नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।  भारत में महिलाओं और पुरुषों में बीते तीन दशक में मोटापे में तेजी से ईजाफा हुआ है। महिलाओं में मोटापे में आठ गुने की बढ़ोतरी हुई है जबकि पुरुषों में 11 गुना की वृद्धि हुई है। महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 1.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 9.8 फीसदी और पुरुषों में यह 0.5 फीसदी से 5.4 फीसदी हो गई है। जबकि महिलाओं में कम वजन की दर 1990 में 41.7 फीसदी से घटकर 2022 में 13.7 फीसदी और पुरुषों में यह 39.8 फीसदी से 12.5 फीसदी हो गई।

अध्ययन के मुताबिक, भारत में लड़कियों में मोटापे की दर 1990 में 0.1 फीसदी से बढ़कर 2022 में 3.1 फीसदी और लड़कों में यह 0.1 फीसदी से 3.9 फीसदी हो गई है। लड़कियों और लड़कों में मोटापे के मामले में भारत 2022 में दुनिया में 174वें स्थान पर था। विरोधाभास के तौर पर भारत में कम वजन वाले वयस्कों की संख्या सबसे अधिक है। भारत, चीन, जापान (केवल महिलाओं के लिए), इंडोनेशिया,इथियोपिया, और बांग्लादेश में कम वजन वाले लोगों की तादाद अधिक है। 2022 में मोटापे से ग्रस्त महिलाओं और पुरुषों की संख्या 504 मिलियन थी और 374 मिलियन थी। 1990 के मुकाबले इसमें 377 मिलियन और 307 मिलियन की वृद्धि हुई। 2022 में मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की सबसे बड़ी संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और भारत थे। लैंसेट के अध्ययन में भारत की 70% शहरी आबादी को मोटापे या अधिक वजन वाली श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिससे देश मोटापे के संकट में है । लैंसेट अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में 30 मिलियन वयस्क या तो अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं, और 62 मिलियन मधुमेह भारतीयों में मोटापे से संबंधित विशेषताएं जैसे शरीर में अतिरिक्त वसा, पेट की वसा आदि समस्याओं से ग्रस्त है।

चिंता की बात यह है कि बच्चों और किशोरों में मोटापे की दर बढ़ने की यह वैश्विक प्रवृत्ति चिंता का कारण है। दस में से तीन स्कूली बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं, जो भारत में मोटापे की बढ़ती दर का संकेत है। कोविड महामारी के बाद इसमें बढ़ोतरी हुई है।

कैलोरी से अधिक लेने और फास्ट फूड से बढ़ सकता है मोटापा

आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर कहते हैं कि आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में मोटापे की समस्या किसी महामारी की तरह बढ़ रही है। पिछले कुछ दशक में भारतीय भी इसकी चपेट में तेजी से आए हैं। इसमें चिंताजनक बात यह है कि किशोर और युवावस्था से ही मोटापा बढ़ने की समस्या देखने को मिलने लगी है। मोटापे का कारण जानने से पहले यह समझना होगा कि मोटापा कहते किसे हैं। असल में शरीर में जरूरत से ज्यादा कैलोरी फैट के रूप में जमा होने लगती है। फैट या चर्बी बढ़ने की इसी प्रक्रिया को मोटापा कहा जाता है।

इसकी परिभाषा से इसका एक कारण स्पष्ट है, वह है जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेना। उम्र, शारीरिक गतिविधियों एवं मेटाबोलिक रेट के आधार पर हर व्यक्ति की कैलोरी की जरूरत अलग होती है। महिलाओं और पुरुषों में भी कैलोरी की आवश्यकता अलग होती है। जब कोई व्यक्ति अपने शरीर के लिए जरूरी कैलोरी से अधिक कैलोरी का सेवन बहुत लंबे समय तक करता है, तो मोटापे की आशंका बढ़ जाती है। यही कारण है कि एक जैसा खानपान रखने वाले दो लोगों का वजन अलग-अलग हो सकता है। ऐसे में जरूरी है कि अपने शरीर की आवश्यकता को समझकर कैलोरी का सेवन करें। जहां तक संभव हो व्यायाम व अन्य शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से कैलोरी जलाते भी रहें। इससे शरीर पर चर्बी नहीं चढ़ती है। फास्ट फूड, मैदे से बने खाद्य पदार्थ और बहुत मीठा खाना अक्सर वजन बढ़ने का कारण होता है।

