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जानें क्‍या होती है हर्ड इम्‍युनिटी और भारत जैसे देशों के लिए कैसे कारगर हो सकती है ये

कोरोना वायरस के मद्देनजर भारत जैसे दूसरे देशों में बचाव के लिए हर्ड इम्‍युनिटी काफी कारगर साबित हो सकती है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 27 Apr 2020 09:40 AM (IST)
जानें क्‍या होती है हर्ड इम्‍युनिटी और भारत जैसे देशों के लिए कैसे कारगर हो सकती है ये
नई दिल्‍ली (जेएनएन)। हर्ड इम्युनिटी यानी बड़े समूह की मजबूत होती प्रतिरक्षा प्रणाली। दुनिया के कई देशों में कोरोना की काट के रूप में स्वत: विकसित होने वाली इस प्रणाली पर भरोसा किया जा रहा है। लेकिन शोध बताते हैं कि भारत जैसे देशों में यह प्रणाली ज्यादा कारगर साबित हो सकती है। ब्रिटेन की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और नई दिल्ली व वाशिंगटन स्थित एनजीओ सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) से जुड़े विशेषज्ञ इसे बड़ी और युवा आबादी वाले गरीब देशों के लिए रामबाण मान रहे हैं।

क्या है हर्ड इम्युनिटी

हर्ड इम्युनिटी का हिंदी में अनुवाद सामुहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता है। वैसे हर्ड का शाब्दिक अनुवाद झुंड होता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोरोना वायरस को सीमित रूप से  फैलने का मौका दिया जाए तो इससे सामाजिक स्तर पर कोविड-19 को लेकर एक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी। यह दावा है ब्रिटेन की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और नई दिल्ली व वाशिंगटन स्थित एनजीओ सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) से जुड़े विशेषज्ञों का। विशेषज्ञों ने भारत और इंडोनेशिया के साथ अफ्रीका के कुछ देशों को यह रणनीति अपनाने को कहा है।

ऐसे काम करती है सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता

रोग प्रतिरोधक क्षमता रहित: इसमें रोगजनक नया होता है और प्रतिरक्षा नहीं होने से फैलने लगता है।

मामूली रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ: रोगमुक्त होने वालों में कम समय के लिए प्रतिरक्षा विकसित होती हैं। कोरोना वायरस में समय का पता नहीं है।

सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता के साथ: जब रोगजनक नए लोगों को संक्रमण के लिए नहीं ढूंढ पाता तो समुदाय का एक हिस्सा प्रतिरक्षा हासिल करता है।

तो नवंबर तक मिल जाएगी मुक्ति

प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी के विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा युवा वर्ग है, जिसके गंभीर रूप से बीमार पड़ने का खतरा बहुत कम है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि तत्काल कदम उठाया जाए तो सात माह में देश के 60 फीसद लोग कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेंगे। इस रणनीति से भारत नवंबर तक खतरे से पूरी तरह मुक्ति पा लेगा।

ब्रिटेन में असफल रही रणनीति

प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता रामन्न लक्ष्मण कहते हैं कि आर्थिक गतिविधियां ठप हैं। हम भूख और गरीबी से जूझ रहे हैं। हमारे संसाधन खत्म होते जा रहे हैं। हम जानते हैं कि इस रणनीति में जोखिम है लेकिन, उतना नहीं जितना आज की रणनीति में है। हालांकि यह रणनीति पर सवाल पहले ही उठ चुके हैं। ब्रिटेन में शुरुआत में इस रणनीति को अपनाया गया था लेकिन, जल्द ही हालात तेजी से बिगड़े और ब्रिटेन ने लॉकडाउन कर दिया। भारत में प्रदूषण को मौतों का बड़ा कारण माना जाता है। साथ ही पब्लिक हेल्थ सिस्टम बहुत कमजोर है। ऐसे में यह रणनीति नुकसानदेह हो सकती है। खतरा तो है

