हैम्बर्ग में जुटे दुनिया के दिग्गज नेता, जी-20 से भारत को बड़ी उम्मीदें
जर्मनी के हैम्बर्ग में जी-20 बैठक कई मायनों में खास है। बताया जा रहा है कि पीएम मोदी एनएसजी के मुद्दे पर सदस्य देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता कर सकते हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । समुद्र के किनारे बसे जर्मनी के हैम्बर्ग शहर को दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के सम्मेलन के लिए एक आदर्श जगह कहा जा सकता है। उत्तरी जर्मनी के इसी शहर में इस शुक्रवार और शनिवार को दुनिया के नेता बढ़ते संरक्षणवाद पर चिंता के बीच बैठक में शामिल हुए हैं। मध्यकाल में समुद्री यातायात का एक बड़ा केंद्र रहा हैम्बर्ग हंसियाटिक लीग का भी हिस्सा है। हंसियाटिक लीग मध्यकाल में उत्तरी जर्मन व्यापारियों और बाद में उत्तर व बाल्टिक सागर के किनारों पर बसे नगरों का एक समूह था, जिसे दुनिया में शुरुआती दौर का मुक्त व्यापार क्षेत्र माना जाता है।
जी-20 बैठक का एजेंडा इस बार काफी व्यापक है, सभी की निगाहें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर टिकी हुई हैं। लेकिन भारतीय पीएम इस मौके का इस्तेमाल परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के प्रतिष्ठित समूह (एनएसजी) में भारत की दावेदारी को आगे बढ़ाने के लिए करेंगे। यही वजह है कि भारतीय पीएम की उन देशों के प्रमुखों के साथ अलग से द्विपक्षीय बैठक आयोजित की गई है, जो एनएसजी में भारत के प्रवेश में मदद कर सकते हैं।
दिग्गजों से पीएम मोदी की मुलाकात
पीएम मोदी हनोवर में अर्जेंटीना के प्रेसिडेंट मौरसियो मैकरी, इटली के पीएम पाओलो जेंटिलोनी, कनाडा के पीएम जस्टिन टिड्यू, ब्रिटेन की पीएम थेरेसा मे, जापान के पीएम शिंजो आबे, मैक्सिको के प्रेसिडेंट पेना निएटो और दक्षिण कोरिया के प्रेसिडेंट मून जे-ईन के साथ द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे। हर राष्ट्राध्यक्ष के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर अलग-अलग एजेंडे हैं, लेकिन जो सभी में सामान है वो एनएसजी में भारत की दावेदारी को लेकर है। भारत की दावेदारी पर जून 2017 में एनएसजी के सदस्य देशों की बैठक में विचार किया गया था। एनएसजी की तरफ से जारी विज्ञप्ति में बताया गया था कि इस बार आगे भी विचार विमर्श होगा।
एनएसजी की राह में चीन बना रोड़ा
माना जा रहा है कि भारत हाल ही में अमेरिका की तरफ से मिले आश्वासन से खासा उत्साहित है। वैसे एनएसजी में भारत की दावेदारी की राह में सबसे बड़ी अड़चन पड़ोसी देश चीन है और अभी तक उसके रवैये में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। इसके बावजूद भारत की यह रणनीति है कि एनएसजी की नवंबर 2017 में होने वाली बैठक में उसकी दावेदारी का समर्थन ज्यादा से ज्यादा देश करें।
पीएम की तरफ से जी-20 में दिए जाने वाले भाषण के केंद्र में आतंकवाद तो रहेगा ही, लेकिन वो सदस्य देशों के साथ कनेक्टिविटी का मुद्दा भी उठा सकते हैं। खास तौर पर जिस तरह से कनेक्टिविटी के मुद्दे पर भारत के रुख को अमेरिका से समर्थन मिला है उसे देखते हुए भारतीय पीएम के लिए अपनी बात एक बड़े वर्ग तक पहुंचाने की राह और आसान हो गई है।
जी-20 की कैसे हुई शुरुआत
25 सितंबर 1999 को अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में विश्व के सात प्रमुख देशों के संगठन जी 7 ने एक नया संगठन बनाने की घोषणा की थी। उभरती आर्थिक ताकतों की बुरी वित्तीय स्थिति से बने चिंता के माहौल के बीच गठित इस संगठन का नाम जी-20 दिया गया। इस संगठन के गठन के समय इसका उद्देश्य था विकसित औद्योगिक देशों के साथ-साथ उभरते बाजारों को जोड़ना, जिनमें चीन और भारत प्रमुख थे।
दुनिया के 20 देशों के वित्तमंत्रियों और इसके सेंट्रल बैंक के गवर्नर्स का समूह (जी-20, ग्रुप-20 या 20 के समूह) के रूप में जाना जाता है। इसमें विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के वित्तमंत्रियों और केंद्रीय बैंकों को गवर्नर्स को शामिल किया जाता है। इस संगठन में 19 देश और यूरोपियन संघ शामिल हैं। 1999 में जी-20 की स्थापना की गई थी। लेकिन 2008 में इस सम्मेलन में सरकार और राष्ट्रों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया था। 2008 में भारत की तरफ से तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने हिस्सा लिया था।
किन महाद्वीपों के देश होते हैं शामिल-सदस्य वैश्विक जीडीपी का करीब 85 फीसद और 75 फीसद से अधिक वैश्विक व्यापार के साथ दुनिया की दो तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी वरिष्ठ अधिकारियों के जिम्मे होती है जिन्हें 'शेरपा' कहा जाता है और जो जी-20 के नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- जी-20 के संचालन में गैर सरकारी समूहों का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए अलग-अलग संगठन भी बनाए गए हैं जैसे व्यापार समुदाय के लिए बी-20, नागरिक समाज के लिए सी-20, मजदूर संगठनों के लिए एल-20, विचार मंचों के लिए थिंक-20 और युवाओं के लिए वाइ-20 है।
- 2008 से लेकर अब तक 8 बार सदस्य देशों के प्रमुख बैठक में शामिल हो चुके हैं।- 2016 में जी-20 की बैठक चीन के हांगझू शहर में हुई थी।