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कश्मीर आपदा: मिट गए जिंदगी के निशान

कुछ दिन पहले तक जिस गांव में लोगों की खूब चहल-पहल थी और बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, अब वहां मौत का सन्नाटा पसरा है। पूरे का पूरा गांव ही पहाड़ के नीचे दब चुका है। गांव में जिदंगी के निशान इस कदर मिट चुके हैं कि लगता ही नहीं कि कभी यहां आबादी हुआ करती थी, जो लोग जिंदा बचे

By Edited By: Updated: Tue, 16 Sep 2014 12:38 PM (IST)
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जम्मू, [रोहित जंडियाल]। कुछ दिन पहले तक जिस गांव में लोगों की खूब चहल-पहल थी और बच्चों की किलकारियां गूंजती थीं, अब वहां मौत का सन्नाटा पसरा है। पूरे का पूरा गांव ही पहाड़ के नीचे दब चुका है। गांव में जिदंगी के निशान इस कदर मिट चुके हैं कि लगता ही नहीं कि कभी यहां आबादी हुआ करती थी, जो लोग जिंदा बचे हैं, वे अन्य जगहों पर जीने का सहारा ढूंढ रहे हैं।

जम्मू संभाग के ऊधमपुर जिले के पंचैरी ब्लॉक में खूबसूरत पहाड़ी ढलान पर बसे सदल गांव के करीब 450 घर सात सितंबर को भूस्खलन से मलबे में तबदील हो गए। करीब 37 लोग पहाड़ के नीचे दब गए, आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है। कुछ लोग भाग्यशाली रहे, जो खतरे को भांपते हुए पहले ही गांव खाली करके सुरक्षित जगह निकल गए। अब तक मलबे से दस शव बरामद किए जा चुके हैं। गांव का एक पूरा परिवार ही पहाड़ के नीचे दबा हुआ है। शौंकू राम के परिवार में नौ सदस्य थे, उनमें से कोई भी नहीं मिल पाया। इसी तरह कपूर परिवार के भी पांच सदस्य पहाड़ के नीचे दबे हैं।

सरकार ने मृतकों के लिए साढ़े तीन-तीन लाख रुपये देने की घोषणा तो की है, लेकिन जिस परिवार का कोई सदस्य ही नहीं रहा, उसमें किसे राहत दी जाएगी। वहीं 500 से अधिक लोग जो इस क्षेत्र से बचकर निकाले हैं, वे भी प्रशासनिक सहायता का इंतजार कर रहे हैं। इन लोगों के आश्रय और खाने के लिए कोई प्रबंध नहीं किए गए हैं। कुछ लोगों को टैंट जरूर मिले हैं, लेकिन उनकी हालत ऐसी है कि रात गुजारना भी मुश्किल है। गांव की पंचायत घर की इमारत भी धराशायी हो गई है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक खुले में रात गुजारने को मजबूर हैं। जिंदगी उनके लिए मौत से भी बदतर हो गई है। सेना पहाड़ के नीचे दब चुके शवों की तलाश कर रही है और क्षेत्र में बदबू से महामारी की आशंका बनी हुई है।

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