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फिर अलग-थलग पड़ गए आडवाणी

भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर चूक गए। चूक एक नहीं कई स्तरों पर हुई। चाहे अनचाहे वह दीवार पर लिखी इबारत नहीं पढ़ सके तो शायद यह भी भूल गए कि पार्टी की लोकतांत्रिक परंपरा के सामने भाजपा के सबसे मजबूत और लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इसी गोवा में सिर झुकना पड

By Edited By: Updated: Sun, 09 Jun 2013 01:34 AM (IST)
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पणजी [प्रशांत मिश्र]। भाजपा के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर चूक गए। चूक एक नहीं कई स्तरों पर हुई। चाहे अनचाहे वह दीवार पर लिखी इबारत नहीं पढ़ सके तो शायद यह भी भूल गए कि पार्टी की लोकतांत्रिक परंपरा के सामने भाजपा के सबसे मजबूत और लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को इसी गोवा में सिर झुकना पड़ा था। एक चूक और हुई, आडवाणी बड़ा मन नहीं दिखा पाए। नतीजा सामने है, जिन्ना प्रकरण के बाद एक बार फिर से आडवाणी पार्टी में अलग-थलग पड़ गए।

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मोदी की केंद्रीय भूमिका की जो पटकथा पहले लिखी गई थी, उसे शनिवार को पूरे रंग रोगन के साथ अमलीजामा पहनाने की तैयारी हो गई। गोवा के मैरियट होटल का कमरा नंबर 222 और 310 गतिविधियों का केंद्र रहा। कमरा नंबर 222 में नरेंद्र मोदी और 310 में राजनाथ सिंह ठहरे हैं। एक-एक कर सभी बड़े नेताओं का यहां आना-जाना लगा रहा। अरुण जेटली, नितिन गडकरी, वेंकैया नायडू, शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, सुशील मोदी, मनोहर पार्रिकर व विभिन्न प्रदेशों के अध्यक्षों ने मोदी से अलग-अलग मुलाकात की। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मोदी के कमरे में 45 मिनट तक डटे रहे। शायद वह आडवाणी के बयान से पैदा हुए भ्रम की स्थिति को स्पष्ट करना चाहते थे। आखिर में राजनाथ और मोदी एक साथ बैठे और चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपने का खाका तैयार हो गया। इससे पहले संघ नेता सुरेश सोनी इस पर अपनी सहमति जता चुके थे।

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आडवाणी की गैरमौजूदगी का सहारा लेकर घोषणा टालने की कवायद को पूरी तरह नकारकर राजनाथ सिंह ने अपना इकबाल स्थापित कर लिया। ध्यान रहे अपने पिछले कार्यकाल में राजनाथ को हर कदम पर आडवाणी की ओर निहारने के लिए मजबूर होना पड़ा था। फैसला होने के बाद पार्टी के एक बड़े नेता ने आडवाणी पर कटाक्ष करते हुए कहा, जो रह गया, उसे भुलाता चला गया। संघ के एक नेता ने भी कहा, भाजपा ताकतवर होगी, तभी गठबंधन सहयोगी साथ खड़े होंगे। उनका निशाना आडवाणी के उस बयान की ओर था, जिसमें वह राजग प्लस की बात करते रहे हैं। ऐसा नहीं कि आडवाणी को इन घटनाओं का भान ही नहीं था। वह यह भी देख चुके हैं कि 2002 में मोदी से त्यागपत्र लेने के पक्षधर रहे वाजपेयी ने भी बहुमत के सामने अपने पैर खींच लिए थे।

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