खतरा तो है

विशेषज्ञों का मानना है कि इस रणनीति के कारण कुछ लोगों की मौतें निश्चित रूप से होंगी लेकिन, आज जिस पैमाने पर यूरोप और अमेरिका में मौते हो रही हैं उस पैमाने पर नहीं। भारत की जनसंख्या में 65 साल से अधिक लोगों की भागीदारी 6.5 फीसद है। पूरी दुनिया में कोरोना से सबसे अधिक मौतें 65 साल से ऊपर के मरीजों की हुई है।

कोई और विकल्प नहीं

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़ी जनसंख्या वाले देशों में भले ही लॉकडाउन रखा जाए लेकिन, इसका कोई फायदा नहीं होगा। वास्तविक रूप से मुहल्ले, गांवों में भीड़ है। शहरी और गांवों में औसतन हर घर में छह से सात लोग हैं, ऐसे में शारीरिक दूरी का कोई महत्व नहीं रह जाता।

विनाशकारी साबित होगी रणनीति

स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता जैसन एंड्रयू इस रणनीति का विरोध करते हैं। वह कहते हैं कि हम आज भी कोरोना वायरस के बारे में बहुत कम जानते हैं। ऐसे में हम अपने युवाओं को बहुत बड़े खतरे में डाल देंगे। शोधकर्ताओं का मानना है कि सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए कम से कम 82 फीसद जनसंख्या का संक्रमित होना जरूरी है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्क लिपस्टिच का कहना है कि किसी भी रणनीति को लागू करने से पहले हमें अभी कई सवालों के जवाब खोजने होंगे। कोई संक्रमित व्यक्ति कैसे और किस स्तर की रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल करेगा। हम कैसे सीमित मात्रा में वायरस को फैलने देंगे, हमें तो कुछ भी पता नहीं।

60 साल से ऊपर के लोग घरों में रहें

प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और सीडीडीईपी ने अपने सुझावों में कहा है कि यदि युवा वर्ग को काम पर आने का मौका मिलेगा तो बुजुर्ग घर में आराम से रह सकेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने तक 60 साल से अधिक आयुवर्ग के लोगों को घरों में रहना होगा और शारीरिक दूरी के नियम का पालन करना होगा। नई दिल्ली स्थित पीपुल्स हेल्थ मूवमेंट के टी. सुंदरम कहते हैं कि कुछ हद तक आप युवा वर्ग को संक्रमित होने दें, हालांकि उनकी देखभाल अच्छी तरह से करें। वे स्वस्थ हो जाएंगे। इसके साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा होगी। आपकी मजबूरी है, लेकिन आपको यही रणनीति अपनानी होगी।

कोई भी देश बहुत लंबे समय तक

लॉकडाउन नहीं झेल सकता है। भारत जैसा विकासशील और बड़ी जनसंख्या वाला देश तो कतई नहीं। युवा वर्ग एक स्तर पर जाकर सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। जब युवाओं में सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता का एक स्तर हासिल कर लेता है तो संक्रमण रुक जाता है। इसके बाद बुजुर्ग भी खतरे से दूर हो जाता है।

डॉ. जयप्रकाश मुलायिल, एपिडोमिलोजिस्ट

कुछ सवाल

कब, कैसे और कितनी मात्रा में संक्रमण को फैलने दिया जाए?

संक्रमित व्यक्ति में कैसे और कितनी रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा होगी?

सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के लिए कितनी आबादी को संक्रमित होना होगा?

युवा वर्ग और बुजुर्ग वर्ग को कैसे अलग किया जाएगा? बच्चों का क्या होगा?

लागू करना ही होगा यह मॉडल

लंबे समय तक लॉकडाउन जारी नहीं रख सकते, क्योंकि कोई भी वैक्सीन 2021 से पहले नहीं आएगी।

गरीबी और भूखमरी से ही लाखों लोग मर जाएंगे, ऐसे में संक्रमण छोटा खतरा है।

ज्यादातर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएंगी, प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर व उनके परिवार भूखमरी के कगार पर हैं।

भारत जैसे देश में 40 फीसद लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने को मजबूर हैं, सरकार उनका खर्चा लंबे समय तक नहीं उठा सकती।

(साभार: ब्लूमबर्ग)

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