30 सालों से एनीमल बिहेवियर पर काम कर रहे वैज्ञानिकों डेविड राउबनहाइमर और स्टीफन सिंपसन ने मनुष्यों की डाइट को लेकर महत्वपूर्ण काम किया है। उनके द्वारा की गई स्टडी प्लसवन जनरल में प्रकाशित हुई है। रूबेनहाइमर और सिम्पसन ने बताया , 'अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ हमें मोटा बनाते हैं, लेकिन इसलिए नहीं कि हमें वसा और कार्ब्स के लिए ज्यादा भूख लगती है, जैसा कि अक्सर माना जाता है। 'बल्कि, ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रोटीन के लिए हमारी भूख वसा और कार्ब सेवन को सीमित करने की हमारी क्षमता से अधिक है। इसलिए, जब प्रोटीन वसा और कार्ब्स द्वारा डाइलूट हो जाता है है, तो इसके लिए हमारी भूख उन तंत्रों पर हावी हो जाती है जो आम तौर पर हमें वसा और कार्ब्स खाना बंद करने के लिए कहते हैं।'

कई अन्य बीमारियों का कारण बनती है मोटापा

सी.के.बिरला अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के हेड डा. रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि मोटापा एक बीमारी है। यह ऐसी बिमारी है जो कई अन्य बीमारियों का कारण बनती है। । इसका सबसे बडा कारण आहार मे प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ओर वसा का होना हे। घर के खाने के बजाय होटल आदि का अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का सेवन करना ऒर साथ मे व्यायाम करने की आदत न होना और दिन भर बैठ कर काम करने से मोटापा बढ़ता है। मोटापा कम करने के लिए खानपान मे कम कैलोरी लेना खासकर कार्बोहाइड्रेट जेसे शक्कर, मैदा, ब्रेड, सफेद चावल आदि का सेवन बंद करना आवश्यक है। गेहूं के बजाय ज्वार बाजरा, या मिस्सी रोटी का सेवन भी मोटापा कम करने के लिए आवश्यक हे। रात को देर से खाना और अधिक कैलोरी का भोजन भी वजन बढ़ने का कारक हैं। नियमित व्यायाम और रोज दस हजार कदम चलना से मोटापे पर नियंत्रण किया जा सकता है।

जेनेटिक कारणों से भी बढ़ता है मोटापा

आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर बताते हैं कि खानपान एवं जीवनशैली के अलावा कुछ लोगों में जेनेटिक कारण से भी मोटापा बढ़ता है। ऐसे लोगों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता होती है। अन्य लोगों की तुलना में ऐसे लोगों को खानपान एवं शारीरिक सक्रियता के मामले में ज्यादा मेहनत करनी होती है। कभी-कभी किसी सर्जरी के बाद या किसी दवा के कारण भी मोटापा बढ़ने की आशंका रहती है। किसी भी इलाज के दौरान अगर अनावश्यक रूप से वजन बढ़ता हुआ प्रतीत हो, तो डॉक्टर से विमर्श करना चाहिए। थॉयरायड की अनियमितता भी वजन बढ़ाती है। इसके नियंत्रण के लिए सही इलाज एवं दवा का नियमित सेवन जरूरी होता है।

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ मेडिसिन के हेड डा. ए.के.गाडपायले का कहते हैं कि किसी व्यक्ति की शारीरिक संरचना, विशेष रूप से वसा जमा करने की उनकी प्रवृत्ति, आनुवंशिक कारकों से प्रभावित हो सकती है। कुछ व्यक्तियों में शरीर में वसा प्रतिशत बढ़ाने की आनुवंशिक प्रवृत्ति मौजूद हो सकती है। हाइपोथायरायडिज्म या पीसीओएस सहित हार्मोनल असंतुलन, चयापचय को प्रभावित कर सकता है, जिससे वजन बढ़ सकता है और शरीर में वसा प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है।

