जानें क्यों अंग्रेजी हुकूमत ने सावरकर को वकालत करने से रोका था और क्यों वापस ली थी डिग्री
अंग्रेजी हूकूमत सावरकर से घबराती थी इसलिए ही उन्हें कई बार जेल में डाला गया। अंग्रेजों ने उनसे स्नातक की डिग्री भी वापस ले ली थी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 28 May 2020 09:41 AM (IST)
नई दिल्ली। वीर सावरकर की पहचान एक क्रान्तिकारी, वकील, कवि और नाटककार, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता के रूप में होती है। इसके अलावा वे भारत की आजादी के अग्रिम पंक्ति के सेनानी थे। इसके अलावा वे देश में हिंदुत्व की राजनीति का झंडा बुलंद करने वालों में भी शीर्ष पर थे। उनके द्वारा लिखी गई 'The Indian War of Independence-1957 से ब्रिटिश शासन बुरी तरह से हिल गया था। उनकी इस कृति को कुछ देशों ने अपने यहां पर प्रतिबंधित कर दिया था।
सावरकर वास्तव में वीर थे। यही वजह थी कि उन्होंने धर्म परिवर्तन कर चुके हिंदुओं की वापसी के लिए निर्भीक होकर कई आंदोलन और प्रयास किए। उनके तर्कों के आगे विरोधी टिक नहीं पाते थे। वे सभी धर्मों में शामिल रुढ़िवादी परंपराओं के घोर विरोधी थे और खुलेआम इन कुरीतियों का विरोध करते थे। यही वजह थी कि वे कई बार धर्म के ठेकेदारों के निशाने पर आ जाते थे।
सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर और माता का राधाबाई था। महज 9 वर्ष की आयु में उनकी मां का हैजे से निधन हो गया। इसके सात वर्ष बाद उनके पिता का भी निधन हो गया। सावरकर का पालन पोषण उनके बड़े भाई गणेश ने किया। उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की लेकिन चूंकि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था इसलिए अंग्रेजी हुकूमत ने इसको वापस ले लिया था। उन्होंने वकालत की डिग्री भी हासिल की थी। लेकिन इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना करने पर उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। महात्मा गांधी की हत्या में सावरकर पर सहयोगी होने का आरोप लगा था। लेकिन अदालत में ये आरोप सिद्ध नहीं हो सका और वे बाइज्जत बरी हुए। 26 फरवरी 1966 उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि भारत के राष्ट्रध्वज में सफेद पट्टी के बीच मौजूद चक्र को लगाने का सुझाव सबसे पहले वीर सावरकर ने ही दिया जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने तुरंत मान भी लिया था। उन्होंने ही सबसे पहले भारत की पूर्ण आजादी को स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य बनाया और घोषित किया। उन्हें फ्रांस में राजनीतिक बंदी बनाया गया था और इसके खिलाफ मामला हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पहुंचा था। इस तरह का ये पहला मामला था। सावरकर ही देश के पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया। उन्होंने ही देश में धर्म की आड़ में फैली कई तरह की कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन चलाया। इसके लिए उन्होंने कई किमी की यात्रा की और लोगों से बातचीत कर उन्हें इन कुरीतियों के प्रति जागरुक ने किया।
सावरकर से घबराकर अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें अंडमान निकोबार में स्थित जेल में एकांत कारावास की सजा सुनाई थी। उस वक्त उन्होंने जेल की कोठरी की दीवारों पर कविताएं लिख डाली थीं। जेल से छूटने के बाद उन्होंने इन्हें दोबारा लिखा था। अंग्रेज सरकार उनसे इस कदर घबराती थी कि उनके हर कदम पर उन्हें जेल में डालने से पीछे नहीं चूकती थी। अंग्रेजों की हुकूमत में 2-2 बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने हर बार इस सजा को पूरा भी किया। लेकिन हर बार जेल से छूटने के बाद दोबारा आंदोलन में शामिल हो गए। वीर सावरकर ने ही सबसे पहले विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। इसके बाद में ये आंदोलन पूरे देश में फैल गया था।