लंबा है। यह देश का सबसे लंबा छह लेन का एक्‍सप्रेस वे है। इसके बनने की शुरुआत दिसंबर 2007 में तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री मायावती ने की थी। 9 अगस्‍त 2012 को यूपी के तत्‍कालीन सीएम अखिलेश यादव ने इसे जनता को बड़ी उम्‍मीदों के साथ सौंपा था। ग्रेटर नोयडा से शुरू होकर यह एक्‍सप्रेस वे आगरा तक जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि इस एक्‍सप्रेस वे के बन जाने से आगरा की दूरी बेहद कम हो गई है।

वायुसेना के विमानों का टचडाउन

इस एक्‍सप्रेस वे की एक खासियत यह भी है कि भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान इस पर दो बार टचडाउन का परीक्षण भी कर चुके हैं। इनमें से एक परीक्षण तो इसी माह हुआ था। इससे पहले 21 मई 2015 को इसी तरह का परीक्षण वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने किया था।

हर 5 किमी की दूरी पर सीसीटीवी लेकिन हाईवे पेट्रोल दूर

एक्‍सप्रेस वे की निगरानी के लिए इस पर हर पांच किमी की दूरी पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। लेकिन इसके बाद भी कोई हादसा होने पर पुलिस को वहां तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है। इसकी वजह है कि हर 25 किमी की दूरी पर एक हाईवे पेट्रोल है। इस एक्‍सप्रेस वे पर वाहनों की रफ्तार की सीमा करीब 100 किमी प्रति घंटा है। लेकिन इस पर आने वाले वाहन इससे कहीं अधिक रफ्तार पर दौड़ते दिखाई देते हैं।

एक्‍सप्रेस वे का एक दर्दनाक सच यह भी

हादसों के इस एक्‍सप्रेस का एक दर्दनाक सच यह भी है कि जब से यह चालू हुआ है तब से लेकर जनवरी 2017 तक इस पर करीब 4076 हादसे हुए, जिसमें करीब 548 लोगों की मौत हुई है। साल दर साल यहां पर होने वाले हादसों में तेजी देखने को मिली है। 2015 की तुलना में इस एक्‍सप्रेस वे पर 2016 में हुए हादसों में करीब 30 फीसद की तेजी दर्ज की गई थी। लेकिन यह भी सही है कि इस दौरान हुए हादसों में 2015 की तुलना में लोगों की जान कम गई थी। 2016 में इस एक्‍सप्रेस वे पर करीब 1193 एक्‍सीडेंट की घटनाएं हुईं थीं। इनमें करीब 128 लोगों की मौत हुई थी। वहीं 2015 में यहां पर 919 हादसे हुए थे जिसमें 143 लोगों की मौत हो गई थी।

2012-2014 के बीच हादसे

2014 में इस एक्‍सप्रेस वे पर 772 हादसे हादसे हुए जिसमें 127 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसके अलावा 2013 में यहां करीब 898 हादसे हुए जिसमें 118 लोगों की मौत हो गई थी। अगस्‍त 2012 जब इस एक्‍सप्रेस को जनता को सुपुर्द किया गया था उसके बाद दिसंबर 2012 तक ही इस पर करीब 294 हादसे हुए जिसमें 33 लोगों की जान चली गई थी।

हादसों को रोकने के लिए जनहित याचिका

इस एक्‍सप्रेस वे पर लगातार बढ़ रहे हादसों को देखते हुए वर्ष 2015 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। इस याचिका के माध्‍यम से आगरा डेवलेपमेंट फाउंडेशन के सचिव केसी जैन ने इस एक्‍सप्रेस पर जान-माल की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने भी एक हाईलेवल कमेटी बनाकर इस पर हादसे रोकने को लेकर उपाय मांगे थे। लेकिन इन उपायों पर आज तक कोई अमल नहीं हो सका है। कमेटी की रिपोर्ट में एक बात सामने आई थी कि इस पर होने वाले हादसे दो वजहों से होते हैं। इसमें पहला था ओवरस्‍पीड और दूसरा कारण था टायरों का बर्स्‍ट हो जाना। लेकिन हकीकत यह है कि कमेटी की रिपोर्ट आज तक ठंडे बस्‍ते में है। इस एक्‍सप्रेस वे पर हादसे रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए गए हैं।

ठंडे बस्‍ते में सीआरआरआई की रिपोर्ट

इस बाबत केसी जैन ने दैनिक जागरण से बात करते हुए बताया कि एक्‍सप्रेस वे पर सड़क हादसों को लेकर सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टिट्यूट ने भी एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसके बाद उन्‍होंने भी कुछ उपाय करने की बात कही थी, लेकिन इन्‍हें भी आज तक अमल में नहीं लाया जा सका है। इसमें सीसीटीवी कैमरों की संख्‍या बढ़ाने, रास्‍ते में जगह-जगह छोटे स्‍पीड़ ब्रेकर लगाने की भी बात कही गई थी, जिससे वाहन चलाने वाला चौकन्‍ना रहे ओर स्‍पीड़ को अधिक न रख सके।

हादसे की सूरत में एयरलिफ्ट की सुविधा

उन्‍होंने यह भी बताया कि हादसे की सूरत में पीडि़तों को स्‍वास्‍थय सुविधा मुहैया करवाने को लेकर एयरलिफ्ट करने की बात चल रही है। इसको लेकर कहा जा रहा है कि टोल पर कुछ पैसा बढ़ाया जाएगा। उन्‍होंने यह भी माना कि फॉग या स्‍मॉग की वजह से हादसे कुछ बढ़ जरूर जाते हैं लेकिन मोटे तौर पर हादसों की वजह टायरों का फटना और वाहनों द्वारा ओवरस्‍पीड में चलना ही है। उनके मुताबिक एक आरटीआई में यह बात भी सामने आई है कि इस वर्ष जनवरी से जुलाई तक इस एक्‍सप्रेस वे पर करीब 18 लाख वाहन ओवरस्‍पीड थे लेकिन चालान महज 18 हजार वाहनों का ही किया गया। रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2015 तक इस पर जेवर टोल प्‍लाजा से करीब 62.7 लाख वाहन गुजरे जिसमें से 8156 वाहनों का चालान ओवरस्‍पीड को लेकर किया गया था।

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