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अमेरिका और उत्‍तर कोरिया के बीच दुश्‍मनी का है लंबा इतिहास

अमेरिका और उत्तर कोरिया में दुश्‍मनी का इतिहास काफी पुराना है। इस इतिहास पर कुछ खास नजर...

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 09 Jul 2017 09:57 AM (IST)
अमेरिका और उत्‍तर कोरिया के बीच दुश्‍मनी का है लंबा इतिहास

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। नॉर्थ कोरिया जहां लगातार मिसाइल का परीक्षण कर सभी धमकियों और अपीलों को दरकिनार कर रहा है, वहीं अमेरिका बार-बार कह रहा है कि अब उसके सब्र का बांध टूट रहा है। हाल ही में उत्तर कोरिया ने अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर अमेरिका को भी चिंता में डाल दिया है। अब पहली बार अमेरिका को भी लगने लगा है कि उत्तर कोरिया से उसको खतरा बढ़ गया है, क्‍योंकि उसका यह मिसाइल परीक्षण पूरी तरह से सफल रहा है। इतना ही नहीं भारत ने भी पहली बार इस बारे में अपना मुंह खोला है और उत्तर कोरिया को विश्‍व के साथ-साथ भारत के लिए भी खतरा बताया है।

विमानवाहक पोत और थाड की तैनाती

मौजूदा समय में अमेरिका का विमान वाहक पोत कार्ल विल्सन पश्चिमी प्रशांत महासागर में तैनात है, जबकि दक्षिण कोरिया में भी उसने सबसे घातक मिसाइल सिस्टम 'थाड' को तैनात किया हुआ है। लेकिन, इन सभी के बीच बार-बार एक सवाल जरूर जहन में उठता है कि आखिर इन दाेनों के बीच इतनी तनातनी क्‍यों है? उत्तर कोरिया, अमेरिका को लेकर आखिर हर वक्‍त क्‍यों आग-बबूला रहता है और वह उससे किस बात का बदला लेना चाहता है? आज हम इस दुश्‍मनी के इतिहास पर ही निगाह डालेंगे।

नार्थ कोरिया में सुलगती बदले की आग

दरअसल इन दोनों के बीच तनातनी का इतिहास काफी पुराना है। 1910 में कोरिया भी जापान का हिस्‍सा था। 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जर्मनी और जापान घनिष्ठ मित्र थे। द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद मुख्य विजेता शक्तियों अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ ने कोरिया को जापान से छीनकर उसका भी विभाजन कर दिया। कोरिया प्रायद्वीप पर 38 अंश अक्षांश पर इसके विभाजन की रेखा खींच दी गई। इस अक्षांश के उत्तर का हिस्सा रूस और चीन की पसंद के अनुसार एक कम्युनिस्ट देश बना और उत्तर कोरिया कहलाया। यहां पर रूस और चीन के समर्थन वाली साम्यवादी सरकार बनी। दक्षिण का हिस्सा अमेरिका और उसके मित्र देशों की इच्छानुसार एक पूंजीवादी देश बना और दक्षिण कोरिया कहलाया।

नार्थ कोरिया का साउथ कोरिया पर हमला

25 जून 1950 को उत्तर कोरिया के प्रमुख किम सुंग ने दक्षिण कोरिया पर हमला बोल दिया। इस युद्ध में उत्तर कोरिया को अप्रत्‍याशित जीत मिली। लेकिन जीत का जश्‍न मनाने से पहले ही उसको अमेरिका ने तगड़ा झटका दिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक प्रस्‍ताव पारित करवा लिया, जिसके बाद अमेरिका के झंडे तले सहयोगी देशों की सेना दक्षिण कोरिया की मदद के लिए वहां पहुंच गई। इन सेनाओं ने युद्ध की तस्‍वीर ही बदलकर रख दी थी। नतीजा यह हुआ है कि उत्तर कोरिया को पीछे हटना पड़ा और वह जीती हुई बाजी हार गया।

उत्तर कोरिया की बर्बादी पर खत्‍म हुआ 'कोरियाई युद्ध'

1953 में युद्ध की समाप्ति की घोषणा कर दी गई। तभी से उत्तर कोरिया को अमेरिका एक कांटे की तरह चुभ रहा है। इतने वर्षों से उसकी अमेरिका से बदला लेने की आग ठंडी नहीं पड़ी है। आलम यह है कि वहां उत्तर कोरिया में अमेरिका का नाम लेना भी अपराध माना जाता है। एक लेख में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कोरियन इतिहास के प्रोफेसर चार्ल्स के. आर्मस्ट्रांग ने लिखा कि इस युद्ध के अंत में मरनेवाले, घायल और गुम हुए कोरियाई लोगों की संख्या करीब तीस लाख थी, जो कि इनकी कुल आबादी का करीब 10 फीसदी थी।

उत्तर कोरिया के सबसे अधिक लोग मारे गए

इस युद्ध में सबसे अधिक लोग उत्तर कोरिया के मारे गए थे। उन्‍होंने लिखा है कि मानवीय तबाही और जानमाल की क्षति दोनों ही तरफ व्यापक तौर पर हुई, लेकिन नॉर्थ में अमेरिका की तरफ से की गई भारी बमबारी के चलते ज्यादा तबाही हुई। अमेरिकी मिलिट्री लीडर्स ने उस वक्त कोरियाई युद्ध को लिमिटेड वॉर कहा, क्योंकि उन्होंने इसे कोरियाई प्रायद्वीप के आगे नहीं फैलने दिया था।