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स्वच्छ भारत की एक तस्वीर यह भी, यहां कचरे का नामोनिशान तक नहीं

जयपुर शहर से करीब 32 किलोमीटर दूर जयपुर-किशनगढ़ हाइवे पर दहमी कलां गांव में बना मणिपाल विश्वविद्यालय स्वच्छता के मामले में दी गई रैकिंग पर पूरी तरह खरा उतरता है।

By Digpal SinghEdited By: Updated: Sat, 23 Sep 2017 05:37 PM (IST)
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स्वच्छ भारत की एक तस्वीर यह भी, यहां कचरे का नामोनिशान तक नहीं

शैक्षणिक संस्थानों के स्वच्छता सर्वेक्षण में देश में दूसरे स्थान पर रहे जयपुर के मणिपाल विश्वविद्यालय में पानी से लेकर कचरा और कागज सब कुछ रीसाइकिल होता है। यहां कचरा ‘वेस्ट’ नहीं होता, बल्कि बायोगैस के रूप में उसका ‘बेस्ट’ इस्तेमाल होता है। इसी कारण इस संस्थान ने देश के स्वच्छतम संस्थानों में जगह बनाई है। जागरण संवाददाता मनीष गोधा की रिपोर्ट...


तस्वीर स्वच्छता की

जयपुर शहर से करीब 32 किलोमीटर दूर जयपुर-किशनगढ़ हाइवे पर दहमी कलां गांव में बना मणिपाल विश्वविद्यालय स्वच्छता के मामले में दी गई रैकिंग पर पूरी तरह खरा उतरता है। पूरे कैम्पस में कागज का एक टुकड़ा भी नहीं मिलेगा। मेस और कैंटीन भी पूरी तरह साफ सुथरी नजर आती है। कैंपस के एकेडमिक ब्लॉक से लेकर प्रशासनिक और छात्रावासों तक हर ओर सफाई का उच्च स्तर नजर आता है।

यहां आधुनिकत शौचालय हैं, जिनमें दिन में तीन-चार बार सफाई होती है और इसका रिकॉर्ड रखा जाता है। हर महत्वपूर्ण जगह पर आपको कचरापात्र रखे हुए मिल जाएंगे। रसोई पूरी तरह से आधुनिक है। कचरे से बायोगैस बनती है, जो रसोई में काम आती है। सब्जियों के लिए किचन गार्डन है। पूरे कैंपस में छतों पर सोलर पैनल लगे हैं। इनसे अभी 850 किलोवॉट बिजली बनती है।

- 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, जिनमें 1500 किलोलीटर सीवेज ट्रीटमेंट होता है।

- 4 वर्षा जल संरक्षण ढांचे, जिनमें 21 हजार किलोलीटर पानी स्टोर होता है

- 3600 छात्रों की क्षमता वाले दो फूड कोर्ट भी यहां हैं।

संकल्प से सिद्धि

करीब 154 एकड़ में बने इस कैंपस की डिजाइनिंग मशहूर वास्तुविद हफीज कांट्रेक्टर ने की थी और मणिपाल समूह इसे अपना ड्रीम कैम्पस मानता है। यहां के वाइस चांसलर प्रोफेसर संदीप संचेती का कहना है कि इस कैंपस में हम जो कुछ कर पा रहे हैं, उसके पीछे हमारे निदेशक मंडल की यह सोच है कि इसे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का कैंपस बनाना है। कैंपस में वाहनों का प्रवेश बंद है। लोग पैदल चलते हैं। किसी को दिक्कत है तो उसके लिए गोल्फ कार्ट उपलब्ध है।

यहां की रजिस्ट्रार डॉ. वंदना सुहाग का कहना है कि हमारा समूह हर नया प्रयोग सबसे पहले इस कैंपस में करता है। इसे पर्यावरण के अनुकूल बनाया गया है और इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि यह स्वच्छता और पर्यावरण व जल संरक्षण के मामले में एक मिसाल बने।

एक कदम स्वच्छता की ओर

यहां प्रवेश लेने वाला और कैंपस छोड़कर जाने वाला छात्र एक पौधा लगाता है। विश्वविद्यालय ने आस-पास के पांच गांव दहमीकलां, दहमीखुर्द, सांझरिया, ठीकरिया और बेगस को गोद ले रखा है। यहां विश्वविद्यालय के छात्र और कर्मचारी नियमित रूप से शिविर लगाते हैं।

दहमी कलां के सरकारी स्कूलों में जरूरत पड़ने पर पढ़ाते हैं। गांवों में सार्वजनिक प्रकाश की व्यवस्था और सफाई का प्रबंधन विश्वविद्यालय की ओर से होता है। इसके अलावा रक्तदान शिविर, सफाई अभियान, पर्यावरण संरक्षण अभियान, विधिक जागरूकता शिविर आदि का आयोजन भी किया जाता है।