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इच्छाशक्ति का है अभाव

दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान जन जागरण के तहत सोमवार को दिल्ली के आइटीओ कार्यालय में सामाजिक न्याय मुद्दा व राजनीति और नेताओं का उदय विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस विषय पर विशेषज्ञों ने कहा कि वर्तमान में सामाजिक न्याय के विषय में सभी पार्टियों में इच्छाशक्ति की कमी है। यह एक ऐसी राजनीतिक भाषा बन गई है, जिसे

By Edited By: Updated: Wed, 26 Mar 2014 11:15 AM (IST)

दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान जन जागरण के तहत सोमवार को दिल्ली के आइटीओ कार्यालय में सामाजिक न्याय मुद्दा व राजनीति और नेताओं का उदय विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस विषय पर विशेषज्ञों ने कहा कि वर्तमान में सामाजिक न्याय के विषय में सभी पार्टियों में इच्छाशक्ति की कमी है। यह एक ऐसी राजनीतिक भाषा बन गई है, जिसे चुनाव में जम कर इस्तेमाल किया जाता है।

राकेश सेंगर (कार्यकर्ता, बचपन बचाओ आंदोलन)

- सामाजिक न्याय ऐसी राजनीतिक भाषा है जिसका चुनाव के समय जमकर इस्तेमाल किया जाता है।

- राजनीतिक दलों ने समय-समय पर सामाजिक न्याय को अलग-अलग तरह से बेचा है।

- आज देश में छह करोड़ बच्चे बाल मजदूर हैं, जबकि -.5 करोड़ युवा बेरोजगार हैं।

- अगर बच्चों को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई जाएंगी तो सबको सामाजिक न्याय मिल पाएगा।

- राजनेताओं की इच्छाशक्ति वोट से तय होती है और बच्चों को वोट देने का अधिकार ही नहीं है।

- राजनीतिक दलों में अब सामाजिक सरोकार समाप्त हो रहे हैं।

- बच्चों को सामाजिक न्याय की पहली कड़ी शिक्षा ही ठीक से नहीं मिल पा रही है।

- सामाजिक न्याय दिलाने के लिए पक्ष, प्रतिपक्ष व सामाजिक क्त्रांति की धार एक मजबूत कड़ी है।

-लोकतंत्र में चुनाव अपनी मांग को सटीक तरीके से रखने का माध्यम भी है।

- शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल विकास पर सूचकांक तय हो। नेता शिक्षा का स्तर सुधारने का वादा करें।

डॉ. बिपिन तिवारी, प्रमुख, समान अवसर प्रकोष्ठ, दिल्ली विश्वविद्यायल

- जिस तरह से समाजिक न्याय की बात चुनाव में होती है, धरातल पर बिल्कुल वैसा नहीं है।

- सिर्फ नेताओं को दोष देना ठीक नहीं है, हमें भी प्रयास करने की जरूरत है।

- सामाजिक न्याय से जुड़ी सूचनाएं हर आदमी तक नहीं पहुंच पाती।

- हम अधिकारों की बात करते हैं लेकिन देश, समाज व कर्तव्य के प्रति उदासीन हैं।

- विभिन्न वगरें से जुड़े लोगों को जागरूक करने की जरूरत है ताकि भेदभाव खत्म हो।

- शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को समानता के लिए मुख्य धारा में लाया जाए।

- शिक्षा को हर आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए।

- सामाजिक न्याय न होने के कारण लोगों में पलायन की प्रवृत्ति बढ़ी है।

- महिला शिक्षा के लिए हों अधिक प्रयास क्योंकि शिक्षित महिला से पूरा परिवार शिक्षित होता है।

- गैर सरकारी संगठनों के साथ जनता सक्त्रिय रूप से इसमें भागीदारी निभाए।

डॉ. संजीव राय,

राष्ट्रीय संयोजक, शिक्षा, सेव द चिल्ड्रेन

- आज देश में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी प्रणाली ध्वस्त है।

- देश भर में कामन स्कूल सिस्टम आज तक लागू नहीं हो पाया है।

- मालिक और मजदूर के बीच खाई पाटने के लिए कोई राजनीतिक पार्टी कम नहीं कर रही है।

- सामाजिक व आर्थिक समृद्धता आम आदमी तक नहीं पहुंच रही है।

- सामाजिक न्याय के नाम पर आरक्षण से कुछ जाति और वर्ग के लोगों को फायदा हुआ है।

- अन्याय, बेरोजगारी और अधिकार से वंचित लोगों में अधिक असंतोष है।

- शैक्षिक प्रक्त्रिया की नींव बदलने के साथ चरित्र भी बदलने की जरूरत है।

- आज लोगों को दी जाने वाली शिक्षा में सामाजिक समरसता बढ़ाने का ज्ञान नहीं दिया जा रहा है।

- सभी स्तर का नेतृत्व यह निर्णय ले कि हम सभी फंड का उपयोग शिक्षा और स्वास्थ्य पर करेंगे।

-लोग शिक्षा ग्रहण करते समय ध्यान रखें कि उड़ने को पंख और चलने को पैरों तले जमीन जरूरी है।