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संसद से सड़क तक छिड़ी जमीन की जंग, शिवसेना ने किया विरोध

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सियासी महासमर की जमीन संसद से सड़क तक मजबूत हो रही है। संसद में एकजुट विपक्ष तो सड़क पर अन्ना हजारे के नेतृत्व में गैरसरकारी संगठनों की मोर्चेबंदी के बीच सरकार ने मन बना लिया है कि राजनीतिक दबाव में नहीं झुकेगी। हालांकि किसानों से बातचीत

By Rajesh NiranjanEdited By: Updated: Tue, 24 Feb 2015 09:16 PM (IST)
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नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सियासी महासमर की जमीन संसद से सड़क तक मजबूत हो रही है। संसद में एकजुट विपक्ष तो सड़क पर अन्ना हजारे के नेतृत्व में गैरसरकारी संगठनों की मोर्चेबंदी के बीच सरकार ने मन बना लिया है कि राजनीतिक दबाव में नहीं झुकेगी। हालांकि किसानों से बातचीत के लिए भाजपा ने समिति बनाई है।

लिहाजा, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश कर दिया गया। हालांकि, किसान संगठनों से बातचीत के बाद मोदी सरकार ने साफ संकेत दिए कि विधेयक में कुछ संशोधन जरूर हो सकते हैं लेकिन शोर-शराबे से डर कर नहीं।

यही कारण है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने जहां किसानों से बातचीत के लिए आठ सदस्यीय समिति भी बना दी है। वहीं खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी सांसदों को स्पष्ट कर दिया कि राजग का भूमि अधिग्रहण किसानों के साथ-साथ विकास के हक में है और यह संदेश नीचे तक पहुंचाना हर किसी का काम है।

सहयोगी दलों के साथ बैठक कर भी यही संदेश पहुंचाने की कोशिश हुई। बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने सांसदों से कहा है कि वह कांग्रेस के आरोपों का गुब्बारा फोड़ें। लोगों को बताएं कि भूमि अधिग्रहण किसानों के हित को ध्यान में रखकर बनाया गया है। लेकिन देश के विकास को भी प्रमुखता दी गई है।

राजग सरकार को अपने सहयोगी दलों को भी इस मुद्दे पर एकजुट रखना होगा। सहयोगी दल शिवसेना ने मंगलवार रात स्पष्ट कर दिया कि वह भूमि अधिग्रहण बिल का मौजूदा रूप में कतई समर्थन नहीं करेगी। उद्धव ठाकरे ने दो टूक कहा कि किसानों के खिलाफ किसी भी कानून का समर्थन वह नहीं करेगी। लोकसभा में राजग का हिस्सा स्वाभिमानी सेतकारी संगठन के राजू शेट्टी ने भी विधेयक का विरोध किया।

कठिन डगर है सत्र की

बजट सत्र में कामकाज के पहले दिन मंगलवार को ही यह दिखने लगा कि विपक्ष खुलकर विरोध पर आमादा है। भूमि अधिग्रहण विधेयक लोकसभा में पेश होने पर एकजुट विपक्ष ने सरकार को किसान और गरीब विरोधी भी ठहराया गया।

दोनों सदनों में लगभग यही हाल रहा। विपक्ष ने लोकसभा से यह कहते हुए वाकआउट किया कि सरकार किसानों की कीमत पर उद्योगपतियों को मुनाफा पहुंचाना चाहती है।

अडिग सरकार

लेकिन सरकार की रणनीति स्पष्ट है। किसान और गरीब विरोधी छवि भी नहीं बनने देगी और राजनीतिक दबाव के आगे झुकेगी भी नहीं। यही कारण है कि सरकार ने बातचीत का रास्ता खोल रखा है। भाजपा ने सत्यपाल मलिक के नेतृत्व में समिति बना दी है जो किसान संगठनों से बातचीत करेगी। उनके सुझावों को सुनेगी और अपनी बात समझाने की कोशिश करेगी।

सूत्रों के अनुसार सरकार कुछ संशोधन के लिए रजामंद है। लेकिन ऐसा कोई संशोधन नहीं होगा जिससे परियोजना के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो। राज्यसभा में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह कहकर विपक्षी दलों को साधने की कोशिश की कि संबंधित मंत्री सभी दलों के नेताओं से बात करेंगे।

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