जानें, कैसे खुद कश्मीरी मुसलमान ही कलंकित कर रहे हैं कश्मीरियत को
मौसीन खान ने टिवटर पर लिखा, आखिर एक आतंकी के शव को आईएस के झंडे में लपेटने का क्या मतलब? यह आजादी है या आईएस से मिलन?
नई दिल्ली, जागरण न्यजू नेटवर्क। अपने अधिकारों और तथाकथित आजादी की मांग के सिलसिले में बात-बात पर कश्मीरियत का हवाला देने वाले कश्मीर घाटी के तमाम मुस्लिम न केवल कश्मीरियत के उलट काम कर रहे हैं, बल्कि उसे कलंकित भी कर रहे हैं। इसका एक प्रमाण शनिवार को तब मिला जब बीते दिनों हजरतबल के निकट जकूरा में मारे गए आतंकी मुगीस मीर के अंतिम संस्कार के मौके पर सबसे खूंखार आतंकी संगठन आईएस के झंडे फहराए गए।
हद तो यह रही कि इस दौरान आतंकी मुगीस के शव को भी आईएस के झंडे से लपेटा गया। मुगीस हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी था, लेकिन कुछ समय पहले अलकायदा से जुड़े आतंकी संगठन अंसार उल गजवा ए हिंद से जुड़ गया था। इस संगठन का सरगना आतंकी जाकिर मूसा है। शुक्रवार को जकूरा में मुगीस के साथ मुठभेड़ के दौरान जम्मू कश्मीर पुलिस के सब इंस्पेक्टर इमरान अहमद टाक को शहादत का सामना करना पड़ा था।
शहीद अफसर से ज्यादा आतंकी जनाजे में भीड़
कश्मीरियों ने इमरान अहमद टाक की शहादत पर अफसोस अवश्य जताया, लेकिन उन्होंने आतंकी मुगीस की मौत पर मातम मनाने का काम कहीं बढ़-चढ़कर किया। यह अंतर इन दोनों के जनाजे के वक्त उमड़ी भीड़ में भी दिखा। अलगाववाद और आतंकवाद समर्थक कश्मीरी मुसलमानों के इस रवैये का ही यह नतीजा रहा कि इमरान अहमद टाक के अंतिम संस्कार में अपेक्षाकृत कम भीड़ नजर आई और आतंकी मुगीस के अंतिम संस्कार के वक्त खासी भीड़ देखने को मिली।
आतंकी मुगीस मीर के जनाजे में उमड़ी भीड़
आतंकी मुगीस को दफनाए जाने के दौरान भी बहके कश्मीरियों की हरकतों के चलते श्रीनगर के बाहरी इलाके में कर्फ्यू जैसी सख्ती बरतनी पड़ी और स्कूल कालेज बंद करने का फैसला लेना पड़ा। यह फैसला मुगीस के समर्थकों की ओर से उत्पात मचाने की आशंका के चलते किया गया। वहीं दूसरी ओर सब इंस्पेक्टर इमरान टाक को दफनाने के दौरान ऊधमपुर में उनके गृहनगर बसंतगढ़ में केवल स्थानीय बाजार में उनकी शहादत के सम्मान में बंदी देखने को मिली।
शहीद अफसर के अंतिम संस्कार में भीड़ में कमी
कश्मीरी मुसलमानों के रवैये पर खुद घाटी के लोग हैरान
कश्मीरी मुसलमानों के ऐसे रवैये पर खुद कश्मीर घाटी के लोगों ने हैरानी जाहिर की और साथ ही देश से बाहर रह रहे कश्मीरियों ने भी। कश्मीरी मुस्लिम और यूरोप की एक मानविधकार संस्था के सदस्य जावेद कुरैशी ने कहा, मुगीस के अंतिम संस्कार में आईएस के झंडे लहराकर हम दुनिया को यही बता रहे हैं कि हम दुनिया के सबसे बर्बर आतंकी संगठन की विचारधारा के साथ हैं और दूसरी ओर यह भी उम्मीद करते हैं कि विश्व हमारी तकलीफों पर ध्यान दे और हमारे बारे में बात करे। हमने होश खो दिए हैं।
आतंकी को आईएस झंडे में लपेटने पर उठ रहा सवाल
मौसीन खान ने टिवटर पर लिखा, आखिर एक आतंकी के शव को आईएस के झंडे में लपेटने का क्या मतलब? यह आजादी है या आईएस से मिलन? आतंकी मुगीस को दफनाने के दौरान जिस तरह आईएस के झंडे लहराए गए उससे यह भी साफ हो गया कि कश्मीरी अलगाववादी अलकायदा और आईएस को एक ही नजर से देखते हैं। मुगीस के लिए मातम मनाती भीड़ के बीच जिस तरह लश्कर और पाकिस्तान के झंडे नदारद दिखे उससे यह भी संकेत मिला कि अलगाववादी पाकिस्तान के छलावे को समझ चुके हैं, लेकिन जिस सच को वे समझने से इन्कार कर रहे हैं वह यह है कि अगर वे आईएस आदि के झंडे इसी तरह लहराते रहे तो दुनिया में कोई भी और यहां तक कि इस्लामी देश भी उनकी ओर ध्यान देने वाले नहीं हैं।