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अगर ऐसा हुआ तो भारत-पाकिस्तान कर सकते हैं संयुक्त सैन्य अभ्यास

यह पहला मौका होगा जब अन्य शंघाई सहयोग संगठन के देशों के साथ भारत और पाकिस्तान की सेना संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेगी।

By Rajesh KumarEdited By: Updated: Fri, 09 Jun 2017 12:46 PM (IST)
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अगर ऐसा हुआ तो भारत-पाकिस्तान कर सकते हैं संयुक्त सैन्य अभ्यास

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। भारत और पाकिस्तान रिश्तों के इतिहास पर अगर गौर करें तो अब तक तीन बड़े युद्ध लड़कर सैकड़ों जान गंवा चुके ये दोनों ही देश आज एक ऐसी जगह पर आकर खड़े हैं जहां से एक नए इतिहास की शुरूआत होने जा रही है। जी हां, भले ही यह सुनकर आपको हैरानी हो लेकिन यह सच है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में पूर्ण कालिक सदस्य बनने के बाद भारत और पाकिस्तान को अन्य एससीओ सदस्य देशों के साथ आतंकवाद निरोधी समन्वय के तहत संयुक्त सैन्य अभ्यास करना पड़ेगा।

पहले भी भारत-पाक सेना दिखे साथ-साथ

हालांकि, इससे पहले भी संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों ने अपनी सेवाएं एकसाथ दी है। लेकिन, यह पहला मौका होगा जब अन्य शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देश- चीन, कज़ाखिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तज़ाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ भारत और पाकिस्तान की सेना संयुक्त सैन्य अभ्यास में हिस्सा लेगी। एससीओ का पूर्णकालिक सदस्य बनने के बाद दोनों ही देश ताशकंद के रिजनल एंटी-टेररिज्म स्ट्रक्चर (आरएटीएस) का हिस्सा हो जाएंगे, जो यह अभ्यास कराता है।

SCO के बैनर तले होगा संयुक्त सैन्य अभ्यास

एक अंग्रेजी अख़बार ने अस्ताना में कज़ाखिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज के सीनियर रिसर्ज फेलो और कज़ाखिस्तान में एससीओ की ख़ास जानकारी रखनेवाले इस्कंदर अकईल्बायेव का बयान छापा है जिसमें उन्होंने बताया- इसमें कुछ चिंताएं है खासकर किस तरह से भारत और पाकिस्तान आतंकवाद निरोधी कार्रवाई में कैसे एक दूसरे का सहयोग करेंगे। दोनों ही देशों के बीच अविश्वास की बड़ी खाई रही है और कई मुद्दों पर वह एक दूसरे के खिलाफ है। हालांकि, एससीओ के तहत सीमित आतंकवाद निरोधी सहयोग संभव है.... लेकिन, दोनों देश द्विपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास की जगह बहुपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास को चुन सकते हैं।

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2007 में SCO सदस्यों का हुआ पहला सैन्य अभ्यास

बिसेक सम्मेलन की तरह 'पीस मिशन-2007' नाम से पहला एससीओ सैन्य अभ्यास साउदर्न उरल में किया गया। आतंकवाद निरोधी अभियान को केन्द्रित कर नौ दिनों तक चले इस सैन्य अभ्यास में सभी एससीओ देशों के सदस्यों की सेना के जवानों ने हिस्सा लिया। इस सैन्य अभ्यास में 6,500 सैनिक शामिल थे। जिनमें सबसे ज्यादा रूस से दो हजार सैनिक, चीन से 1700 और कज़ाखिस्तान और ताजिकिस्तान से सेना की छोटी टुकड़ी, किर्गिस्तान के स्पेशल पुलिस प्लैटून और उज्बेक की 20 सदस्य सैन्य अफसरों की टीम शामिल थी। इसमें चीन और रूस से करीब 500 कम्बैट वीकल्स, 80 लड़ाकू विमान शामिल थे।

पाकिस्तान के साथ सहज नहीं होगा भारत

इस पूरे मामले पर भारत में रक्षा जानकारों की थोड़ी अलग राय है। एससीओ सदस्य के तौर पर पाकिस्तान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास के मुद्दे पर Jagran.com से ख़ास बातचीत में रिटायर्ड मेजर जनरल अफसर करीम ने बताया कि किसी भी सूरत में भारत के लिए यह स्थिति सहज नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जो पाकिस्तान खुद पूरे इलाके में दहशतगर्दी फैलाता है अगर वह भारत के साथ 'आतंकवाद निरोधी सहयोग' में एक साथ सैन्य अभ्यास करेंगे तो इसके क्या मायने होंगे? अफसर करीम का मानना है कि एससीओ में भारत की पूर्णकालिक सदस्यता तो ठीक है लेकिन वहां पर भारत की क्या हैसियत होगी और किस तरह का रूख रहेगा यह सब अभी देखने की बात होगी।

अफगानिस्तान समस्या हल करने में मिलेगी मदद

सेंटर फॉर ईस्ट एशियन एंड एससीओ स्टडीज, एमजीआईएमओ यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर एलेक्जेंडर लुकीन (मॉस्को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस अंडर द रशियन फॉरेन मिनिस्ट्री) ने बताया, “भारत और पाकिस्तान दोनों एससीओ से जुड़ने जा रहे है। यह वाकई संगठन को अगले चरण में लेकर जाएगा। इसमें सबसे ज्यादा प्रतिनिधि शामिल होंगे और दुनिया के क्षेत्रीय संगठनों में सबसे बड़ा हो जाएगा। इसके बाद कोई यह नहीं कह पाएगा कि इसमें सिर्फ रूस और चीन का ही वर्चस्व है। इससे जहां एक तरफ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा जो अभी उतना सक्रिय नहीं है तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान समस्याओं को सुलझाने में भी मदद मिलेगी।”
 

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