अपने ही बुने जाल में फंसी शिवसेना, सरकार गठन पर कम नहीं NCP-कांग्रेस की मुश्किलें
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के बीच सरकार बनाने की कोशिशें जोर-शोर से हो रही हैं। लेकिन इसके आड़े शिवसेना की जिद आ रही है। वहीं एनसीपी भी अपने दोनों हाथों में लड्डू चाहती है।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 13 Nov 2019 05:00 PM (IST)
नई दिल्ली जागरण स्पेशल। महाराष्ट्र में राजनीति का महासंग्राम थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस महासंग्राम की शुरुआत राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे के साथ ही शुरू हो गई थी। इसको उस वक्त ज्यादा तूल मिला जब अगले ही दिन शिवसेना ने 50-50 का फार्मूला भारतीय जनता पार्टी के सामने रखा था। इसके तहत ढाई साल के लिए भाजप की तरफ से देवेंद्र फडणवीस और इतने ही समय के लिए शिवसेना के आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की गई थी। शिवसेना की इस मांग को भाजपा ने मानने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद बयानबाजी का जो सिलसिला वह अब तक जारी है। इसके साथ ही सरकार के गठन की कोशिशें जोर-शोर से चल रही है।
किंग मेकर नहीं अब किंग बनना चाहती है शिवसेनाशिवसेना और भाजपा की बात करें तो जब यह गठबंधन सत्ता में था तब भी शिवसेना ने भाजपा पर हमला करने में कभी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। वहीं, जब शिवसेना ने आदित्य ठाकरे को चुनाव मैदान में उतारा तो उसी वक्त यह साफ हो गया था कि शिवसेना की नजर सीएम की कुर्सी पर है और वह इसके लिए किसी भी हद तक जा सकती है। आपको बता दें कि अब तक शिवसेना किंग मेकर की भूमिका में दिखाई देती थी, लेकिन अब किंग बनने की चाह ने उसको सत्ता से दूर कर दिया है। अब जबकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लग चुका है तो शिवसेना इससे तिलमिलाई हुई है। वर्षों पुराने सफल गठबंधन को भूल वह भाजपा और केंद्रीय नेतृत्व पर भी निशाना लगाने से बाज नहीं आ रही है।
किसी भी हद तक जा सकती है शिवसेना आदित्य को सीएम बनाने के लिए शिवसेना किसी भी हद तक जा सकती है। यही वजह है कि वह एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने से भी पीछे नहीं हट रही है। हालांकि यहां पर एनसीपी ने शिवसेना के सामने भी वही शर्त रख दी है जो पहले उन्होंने भाजपा के सामने रखी थी। वहीं कांग्रेस जिसके समर्थन के बिना महाराष्ट्र में सरकार बनना मुश्किल है, के सामने बेहद असमंजस की स्थिति है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिवसेना से उसके वैचारिक मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं। वहीं उसके सामने यह भी समस्या है कि वह देश की जनता को क्या जवाब देगी।
शिवसेना से कांग्रेस के वैचारिक मतभेद वहीं, यदि शिवसेना की बात करें तो वह कांग्रेस को लेकर कम आक्रामक रही है। वैचारिक मतभेदों की बात चली है तो आपको बता दें कि प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद मातोश्री जाकर उद्धव ठाकरे से मिलकर उनका आभार जताना चाहा था। लेकिन, सोनिया गांधी ने उन्हें ऐसा करने से इनकार कर दिया था। इसका जिक्र प्रणव मुखर्जी की आत्मकथा में भी किया है।
नहीं गिरा है परदा बहरहाल, इस वैचारिक मतभेदों के बीच कांग्रेस की तरफ से इस पर पूरी तरह से परदा नहीं गिराया गया है। यही वजह थी कि भावी सरकार की संभावनाओं को तलाशने के लिए बुधवार को कांग्रेस के नेताओं ने एनसीपी नेताओं से वाईबी चव्हाण सेंटर में बैठक की थी। इसमें वेणुगोपाल, अहमद पटेल और मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल थे। इसके अलावा गुरुवार को भी ये दौर जारी रहा।
सरकार बनाने को लेकर शिवसेना की गंभीरता शिवसेना की जिद की बात करें तो यहां पर ये भी बताना बेहद दिलचस्प है कि पहले सभी नेता सरकार बनाने के लिए मातोश्री के दरवाजे पर सिर झुकाते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने के मकसद से उद्धव किसी भी दर पर जाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। इससे कहीं न कहीं यह बात साफ हो रही है कि राज्य में शिवसेना सरकार बनाने के लिए कितनी गंभीर है।
तो भाजपा को होगा फायदा सरकार बनाने से पहले शिवसेना न सिर्फ 145 का जादुई आंकड़ा जुटा लेना चाहती है बल्कि वह बनने वाली सरकार में शामिल दलों के साथ मिलकर एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर भी सहमति चाहती है। भाजपा से अलग होकर शिवसेना के सामने दोतरफा समस्या खड़ी हो गई है। पहली समस्या तो उसकी अपनी जिद है तो दूसरी ये है कि यदि सरकार के तौर पर वे पांच वर्ष पूरे करने में नाकाम रहे तो यह उनके लिए घातक साबित होगा। निश्चित तौर पर इसका फायदा भाजपा को ही होगा।
गठजोड़ में किसको क्या लगेगा हाथ बुधवार तक महाराष्ट्र में जो बैठकों का दौर चला उसमें यह बात भी निकलकर सामने आई थी कि एनसीपी ने इस सरकार के गठजोड़ और उसकी कीमत का जो खाका तैयार किया है उसमें कांग्रेस के हाथों पांच वर्षों के लिए उपमुख्यमंत्री का पद है। इसके अलावा पहले ही यह तय होगा कि सरकार के अलावा किस जगह पर किस पार्टी
का नेता काबिज होगा। इसमें विधानसभा अध्यक्ष का पद भी शामिल है। मीडिया में आई खबरों की मानें तो इस नए गठबंधन के लिए कांग्रेस के विधायक भी काफी उत्सुक हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसके बाद कांग्रेस का राज्य में सत्ता का सूखा खत्म हो सकता है। लेकिन ये भी सही है कि इसका ज्यादा फायदा कांग्रेस शायद ही ले पाएगी।
चाणक्य की भूमिका में शरद पवार महाराष्ट्र की इस भावी सरकार की कहानी के पटकथा के लेखक शरद पवार हैं जो महाराष्ट्र में बड़े कद के नेता हैं। वह यहां की राजनीति के धुरंधर भी हैं और फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में वह चाणक्य के किरदार में दिखाई दे रहे हैं। राजनीतिक जानकार भी पवार को काफी सुलझा हुआ नेता मानते हैं। वहीं जानकारों का ये भी मानना है कि पवार के आने से यदि यह गठबंधन सरकार का रूप लेता है तो मुमकिन है कि यह सफलतापूर्वक अपना काम कर ले। इस गठबंधनमें एक भूमिका कांग्रेस की भी है,जिसपर गौर करने के लिहाज से ही कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेता चव्हाण सेंटर में पहुंचे थे।
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