शुभ नहीं सामान्य, इलाहाबाद में गंगा हुई पूर्ववाहिनी; संगम हुआ दूर
जानकारों का मानना है कि माघ मेला क्षेत्र में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को शहर की ओर से संगम तक पहुंचने में थोड़ी पदयात्रा करनी पड़ेगी।
इलाहाबाद (संजय कुशवाहा)। माघ मेला आने वाला है और गंगा-यमुना का संगम शहर की ओर से दूर हो चला है। यानी गंगा की धारा इस बार फिर से पूर्ववाहिनी हो गई है। अब इन नदियों का मिलन झूंसी के उल्टा किला के करीब छतनाग के सामने हो रहा है। यानी अकबर के किले के पास स्थित संगम नोज से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे। गंगा की धारा में इस तरह का बदलाव सामान्य बात है, लेकिन इस बार इसमें कुछ तेजी दिखी है। माघ माह में संगम स्नान के लिए प्रयाग पहुंचने वाले लाखों श्रद्धालुओं को अब थोड़ी पदयात्रा करनी पड़ेगी। हालांकि झूंसी की ओर से पहुंचना आसान होगा।
थोड़ी पदयात्रा ही सही : जानकारों का मानना है कि माघ मेला क्षेत्र में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को शहर की ओर से संगम तक पहुंचने में थोड़ी पदयात्रा करनी पड़ेगी। संगम में रेत बिखरी होने के कारण पैदल चलना आसान नहीं होता है। आम जमीन पर दस मिनट में जितनी दूरी तक पैदल चला जा सकता है, रेत पर उसका आधा ही चला जा सकता है। हां, गंगा के इस रुख से झूंसी क्षेत्र में कल्पवास करने वालों को जरूर राहत मिलेगी।
पच नहीं रही बात : एक पखवाड़े में संगम का इतना खिसक जाना न तो पुरोहितों को पच पा रहा है और न ही नाविकों की समझ में यह बात आ रही है। गंगा का यह रूप देख संत भी आश्चर्यचकित हैं और इसे मां की महिमा बता रहे हैं। एक बुजुर्ग नाविक कहते हैं कि गंगा अपने हिसाब से बहती हैं। उनको किधर मुड़ना है, सिर्फ वही जानती हैं।
बदलती है धारा : यहां यह बताना आवश्यक है कि संगम क्षेत्र में गंगा पूर्ववाहिनी होती हैं तो संगम शहर की ओर से दूर चला जाता है। अगर गंगा पश्चिमवाहिनी होती हैं तो वह शहर की ओर के तट की ओर आ जाती हैं। यमुना का प्रवाह स्थिर रहता है। दोनों तटों में चट्टान होने के कारण वह सदैव एक ही मार्ग में बहती है।
शुभ नहीं, सामान्य : यहां आम मान्यता है कि अगर गंगा खुद आकर यमुना से मिलती हैं तो इसका फल शुभ होता है। गंगा से मिलने यमुना को जाना पड़ता है तो उसका फल सामान्य रहता है। गंगा के पूर्ववाहिनी होना शुभ नहीं, सामान्य है। जब वह यमुना से मिलने आती हैं तो धारा पश्चिमवाहिनी हो जाती है। जब यमुना को गंगा से मिलने जाना पड़ता है तो धारा पूर्ववाहिनी हो जाती है।
क्या कहता है इतिहास : टीकरमाफी आश्रम के महंत स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्म्चारी कहते हैं- मुझे याद है, 1965 के कुंभ मेले के दौरान गंगा अपने पेटे के बीचों-बीच बह रही थीं, इसलिए संगम बिल्कुल अरैल के सामने था। उस समय गंगा पश्चिमवाहिनी थीं। 1977 के कुंभ में भी गंगा पश्विमवाहिनी थीं। इसके बाद 1982 के अद्र्धकुंभ में पूर्ववाहिनी हो गई थीं। 88 में फिर पश्चिमवाहिनी हो गईं। 1995 में गंगा की धारा बिल्कुल झूंसी की ओर मुड़ गई थी। नदी मनसइता नाले से सटकर बह रही थी।
एक कारण यह भी : सिंचाई विभाग बाढ़ प्रखंड के अधिशासी अभियंता मनोज सिंह ने बताया कि बांधों में एकत्र पानी जब छोड़ा जाता है तो धारा में परिवर्तन देखने को मिलता है। जब यमुना में पानी कम हो जाता है तो गंगा पश्चिमवाहिनी हो जाती हैं और जैसे ही यमुना का पानी बढ़ता है।
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