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जिस सीढ़ी से चढ़ते हैं, उसे गिरा देते हैं केजरीवाल: किरण

भ्रष्टाचार के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा छेड़े गए आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि तमाम नेता एक साथ थे। केंद्र की कांग्रेसी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लडऩे में सभी एकजुट थे, लेकिन आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली की सत्ता हासिल करने तक के सफर

By Rajesh NiranjanEdited By: Updated: Thu, 05 Mar 2015 08:18 AM (IST)
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नई दिल्ली। भ्रष्टाचार के खिलाफ समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा छेड़े गए आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि तमाम नेता एक साथ थे। केंद्र की कांग्रेसी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लडऩे में सभी एकजुट थे, लेकिन आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली की सत्ता हासिल करने तक के सफर में केजरीवाल के साथियों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। किरण बेदी, शाजिया इल्मी, विनोद कुमार बिन्नी, एमएस धीर आदि ने तो केजरीवाल और उनकी पार्टी से पहले ही किनारा कर लिया था, अब सत्ता मिलने के बाद केजरीवाल समर्थकों ने पार्टी के संस्थापकों में शुमार किए जाने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को ही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकाल दिया है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? इस मामले में हमारे राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय पांडेय ने बीते चुनाव में भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार और अन्ना आंदोलन में केजरीवाल की सहयोगी रहीं किरण बेदी से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :

प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को आम आदमी पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से निकाले जाने पर आप क्या कहना चाहेंगी?

देखिए, अन्ना आंदोलन से लेकर उसके बाद तक प्रशांत भूषण की भूमिका कानूनी रणनीतिकार की रही है, जबकि योगेंद्र यादव एक बेहतरीन राजनीतिक रणनीतिकार हैं। अन्ना आंदोलन को राजनीतिक तौर-तरीकों से आगे ले जाने में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। उनकी बाकायदा क्लास लगा करती। अब इन दोनों लोगों को आम आदमी पार्टी की पीएसी से निकाल दिए जाने का सीधा मतलब यह है कि पार्टी में इनकी जरूरत खत्म हो गई है।

आपको क्या लगता है कि केजरीवाल ने इनका इस्तेमाल सीढ़ी के तौर पर किया?

बिल्कुल, यह आपने सही कहा। उन्होंने (केजरीवाल) ऊंचाई हासिल की और सीढिय़ों को गिराते गए। आप अन्ना को ही ले लीजिए। इन लोगों ने अन्ना को बिल्कुल अकेला छोड़ दिया था। उनकी वेबसाइट, फेसबुक एकाउंट सब कुछ पर इन्होंने अपना हक जमा लिया था। कोर कमेटी के साथ भी यही हुआ। एक-एक कर लोग अलग होते गए। अब तक यही देखने में आया है कि केजरीवाल जिस सीढ़ी से ऊपर चढ़े, उसी को पहले गिरा दिया।

आखिर ऐसा क्या हो गया कि दिल्ली में सत्ता मिलते ही आप में दरार पड़ गई?

असल में मतभेद तो पुराने हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ही इनमें आपसी फूट पड़ गई थी। लेकिन चुनाव के मद्देनजर आपसी एकजुटता की बात की जा रही थी। आपको याद होगा कि चुनाव के दौरान ही शांति भूषण ने कुछ कहा था। अन्य लोग भी कुछ न कुछ बोल रहे थे।

आप को लेकर आपकी क्या राय है?

अब यह वन मैन आर्मी है। जितने भी लोग अन्ना आंदोलन से लेकर पार्टी के गठन तक इससे जुड़े थे, उनमें से काफी लोग इसको छोड़कर जा चुके हैं और बाकी अन्य लोग भी जाएंगे।

क्या पहले भी केजरीवाल अपना हुक्म चलाया करते थे?

हुक्म चलाने जैसी बात तो नहीं होती थी। लेकिन इतना जरूर होता था कि कुछ लोग पहले ही फैसले कर लेते थे और बाद में हमें बताते थे। हमारे होने से एक बात यह होती थी कि हमलोग सवाल पूछते थे और जो गलत फैसले होते थे, उनको खारिज कर देते थे।

क्या आम आदमी पार्टी की आपसी लड़ाई का दिल्ली सरकार पर असर पड़ेगा?

देखिए, मुझे सचमुच दिल्ली के लोगों की चिंता है। मैं यह सोचती हूं कि आखिर यह शहर किन लोगों के हाथ में है। पूरे चुनाव में इन्होंने जनता को भ्रम में रखने का काम किया। मुझे लगता है कि इन्होंने जनता से जो वादे किए हैं, उनको लेकर भी यह जरूर भ्रम की स्थिति बनाना चाहेंगे।

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