जिसने समुद्र में खोदी थी पाकिस्तान की कब्र वह था ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’
दिसंबर में पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ समुद्र में जो लड़ाई छेड़ी थी उसका ही जवाब देने के लिए भारत ने ऑपरेशन ट्राइडेंट चलाया था। इसने समुद्र में पाकिस्तान की कब्र खोद दी थी।
नई दिल्ली स्पेशल डेस्क। बांग्लादेश में छिड़ी आजादी की जंग और इसमें भारत के शामिल होने से बौखलाए पाकिस्तान ने 3 दिसंबर को अपनी नौसेना के जरिए भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। इस प्लान के तहत पाकिस्तान ने अपनी सबसे ताकतवर सबमरीन गाजी को दो मोर्चों पर फतह हासिल करने का दायित्व सौंपा था। इनमें से एक था विशाखापट्टनम पर हमला कर उस पर कब्जा करने का, दूसरा था आईएनएस विक्रांत को नष्ट करना। लेकिन समय रहते इसकी जानकारी भारतीय नौसेना को लग गई थी। इसका जिक्र बॉलीवुड की फिल्म ‘द गाजी अटैक’ में भी किया गया है। इसके बाद नौसेना की पूर्वी कमान को जवाबी कार्रवाई करने का आदेश दिया गया। भारतीय जलसीमा में पाकिस्तान की कब्र खोदने के लिए जो अभियान चलाया गया उसका नाम था ‘ऑपरेशन ट्राइडेंट’। 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' के तहत 4 दिसंबर, 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची नौसैनिक अड्डे पर भी हमला बोल दिया था। इस ऑपरेशन की सफलता के मद्देनजर ही हर वर्ष 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाया जाता है।
'ऑपरेशन ट्राइडेंट'
नौसेना प्रमुख एडमिरल एसएम नंदा के नेतृत्व में ऑपरेशन ट्राइडेंट का प्लान बनाया गया था। ट्राइडेंट का मतलब होता है ‘त्रिशूल’। त्रिशूल यानी शिव का संहारक हथियार। इस टास्क की जिम्मेदारी 25वीं स्क्वॉर्डन के कमांडर बबरू भान यादव को दी गई थी। 4 दिसंबर, 1971 को नौसेना ने कराची स्थित पाकिस्तान नौसेना हेडक्वार्टर पर पहला हमला किया था। एम्यूनिशन सप्लाई शिप समेत कई जहाज नेस्तनाबूद कर दिए गए थे। इस दौरान पाक के ऑयल टैंकर भी तबाह हो गए। इस युद्ध में पहली बार जहाज पर मार करने वाली एंटी शिप मिसाइल से हमला किया गया था।
भारतीय नौसेना का था ये प्लान
भारतीय नौसैनिक बेड़े को कराची से 250 किमी की दूरी पर रोका गया और शाम होने तक 150 किमी और पास जाने का आदेश दिया गया। हमला करने के बाद सुबह होने से पहले तेजी से बेड़े को 150 किमी वापस आना था, ताकि वह पाकिस्तानी बमवर्षकों की पहुंच से दूर हो जाएं। रात 9 बजे के करीब भारतीय नौसेना ने कराची की तरफ बढ़ना शुरू किया। रात 10:30 पर कराची बंदरगाह पर पहली मिसाइल दागी गई। 90 मिनट के भीतर पाकिस्तान के 4 नेवी शिप डूब गए। 2 बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और कराची बंदरगाह शोलों से घिर गया। कराची तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। कराची के तेल डिपो में लगी आग को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका। इस हमले में भारतीय नौसेना के निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स शामिल थे। ये सभी बोट्स चार-चार मिसाइलों से लैस थीं।
पीएनएस गाजी का भारतीय जलसीमा में घुसना
इसी दौरान भारतीय नौसेना की पनडुब्बी को सोनार पर पाकिस्तान की एक पनडुब्बी के भारतीय जलसीमा में होने का संकेत मिला, जिसका नाम था ‘गाजी’। जिस नाम से इसको ट्रैक किया गया उसका कोड था ‘काली देवी’। पूर्वी नेवल कमांड के वाइस एडमिरल नीलकंत कृष्नन का मानना था कि पाकिस्तान द्वारा इस सबमरीन को बंगाल की खाड़ी में तैनात करने के पीछे मकसद आईएनएस विक्रांत को नष्ट करना था। खतरे को भांपते हुए आईएनएस विक्रांत को तुरंत अंडमान निकोबार रवाना कर दिया गया और इसकी जगह रिटायर हो चुके आईएनएस राजपूत को तैनात कर दिया गया। इस पूरे मिशन को पोर्ट एक्स-रे का नाम दिया गया था। इसी बीच गाजी को ऑक्सीजन के लिए समुद्री सतह पर आना पड़ा और यह आर्इ्एनएस राजपूत के राडार पर दिखाई दे गई। इसके बाद समुद्र के अंदर मौजूदा भारतीय सबमरीन आईएनएस करंज और गाजी के बीच जंग शुरू हुई, जिसमें गाजी को नष्ट कर दिया गया।
आज भी है रहस्य
यह पनडुब्बी पाकिस्तान ने 1963 में अमेरिका से लीज पर ली थी। इसके बाद 1964 में पाकिस्तान ने इसे खरीद लिया था। यह पनडुब्बी दुश्मन पर तेजी से सटीक हमला करने के लिए जानी जाती थी। इसमें टारपीडो के अलावा समुद्र में माइंस बिछाने की अदभुत क्षमता थी। हालांकि इसके बाद भी पीएनएस गाजी के नष्ट होने को आज भी एक रहस्य माना जाता है। सरकारी दस्तावेजों में भी इसी तरह का जिक्र किया भी गया है। यहां तक कि पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जेकब समेत एडमिरल अरुण प्रकाश और एडमिरल एसएम नंदा ने भी इसका जिक्र किया है। वहीं पाकिस्तान हमेशा से ही इस बात को कहता रहा है कि गाजी अपनी ही कुछ खामियों की वजह से जलमग्न हुई थी।
आईएनएस खुकरी का नष्ट होना
बहरहाल, यह लड़ाई सिर्फ गाजी के हमले और इसके नष्ट होने तक ही सीमित नहीं थी। इसी जंग में पाकिस्तान की एक और सबमरीन हंगोर के हाथों भारतीय नौसेना के दो जंगी जहाज आईएनएस कृपाण और आईएनएस खुकरी नष्ट हो चुके थे। आईएनएस खुकरी के कप्तान महेंद्र नाथ मुल्ला ने अपने जहाज के साथ ही बिना किसी भय के जलसमाधि ले ली थी। बाद में उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से भी नवाजा गया था।
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