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लड़ाई हुई तो उत्तर कोरिया का नहीं बल्कि जापान का साथ देगा भारत, ये है वजह

उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच लगातार हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि यदि युद्ध हुआ तो भारत आखिर किसका साथ देगा।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 19 Sep 2017 09:58 AM (IST)
लड़ाई हुई तो उत्तर कोरिया का नहीं बल्कि जापान का साथ देगा भारत, ये है वजह

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। उत्तर कोरिया का रुख अमेरिका को लेकर लगातार सख्‍त होता जा रहा है। हाइड्रोजन टेस्‍ट के बाद उसने कल जिस तरह से जापान के ऊपर से एक माह में दूसरी बार मिसाइल दागी है उसने तनाव को बढ़ाने का काम किया है। इसके बाद अब उत्तर कोरिया के सांस्‍कृतिक संबंधों के विशेष प्रतिनि‍धि एजेग्‍जेंड्रा काओ डि बेनो का कहना है कि हमले की सूरत में उत्तर कोरिया अमेरिका पर हाइड्रोजन बम गिराने को तैयार है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी चेतावनी दे डाली है कि उत्तर कोरिया आज की तारीख में अमरीका के किसी भी शहर को निशाना बनाने में सक्षम है। उन्‍होंने यह बात बीबीसी से एक बातचीत में कही है। उत्तर कोरिया के लगातार अडियल रवैये के बाद रूस के राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन ने तीसरा विश्‍व युद्ध छिड़ने तक की आशंका जाहिर की थी। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी है कि यदि युद्ध हुआ तो भारत आखिर किसका साथ देगा।

तीसरे विश्‍व युद्ध की संभावना कम

हालांकि ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत इस बात को सहीं नहीं मानते हैं। Jagran.Com से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच युद्ध और तीसरे विश्‍व युद्ध की आशंका लगभग न के ही बराबर है। अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती है। जबकि विश्‍व युद्ध की आशंका उस वक्‍त तो हो सकती है जब समान ताकत वाले दो देश आपस में भिड़ते हैं। लेकिन यहां पर परिस्थिति बिल्‍कुल अलग है।

गलतफहमी में उत्तर कोरिया

प्रोफेसर पंत का कहना है कि उत्तर कोरिया को लगता है कि वह जिस तर्ज पर परमाणु परीक्षण कर रहा है उससे वह अमेरिका पर हमला करने में सक्षम हो गया है, लेकिन ऐसा है नहीं। उन्‍होंने कहा कि परमाणु हथियारों का परीक्षण करना और उन्‍हें हमले के लिए इस्‍तेमाल करना दोनों अलग-अलग बातें हैं। तीसरे विश्‍व युद्ध की अटकलों को नकारने वाले पंत यह जरूर मानते हैं कि उत्तर कोरिया से खतरा सीधेतौर पर दुनिया को नहीं बल्कि सबसे अधिक खतरा दक्षिण कोरिया और जापान को है।

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जापान और दक्षिण कोरिया को सबसे अधिक खतरा

वह मानते हैं कि यदि अमेरिका और उत्तर कोरिया में किसी भी सूरत से युद्ध के आसार बनते हैं तो इसका सीधा खतरा जापान और दक्षिण कोरिया को ही है। इसकी वजह यह है कि यह दोनों ही देश उत्तर कोरिया की मिसाइलों की जद में आते हैं। युद्ध की स्थिति में क्‍योंकि उत्तर कोरिया के पास अमेरिका तक मार करने वाली न तो तकनीक है, न ही मिसाइल, ऐसे में वह अपनी भड़ास इन्‍हीं दोनों देशों पर निकालेगा। लिहाजा इन दोनों को ही उत्तर कोरिया से सबसे बड़ा खतरा है। यूं भी उत्तर कोरिया ने दूसरी बार जापान के ऊपर से मिसाइल दाग कर अपनी मंशा को उजागर किया ही है।

युद्ध हुआ तो भारत देगा जापान का साथ

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी ने अपनी हाल ही में हुई भारत यात्रा के दौरान उत्तर कोरिया का मसला भी उठाया था। भारत ने भी उत्तर कोरिया द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण की आलोचना की है। भारत और जापान के बीच दिए गए साझा बयानों में भी इस बात का जिक्र किया गया था। प्रोफेसर हर्ष मानते हैं कि उत्तर कोरिया के मसले पर भारत पूरी तरह से जापान का साथ देगा। इसकी वजह यह भी है कि जापान ने चीन के खिलाफ खुलेतौर पर डोकलाम मुद्दे पर भारत का साथ दिया था। लिहाजा भारत इस मुद्दे को नहीं छोड़ेगा। यदि उत्तर कोरिया और अमेरिका में युद्ध की सूरत आई भी तो भी भारत जापान का साथ देगा। उनका यह भी कहना है कि जापान के साथ भारत के कूटनीतिक के साथ–साथ रणनीतिक भी है।

