सुप्रीम कोर्ट ने कहा मैसूर की राजकुमारी के एस्टेट पर कर्नाटक का अधिकार नहीं
बेंगलुरु की प्रमुख पैलेस रोड पर स्थित 24 एकड़ से ज्यादा की यह एस्टेट विरासत संपत्ति है। इसमें अब होटल, कई वाणिज्यिक इमारतें और आवास हैं।
By Ravindra Pratap SingEdited By: Updated: Mon, 17 Apr 2017 01:58 AM (IST)
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को कहा कि बेंगलुरु शहर के बीच में स्थित एतिहासिक 'ब्यूल्यू एस्टेट' पर कर्नाटक सरकार का कोई अधिकार नहीं है। इसकी वजह यह है कि इसे करीब 117 साल पहले प्रथम राजकुमारी की ओर से मैसूर के दीवान ने खरीदा था।
बेंगलुरु की प्रमुख पैलेस रोड पर स्थित 24 एकड़ से ज्यादा की यह एस्टेट विरासत संपत्ति है। इसमें अब होटल, कई वाणिज्यिक इमारतें और आवास हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें उन्होंने राज्य सरकार के आदेश को रद कर दिया था। प्रदेश सरकार ने कर्नाटक भू राजस्व अधिनियम 1964 की धारा 67 के तहत जमीन के कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया था। इस धारा के मुताबिक, वो सारी जमीन जो किसी की नहीं है, सरकार की है।यह भी पढ़ें: फेसबुक पर सिविल इंजीनियर बन महिला को लगाया नौ लाख का चूना
शीर्ष अदालत की जस्टिस मदन बी. लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि मूल हस्तांतरण दस्तावेज के कार्यान्वयन के सौ साल और राज्य सरकार की ओर से एस्टेट के अधिकांश हिस्से के अधिग्रहण के बाद, 'हम राज्य को इस बात का अनुरोध करने की अनुमति नहीं दे सकते कि मूल हस्तांतरण दस्तावेज जाली है और इसके बाद किए गए सभी हस्तांतरण भी मिथ्या और निरर्थक हैं। इसके अलावा ब्यूल्यू एस्टेट को प्रथम राजकुमारी की ओर से मैसूर के दीवान ने खरीदा था और इसका भुगतान प्रथम राजकुमारी के निजी कोष से किया गया था। इसलिए कर्नाटक राज्य का इस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।' शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से लगाए गए जालसाजी के आरोपों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर के शोपियां में सरकारी वकील की हत्या के बाद तनाव
विशेषकर तब जबकि स्वतंत्रता से पहले मैसूर के महाराज और स्वतंत्रता के बाद मैसूर राज्य की ओर से एस्टेट में से किए गए अधिग्रहण और समकालीन साक्ष्यों पर गौर किया जाए। पीठ ने कहा, 'कुल 24 एकड़ और 12 गुंठा में से 20 एकड़ से ज्यादा मैसूर की सरकार स्वतंत्रता से पहले और बाद में अधिग्रहीत कर चुकी है। किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई। अगर जमीन राज्य सरकार की थी तो राज्य ने अपनी ही जमीन अधिग्रहीत क्यों की? इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया।'