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जब भारत की स्‍पेशल फोर्स के जवानों ने पूर्वी सीमा पर खोदी थी NSCN-K के उग्रवादियों की कब्र

8-9 जून की रात भारतीय सेना की पैरा एसएफ के कमांडोज ने म्‍यांमार सीमा में घुसकर एनएससीएन-के के उग्रवादियों को उनके किए की सजा दी थी।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 09 Jun 2020 10:35 AM (IST)
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जब भारत की स्‍पेशल फोर्स के जवानों ने पूर्वी सीमा पर खोदी थी NSCN-K के उग्रवादियों की कब्र
नई दिल्‍ली (जेएनएन)। पाकिस्‍तान में हुई सर्जिकल स्‍ट्राइक को तो आप लोगों ने कई बार देखा और सुना है। इस पर फिल्‍म भी बन चुकी है। लेकिन क्‍या आपको इससे पहले हुई ऐसी ही सर्जिकल स्‍ट्राइक के बारे में पता है। यदि नहीं तो हम आपको आज इसका सिलसिलेवार ब्‍यौरा देंगे। इस सर्जिकल स्‍ट्राइक में भारतीय स्‍पेशल फोर्स के 20 जांबाजों ने भारत की म्‍यांमार से लगती पूर्वी सीमा पर एनएससीएन-के (खापलांग) ग्रुप के उग्रवादियों को उनकी उस काली करतूत की सजा दी थी जिसे उन्‍होंने 4 जून 2015 को अंजाम दिया था।

उग्रवादियों का सेना के जवानों पर घात लगाकर हमला

4 जून 2015 को दिन के उजाले में एनएससीएन-के (नेशनल सोशलिस्‍ट काउंसिल ऑफ नगालैंड-खापलांग) के उग्रवादियों ने मणिपुर के चंदेल जिले में 6 डोगरा रेजिमेंट के काफिले पर घात लगाकर हमला किया था। इस हमले में भारतीय सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे। ये काफिला नगालैंड के डीमापुर की तरफ जा रहा था। एनएससीएन-के तहत कई उग्रवादी संगठन काम करते हैं। एनएससीएन-के पैसे लेकर उग्रवादियों की हर तरह की मदद करता है। धन उगाही के लिए ये नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्‍करी करते थे। डरा धमकाकर, अपहरण कर पैसा वसूलते हैं। जवानों पर हमले की कार्रवाई की रणनीति इन्‍होंने ही बनाई थी और बाद में इसकी जिम्‍मेदारी भी ली थी। इस हमले ने सेना के अंदर अपने जवानों को खोने का दुख और दर्द भर दिया था। वहीं दूसरी तरफ इस हमले की खबर से पूर्वी सेना के कमांडर तत्‍कालीन लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत भी परेशान थे। केंद्र में भी इस हमले को लेकर काफी गुस्‍सा दिखाई दे रहा था।

ऑपरेशन हॉट परस्‍यूट

हमले के तुरंत बाद पूरे इलाके में नाकेबंदी कर दी गई। खुफिया विभाग हाई-अलर्ट पर था। सभी एजेंट पूरी तरह से एक्टिव हो चुके थे। हर छोटी से छोटी चीज और हर व्‍यक्ति पर नजर रखी जा रही थी। हर जानकारी को सेना और केंद्र से साझा किया जा रहा था। इस बीच खुफिया विभाग की एक जानकारी से हर कोई सक्‍ते में आ गया था। जवानों पर हमले के बाद एनएससीएन-के इस कदर उत्‍साहित था कि एक और हमले को अंजाम देने के लिए वह उग्रवादियों को एकत्रित कर रहा था। इस जानकारी में ये साफ हो गया था कि यदि इन्‍हें जल्‍द ही न रोका गया तो ये हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं। केंद्र में लगातार हर चीज पर बैठकें चल रही थीं। इन बैठकों के दौर से जो निकला उसका नाम था ऑपरेशन हॉट परस्‍यूट (Operation Hot Pursuit)। ये ऑपरेशन उग्रवादियों की कब्र खोदने के लिए तैयार किया गया था।

ऑपरेशन के लिए चुने गए पैरा एसएफ के कमांडोज

योजना बनाने के दौरान जो बैठकों का दौर चला उसमें पीएम नरेंद्र मोदी, तत्‍कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, एनएसए अजीत डोभाल, सेना प्रमुख जनरल दलबीर सुहाग मौजूद रहे थे। बैठक में बनी योजना के हिसाब से ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए भारतीय सेना की स्‍पेशल फोर्स को चुना गया। इस फोर्स के 21 जांबाजों को अगले कुछ ही दिनों में अपने ऑपरेशन को अंजाम भी देना था और सकुशल वापस भी आना था। इन जवानों का टारगेट म्‍यांमार सीमा के अंदर वो जगह थी जो एनएससीएन-खापलांग के उग्रवादियों का गढ़ था, इसलिए इस काम में खतरा जबरदस्‍त था। इस काम को अंजाम देने के लिए भारतीय सेना पैरा कमांडोज जिन्‍हें पैरा एसएफ भी कहा जाता है, को चुना गया।

उग्रवादियों के मुखबिर  थे बड़ी चुनौती

इस स्‍पेशल फोर्स के जवान कभी भी और कहीं भी ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए ही तैयार किए जाते हैं। इन जवानों के पास बेहद अत्‍याधुनिक हथियार होते हैं और ये तकनीक से पूरी तरह से लैस होते हैं। लेकिन म्‍यांमार सीमा में ऑपरेशन को अंजाम देने के दौरान तकनीक का इस्‍तेमाल नुकसानदेह हो सकता था। वायरलैस से मिलने वाले संकेतों को को उग्रवादी संगठन पकड़ सकते थे। इसलिए ये ऑपरेशन एक सीमा के बाद इसकी भी इजाजत नहीं देता था। आपको बता दें कि भारत और म्‍यांमार के बीच 1600 किमी लंबी सीमा रेखा है। लेकिन कई जगहों पर फैंसिंग नहीं है। कुछ जगहों पर केवल जानकार ही सीमा का पता लगा पाते हैं या फिर वो लोग जो यहां पर रहते हैं। सीमा से सटे इलाकों में कुछ समय के लिए दोनों देशों के लोग खेती करने के लिए तय समय के दौरान आते और जाते भी हैं। इनमें से कुछ उग्रवादियों के मुखबिर भी होते हैं। यही वजह थी कि इन जवानों के लिए ये ऑपरेशन कई तरह की चुनौतियों से भरा था। इस ऑपरेशन का पूरा ब्‍यौरा जानने के लिए यहां क्लिक करें।  

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