भारत के इस वैज्ञानिक से इतना डर गया था अमेरिका, करवा दी थी हत्या!
भाभा उन वैज्ञानिकों में से एक थे जिनके नाम से अमेरिका भी कांपता था। अमेरिका को दरअसल इस बात का खौफ पैदा हो गया था कि कहीं भारत उससे आगे न निकल जाए।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। भारत के मशहूर परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपने काम और अपने स्वभाव को लेकर खासा मशहूर थे। इससे भी आगे की बात यह है कि भाभा उन वैज्ञानिकों में से एक थे जिनके नाम से अमेरिका भी कांपता था। अमेरिका को दरअसल इस बात का खौफ पैदा हो गया था कि कहीं भारत उससे आगे न निकल जाए। यही वजह थी कि भाभा को हर हाल में खत्म करने का खौफनाक प्लान अमेरिका ने बनाया और उसको अंजाम भी दिया था। 24 नवंबर 1966 को फ्रांस के माउंट ब्लैंक के आसमान में एक विमान क्रैश हुआ और इसमें मौजूद सभी यात्री मारे गए। इसमें से एक थे डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा।
भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना
भाभा ने ही भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में न्यूक्लियर एनर्जी पर रिसर्च प्रोग्राम शुरू किया था। उन्होंने न्यूक्लियर साइंस पर तब काम करना शुरू किया था दुनिया को इसकी चैन रिएक्शन के बारे में काफी कम जानकारी थी। इतना ही नहीं उस वक्त नाभिकीय उर्जा से विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मानने को तैयार नहीं था। उन्हें 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' भी कहा जाता है।
दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान का मलबा
वर्ष 1966 में फ्रांस के ऐल्प्स पहाडि़यों में दुर्घटनाग्रस्त हुए विमान का मलबा और कुछ मानवीय अवशेषों के मिलने के बाद एक बार फिर से इस हादसे की चर्चा हो रही थी। यहां पर मिले मानवीय अवशेषों की जांच अब बेहद जरूरी हो गई है। इस इलाके में दो विमान हादसे हुए थे। इनमें से पहला हादसा 1950 और दूसरा 1966 को हुआ था। भारत के लिए यह विमान हादसा इसलिए बेहद खास था क्योंकि जो विमान यहां पर 24 जनवरी 1966 को दुर्घटनाग्रस्त हुआ था उसमें भारत के महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा सवार थे। वह इस विमान में वियना एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रहे थे। इस विमान में उस वक्त 117 यात्री सवार थे। भारत को इस विमान दुर्घटना से गहरा धक्का लगा था। लेकिन इस विमान हादसे के पीछे दो तरह की बातें कही जा रही हैं।
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एक थ्योरी के मुताबिक विमान का पायलट उस वक्त जिनेवा एयरपोर्ट को अपनी सही पॉजीशन बताने में नाकाम रहा था और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। लेकिन दूसरी थ्योरी के मुताबिक यह विमान एक हादसे का नहीं बल्कि एक षड़यंत्र के तहत बम से उड़ाया गया था। इस विमान को दुर्घटनाग्रस्त करने के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ था। एक न्यूज वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में कथित तौर पर इस बात का संकेत दिया है कि प्लेन क्रैश में अमेरिकी खुफिया एजेंसी का हाथ था। इसकी वजह भारत के परमाणु कार्यक्रम को पटरी से उतारना था।
18 महीनों में परमाणु बम बना सकता है भारत
अक्टूबर 1965 में भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो से घोषणा की थी कि अगर उन्हें छूट मिले तो भारत 18 महीनों में परमाणु बम बनाकर दिखा सकता है। वह मानते थे और काफी आश्वस्त भी थे कि अगर भारत को ताकतवर बनना है तो ऊर्जा, कृषि और मेडिसिन जैसे क्षेत्रों के लिए शांतिपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम शुरू करना होगा। इसके अलावा भाभा यह भी चाहते थे कि देश की सुरक्षा के लिए परमाणु बम भी बने। हालांकि यह उनका छिपा हुआ अजेंडा था।
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दरअसल भाभा भारत ही नहीं बल्कि विश्व में जाने माने वैज्ञानिक थे। उनका दावा था कि भारत कुछ ही दिनों में परमाणु बम बना सकता है। उनकी दूरदर्शी सोच का ही नतीजा था कि भारत इस क्षेत्र में लगाता तरक्की कर रहा था, जिससे अमेरिका काफी डर गया था। अमेरिका की सोच थी कि यदि भारत इस मुहिम में कामयाब रहा तो यह उसके लिए और पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरनाक होगा। इसके लिए उसने सीआईए की मदद से उस विमान में समान रखने वाली जगह में बम फिट करवाया था। इसके बाद जो कुछ हुआ वह सब दुनिया के सामने है।
सीआईए अधिकारी के हवाले से सामने आई जानकारी
वेबसाइट की रिपोर्ट में अब होमी जहांगीर भाभा से जुड़ी यह जानकारी सामने आ रही है। दरअसल इस वेबसाइट ने 11 जुलाई 2008 को एक पत्रकार ग्रेगरी डगलस और सीआईए के अधिकारी रॉबर्ट टी क्राओली के बीच हुई कथित बातचीत को फिर से पेश किया है। इस बातचीत में सीआईए अधिकारी रॉबर्ट के हवाले से कहा गया है, 'हमारे सामने समस्या थी। भारत ने 60 के दशक में आगे बढ़ते हुए परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था। उन्होंने इस बातचीत में रूस का भी जिक्र किया है जो भारत की मदद कर रहा था। भाभा का उल्लेख करते हुए सीआईए अधिकारी ने कहा, 'मुझपर भरोसा करो, वह खतरनाक थे। उनके साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण ऐक्सिडेंट हुआ। वह परेशानी को और अधिक बढ़ाने के लिए वियना की उड़ान में थे, तभी उनके बोइंग 707 के कार्गो में रखे बम में विस्फोट हो गया।
शास्त्री की मौत में भी सीआईए का हाथ
इस विमान हादसे के बाद इस इलाके में पत्रकारों का समूह भी गया था जिसको वहां पर विमान के कुछ हिस्से भी मिले थे। इसके अलावा वर्ष 2012 में वहां पर एक डिप्लोमेटिक बैग भी मिला जिसमें कलेंडर, कुछ पत्र और कुछ न्यूज पेपर्स थे। रॉबर्ट का कहना है कि सीआईए का हाथ सिर्फ भाभा के विमान को हादसाग्रस्त करने में ही नहीं था बल्कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत में भी था। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। 1953 में जेनेवा में अनुष्ठित विश्व परमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलन में उन्होंने सभापतित्व किया। भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे, तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे। वो कभी भी अपने चपरासी को अपना ब्रीफ़केस उठाने नहीं देते थे।
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