हार्मोनल बदलाव और तनाव भी है प्रमुख कारक

शारदा अस्पताल के डिपॉर्टमेंट ऑफ मेडिसिन के हेड डा. ए.के.गाडपायले का कहना है कि जीवनशैली, खान-पान, शरीर में हार्मोनल बदलाव जैसे कई कारक हैं जो लोगों में वजन बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं। जीवनशैली में बदलाव इसका सबसे बड़ा कारण है। ऊर्जा के लिए शरीर की आवश्यकता से अधिक कैलोरी का सेवन करने से शरीर में वसा का प्रतिशत अधिक हो सकता है। शरीर भोजन से प्राप्त अतिरिक्त ऊर्जा को बाद में उपयोग करने के लिए वसा के रूप में संग्रहित करता है। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, मिठाइयों, अस्वास्थ्यकर वसा और परिष्कृत कार्ब्स से भरपूर आहार के कारण वजन बढ़ना और शरीर में वसा प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है। शरीर में वसा का उच्च प्रतिशत कम या कोई व्यायाम न करने वाली गतिहीन जीवन शैली का परिणाम हो सकता है। शारीरिक गतिविधि कैलोरी कम करने में मददगार होती है। कुछ लोगों का पाचनतंत्र धीमा हो सकता है, जिससे वजन बढ़ने और शरीर में वसा के निर्माण में मदद मिलती है। लंबे समय तक तनाव के कारण अत्यधिक खाना और वजन बढ़ सकता है, खासकर पेट के निचले हिस्से में। तनाव हार्मोन में से एक कोर्टिसोल भी वसा भंडारण को प्रोत्साहित कर सकता है। अपर्याप्त नींद हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकती है जो भूख और भूख के नियमन को प्रभावित करती है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः अधिक खाना और वजन बढ़ना हो सकता है। लोगों का चयापचय धीमा हो जाता है और उम्र के साथ उनकी मांसपेशियां कम होने लगती हैं, जिससे वजन बढ़ाना और शरीर में वसा बढ़ाना आसान हो जाता है।

2019 में भारत में हुई 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी

2019 में, देश में लगभग 20,000 वजन घटाने वाली सर्जरी की गईं, जबकि एक दशक पहले केवल 800 सर्जरी हुई थीं। भारत सरकार अब अपने तीन मिलियन सरकारी कर्मचारियों के लिए वजन घटाने वाली सर्जरी की लागत को कवर करती है, जिससे यह प्रक्रिया व्यापक आबादी के लिए अधिक सुलभ हो जाती है। लैंसेट रिपोर्ट ने आगे खुलासा किया कि लगभग 80 मिलियन भारतीयों, जिनमें 5-19 वर्ष आयु वर्ग के 10 मिलियन व्यक्ति शामिल हैं, को मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया गया है। आर्टेमिस हॉस्पिटल्स, गुड़गांव के जनरल एंड मिनिमली इनवेसिव सर्जरी के डॉ कपिल कोचर के अनुसार मोटापा किसी भी कारण से बहुत ज्यादा बढ़ गया हो तो इलाज से भी राहत संभव है। आज की तारीख में कुछ दवाएं हैं, जो मोटापे को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसके अलावा गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर और सर्जरी की मदद से भी मोटापा कम किया जा सकता है। गैस्ट्रिक बलून प्रोसिजर में पेट में सिलिकॉन का बना एक गुब्बारा डाला जाता है, जो कम खाने में ही पेट भरा अनुभव कराता है। इससे व्यक्ति खाने पर नियंत्रण करते हुए वजन कम करता है। वहीं, सर्जरी के दौरान शरीर से अतिरिक्त चर्बी को हटाया जाता है। मोटापे के इलाज से डायबिटीज एवं हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से भी राहत मिलती है।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में भी सामने आई थी बात

देश में कुछ समय पहले आई नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में आया था कि मोटापे से जूझ रहे लोगों की संख्‍या में भी इजाफा हुआ है। 22 में से 19 राज्‍यों में पुरुषों में मोटापा बढ़ा है। वहीं 16 राज्‍यों में महिलाओं में इसकी वृद्धि देखी गई है। कर्नाटक में सबसे ज्‍यादा महिलाओं में मोटापा देखा गया। यह 6.8 फीसदी रहा. जबकि पुरुषों में सबसे ज्‍यादा मोटापा जम्‍मू-कश्‍मीर में देखा गया। वहां यह 11.1 फीसदी रहा।

मोटापे की वजह से दुनिया भर में हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार डायबिटीज पर खर्च होने वाली 70 फीसद खर्च की वजह मोटापा होता है। कार्डियोवॉस्कुलर बीमारियों की 23 फीसद खर्च और कैंसर के नौ फीसद खर्च में मोटापा जिम्मेदार होता है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका 2020 से 2050 तक मोटापे पर प्रति व्यक्ति 644 डॉलर खर्च करेगा। यह अमेरिका के हेल्थ पर खर्च किए जाने वाले बजट का 14 फीसद होगा। वहीं कनाडा 2020 से 2050 के दौर में प्रति व्यक्ति मोटापे पर 295 डॉलर खर्च करने लगेगा जो कि उसके हेल्थ बजट का 11 प्रतिशत होगा।