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अमेरिका के लिए भी ये है बड़ी समस्या

जापान और दक्षिण को‍रिया के इस डर को देखते हुए अमेरिका के लिए भी यह चिंता काफी बड़ी है आखिर कैसे इन दोनों को इस डर से निकाला जाए। यहां पर यह भी खास है कि दक्षिण कोरिया में तो अमेरिका ने थाड मिसाइलों को तैनात किया है। लेकिन चीन इसका विरोध करता आ रहा है। लेकिन अमेरिका अभी तक जापान और दक्षिण कोरिया को संतुष्ट करने में नाकाम दिखाई दे रहा है। कई प्रयासों के बाद भी उत्त‍र कोरिया लगातार मिसाइल परीक्षण कर रहा है। जापान के ऊपर से दो मिसाइलों को वह अब तक दाग चुका है। ऐसे में यदि कोई मिसाइल विफल हो गई तो इसका सीधा निशाना जापान ही होगा, जिससे काफी तबाही हो सकती है।

चीन की जिम्मेदारी ज्‍यादा

उत्तर कोरिया को रोकने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध कितने कारगर साबित होंगे, इस संबंध में उनका कहना था कि इसका असर तो जरूर होगा। उत्तर कोरिया को रोकने के लिए चीन की स्थिति पर उनका जवाब था कि चीन उत्तर कोरिया के आयात और निर्यात में नंबर वन की भूमिका निभाता है, लिहाजा उसकी जिम्‍मेदारी ज्‍यादा हो जाती है। अमेरिका ने भी इस बात को कई बार दोहराया है कि चीन उत्तर कोरिया बातचीत के लिए राजी करे और परमाणु परीक्षणों को रोकने के लिए कदम उठाए। हालांकि अमेरिका ने यह भी कहा है कि यदि चीन इसमें कामयाब नहीं होता है तो फिर सीधेतौर पर दखल देगा। यहां पर यह भी बात ध्‍यान में रखने वाली है कि अमेरिका ने चीन समेत रूस को भी उत्तर कोरिया के खिलाफ एक्‍शन लेने को कहा है।

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यूएनएससी के प्रतिबंधों पर भारत का रुख

गौरतलब है कि उत्तर कोरिया से चीन का करीब 84 फीसद निर्यात और करीब इतना ही आयात होता है। वहीं भारत का भी उत्तर कोरिया से व्‍यापार होता है। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि यूएनएससी के प्रतिबंधों की सूरत में भारत इस कमी को कैसे पूरा करेगा। इस पर पंत का कहना था कि भारत का व्‍यापार उत्तर कोरिया से काफी कम है और धीरे-धीरे भारत इसको और कम कर रहा है। यहां पर यह बात काफी खास है कि भारत किसी देश द्वारा लगाए प्रतिबंधों को नहीं मानता है, लेकिन संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के लगाए प्रतिबंधों को भारत जरूर मानेगा।

कुवैत भी करेगा उत्तर कोरिया के डिप्लोमेट को निष्कासित

उत्तर कोरिया के अडि़यल रवैये के बाद कुछ देशों ने उसके डिप्लोमेट्स को देश निकाला तक दे दिया है। पिछले ही दिनों मैक्सिको ने उत्तर कोरिया के डिप्लोमेट्स को देश निकाला दिया था। अब कुवैत ने भी ऐसा कदम उठाने का फैसला लिया है। UNSC द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद कुवैत ने अपने यहां से उत्तर कोरिया के डिप्लोमेटिक स्टाफ में कटौती करने का फैसला किया है। इसके अलावा कुवैत सरकार ने अब उत्तर कोरिया के लोगों को वीजा देने से भी इंकार कर दिया है। मौजूदा समय में उत्तर कोरिया के करीब छह हजार लोग कुवैत में नौकरी कर रहे हैं। यहां पर यह बता देना भी जरूरी होगा कि भारत के उत्तर कोरिया से वर्षों से कूटनीतिक संबंध हैं। दोनों देशों के राजदूत भी एक दूसरे देश में मौजूद हैं। ऐसे में क्या भारत भी मैक्सिको और कुवैत जैसे देशों की कतार में शामिल होगा। इस पर प्रोफेसर पंत का कहना था कि इसके आसार फिलहाल कम ही दिखाई देते हैं कि भारत ऐसा कोई कदम उठाएगा।

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