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कुछ इधर भी देख ले चीन, तिब्‍बत की आजादी को युवा कर रहे 'आत्‍मदाह'

चीन भारत के सिक्किम में आजादी की आग लगाने की बात करता है लेकिन उस तिब्‍बत को भूल जाता है जिसपर उसने कब्‍जा किया हुआ है और जहां युवा इसकी आजादी के लिए आत्‍मदाह तक कर लेते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 16 Jul 2017 02:56 PM (IST)
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कुछ इधर भी देख ले चीन, तिब्‍बत की आजादी को युवा कर रहे 'आत्‍मदाह'
नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। चीन जहां सिक्किम से सटे इलाकों में अपनी हरकतों को अंजाम दे रहा है और भारत को लगातार धमका भी रहा है, वहीं तिब्‍बत की आजादी के लिए लगातार संघर्ष भी जारी है। यहां यह बात इसलिए भी बतानी जरूरी है क्‍योंकि चीन ने कुछ समय पहले ही धमकी दी थी कि यदि भारत अपने पांव पीछे नहीं खींचता है तो वह सिक्किम में आजादी के नारे की आवाज को बुलंद करेगा। लेकिन दूसरी तरफ तिब्‍बत की आजादी की मांग को वह लगातार दबाता रहा है। आलम यह है कि भगवान बुद्ध की उपदेशस्थली सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय में शुक्रवार को तिब्बत की आजादी के लिए एक छात्र ने आत्मदाह की कोशिश की।

70 फीसद झुलसा छात्र

घटना उस समय हुई जब सुबह करीब साढ़े नौ बजे तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. लोबसांग सांगेय संस्थान के अतिशा हाल में चीन की खिलाफत में भाषण दे रहे थे। तभी कार्यक्रम स्थल से करीब 50 मीटर दूर हॉस्टल से पूर्व मध्यमा द्वितीय वर्ष का छात्र तेनजिंग जोंगे शरीर पर केरोसिन डालकर आग लगाकर सभागार की तरफ दौड़ा। यह देख छात्रों ने किसी तरह आग बुझाई लेकिन तेनजिंग 70 फीसद झुलस चुका था। उसकी हालत गंभीर देख लंका स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब उसे अस्पताल भेजा रहा था तब भी उसके मुंह से निकला कि आत्मदाह को छोड़ कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं। अब समय आ गया है कि पूरा विश्व मिलकर चीन को सबक सिखाते हुए तिब्बत को आजादी दिलाए।

चीनी सेना की हरकतों से था तनाव

तेनजिंग के घर वाले तिब्बती मूल निवासी हैं, लेकिन चीन के कब्जे के बाद दलाई लामा के साथ भारत आ गए थे। विश्वविद्यालय के पद्मसंभव छात्रावास में रहने वाले तेनजिंग का परिवार इन दिनों मैसूर (कर्नाटक) में रहता है। पिछले कुछ समय से लेह-लद्दाख, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर चल रही चीनी सेना की हरकतों को लेकर तेनजिंग तनाव में था। सहपाठियों से वह कहता था कि यही दशा रही तो भूटान पर भी चीन कब्जा कर लेगा।

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घटना बेहद दुखद

तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. लोबसांग सांगेय ने बताया कि घटना के समय मैं भाषण दे रहा था। यह नहीं पता कि कैसे हुआ। यह काफी दुखद है। इस घटनाक्रम से डॉ. लोबसांग व्यथित दिखे। उन्होंने विवि प्रबंधन से बेहतर उपचार कराने का कहा है।

अपनी तरह का अकेला विश्‍वविद्यालय

उत्तर प्रदेश के सारनाथ स्थित केंद्रीय तिब्बती अध्ययन विश्वविद्यालय भारत का स्ववित्तपोषित विश्वविद्यालय है। यह पूरे भारत में अपने ढंग का अकेला विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1967 में हुई थी। उस समय इसका नाम 'केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान' (Central Institute of Higher Tibetan Studies) था। बिखरे हुए तथा भारत के हिमालयीय सीमा प्रदेशों मे रहनेवाले तथा धर्म, संस्कृति, भाषा आदि के संबंध में तिब्बत से जुड़े युवाओं को शिक्षित करने के उद्देश्य से ऐसे विश्वविद्यालय की परिकल्पना सर्वप्रथम जवाहरलाल नेहरू और तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के बीच हुए एक संवाद से साकार हुई। यह संस्थान शुरू में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की शाखा के रूप में कार्य करता था और बाद में 1977 में वह भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक स्वशासित संगठन के रूप में उभरा।

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आजादी के लिए काम करता एक अहम संगठन

भारत में तिब्बतियों के सबसे अहम संगठन का नाम सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन है। यह धर्मशाला के मैकलॉडगंज में स्थित है। यह संगठन 10 देशों के कार्यालय का प्रबंधन करता है। यह कार्यालय तिब्बत के लिए वाणिज्य दूत का काम करते हैं। यह कार्यालय नई दिल्ली, न्यूयार्क, जिनेवा, टोक्यो, लंदन, कैनबरा, पेरिस, मास्को, प्रिटोरिया और ताइपेई में स्थित हैं। कई गैर सरकारी संगठन तिब्बतीय लोगों की संस्कृति अवं आजादी  पर काम करते हैं।

पहले भी दे चुका है एक छात्र जान

बताया जाता है कि शैक्षणिक सत्र 2003-04 के दौरान भी ऐसे ही एक छात्र ने परिसर स्थित कुएं में कूदकर जान दे दी थी। उसकी खुदकशी की वजह भी तिब्बत की आजादी की मांग ही थी। सारनाथ में बसे तिब्बती और वहां अध्ययन-अध्यापन करने वाले युवा व शिक्षक समय-समय पर तिब्बत की आजादी के लिए चीन के खिलाफ प्रदर्शन करते रहते हैं।

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ताकि गूंज दूर तक पहुंचे

शुक्रवार को आत्मदाह का प्रयास करने की वजह भी खास मौके को देखते हुए चुनी गई। चूंकि निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री विश्वविद्यालय में एक दिन पूर्व ही आए थे और घटना के वक्त वे वहीं आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे। माना जा रहा है कि इस वक्त अपने देश की आजादी की मांग को लेकर जान देने की कोशिश भी तेनजिंग ने इसलिए ही की, ताकि उसके इस कदम की गूंज दूर तक पहुंचे, देर तक सुनाई दे।