रिपोर्ट के अनुसार 36 में 34 ओईसीडी देश के लोग ओवरवेट है और वहां चार में से एक व्यक्ति मोटा है। वहीं इसकी वजह से आयु में .9 साल से 4.2 साल तक की कमी हो रही है।

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि मोटापा कुपोषण के सिर्फ एक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि कम वजन या पतलापन स्पेक्ट्रम का दूसरा छोर है। कुपोषण के दोनों रूप हृदय और यकृत जैसे महत्वपूर्ण अंगों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं, जिससे व्यक्तियों को कई प्रकार की बीमारियों का खतरा होता है।

दुनिया में भी तेजी से बढ़ रहा मोटापा

वैश्विक डेटा विश्लेषण ने चिंता का और कारण प्रदान किया, यह दर्शाता है कि 2022 में दुनिया भर में बच्चों और किशोरों के बीच मोटापे की दर 1990 में दर्ज की गई तुलना में चार गुना अधिक थी। अध्ययन के अनुसार, ब्रिटेन में महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 13.8 फीसदी से बढ़कर 2022 में 28.3 फीसदी और पुरुषों में यह 10.7 फीसदी से 26.9 फीसदी हो गई है। अमेरिका में, महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 21.2 फीसदी से बढ़कर 2022 में 43.8 फीसदी और पुरुषों में 16.9 फीसदी से 41.6 फीसदी हो गई। चीन में, महिलाओं में मोटापे की दर 1990 में 2.0 फीसदी से बढ़कर 2022 में 7.8 फीसदी और पुरुषों के लिए 2022 में 0.8 फीसदी से 8.9 फीसदी हो गई।

मोटापे की वजह से हेल्थकेयर सिस्टम पर खर्च बढ़ा

मोटापे की वजह से दुनिया भर में हेल्थकेयर सिस्टम पर लगातार बोझ बढ़ता जा रहा है। ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार डायबिटीज पर खर्च होने वाली 70 फीसद खर्च की वजह मोटापा होता है। कार्डियोवॉस्कुलर बीमारियों की 23 फीसद खर्च और कैंसर के नौ फीसद खर्च में मोटापा जिम्मेदार होता है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका 2020 से 2050 तक मोटापे पर प्रति व्यक्ति 644 डॉलर खर्च करेगा। यह अमेरिका के हेल्थ पर खर्च किए जाने वाले बजट का 14 फीसद होगा। वहीं कनाडा 2020 से 2050 के दौर में प्रति व्यक्ति मोटापे पर 295 डॉलर खर्च करने लगेगा जो कि उसके हेल्थ बजट का 11 प्रतिशत होगा।

रिपोर्ट के अनुसार 36 में 34 ओईसीडी देश के लोग ओवरवेट है और वहां चार में से एक व्यक्ति मोटा है। वहीं इसकी वजह से आयु में .9 साल से 4.2 साल तक की कमी हो रही है।

यह रिपोर्ट भी करती है पुष्टि

अमेरिका की सबसे बड़ी स्वास्थ्य एजेंसी सीडीसी का कहना है, 2009 और 2010 के बीच अमेरिका में 35.7 फीसदी लोग पहले ही मोटापे से परेशान थे। 2018 तक यह आंकड़ा बढ़कर 42.4 फीसदी हो गया।

ब्रिटेन की 28 फीसदी आबादी मोटापे से जूझ रही है।

वहीं, भारत में 13.5 करोड़ लोग मोटापे से परेशान हैं। भारतीय दूसरी बीमारियों से भी लड़ रहे हैं। देश में 7.2 करोड़ लोग डायबिटीज और 8 करोड़ हाई ब्लड प्रेशर से परेशान हैं। जर्मन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में मोटापा बढ़ने से हार्ट डिसीज और डायबिटीज के मरीज भी बढ़ेंगे। कोरोना जैसी महामारी इनके लिए मौत का खतरा और बढ़ा देती है।

चुनौतियां और समाधान

विशेषज्ञ इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, आहार में बदलाव और नियमित व्यायाम की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोगों को अब मोटापे के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनकी संख्या कम वजन वाले व्यक्तियों से अधिक है। मोटापे की दर में यह तेजी से वृद्धि कुपोषण का दोहरा बोझ पैदा करती है और मधुमेह, हृदय रोग और गुर्दे की बीमारी जैसी बीमारियों की शुरुआती शुरुआत के बारे में चिंता पैदा करती है। मोटापे की दवाओं की उपलब्धता और लागत भी इस वैश्विक समस्या के समाधान में चुनौतियाँ पेश करती है।