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वकील ने जज से की बदतमीजी, काटेंगे जेल

भरी अदालत में जज साहब से बदतमीजी करने वाले वकील को अब एक महीने जेल भुगतनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने जज से अशिष्ट व्यवहार करने वाले वकील को न्यायालय की अवमानना में उसे सुनाई गई एक माह की सजा पर मुहर लगा दी है। कोर्ट ने वकील के आचरण पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अदालती कार्यवाही की गंभीरता और पवित्रता होती

By Edited By: Updated: Mon, 10 Jun 2013 09:28 AM (IST)
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नई दिल्ली [माला दीक्षित]। भरी अदालत में जज साहब से बदतमीजी करने वाले वकील को अब एक महीने जेल भुगतनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने जज से अशिष्ट व्यवहार करने वाले वकील को न्यायालय की अवमानना में उसे सुनाई गई एक माह की सजा पर मुहर लगा दी है। कोर्ट ने वकील के आचरण पर नाराजगी जताते हुए कहा कि अदालती कार्यवाही की गंभीरता और पवित्रता होती है और किसी को इसे कलुषित करने की छूट नहीं है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फतेहपुर की खागा अदालत के सिविल जज (जूनियर डिवीजन/ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, खागा जिला फतेहपुर) के साथ अशिष्टतापूर्ण व्यवहार और न्यायिक कार्य में बाधा पहुंचाने पर वकील अरुण कुमार यादव को एक महीने का साधारण कारावास और दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। अरुण ने सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

जस्टिस बीएस चौहान एवं जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ ने अपील खारिज करते हुए वकील को एक माह में समर्पण करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा कि अगर वह जुर्माना अदा नहीं करता है तो दो सप्ताह का कारावास और भुगतेगा।

पीठ ने अदालत में अशिष्टतापूर्ण व्यवहार पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि सभी का दायित्व है कि वे अदालती कार्यवाही के समय शिष्टतापूर्ण व्यवहार करें। इसमें किसी तरह का व्यवधान न सिर्फ न्यायिक तंत्र को प्रभावित करता है बल्कि उसमें लोगों का भरोसा भी घटाता है। कोई वकील या मुवक्किल इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकता। यह बहुत दुखद है कि एक वकील जो करीब पचास साल का होने वाला है, इस तरह का व्यवहार करता है। कोर्ट ने बिना शर्त मांगी गई माफी को स्वीकार कर क्षमा करने की दलील खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में न तो माफी मांगने की तत्परता दिखाई देती है और न ही माफी वास्तविक लगती है। अदालत के मामले में वकील हमेशा क्षमा की छतरी की शरण नहीं ले सकता। कानून का शासन सर्वोपरि होना चाहिए। कानून की पवित्रता अदालत की गरिमा से रहती है। किसी वकील या मुवक्किल का गलत व्यवहार इसे क्षति नहीं पहुंचा सकता। यहां तक कि न्यायाधीश की भी जिम्मेदारी है कि वह अदालत का शिष्टाचार और गरिमा बनाए रखे।

क्या था मामला

घटना 5 सितंबर 2005 की है। वकील अरुण यादव ने खागा अदालत में मुवक्किल चंद्रपाल की ओर से अर्जी देकर समर्पण की अनुमति मांगी। जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने उस मामले में संबंधित थाने से रिपोर्ट मांगी और अर्जी पर सुनवाई के लिए अगली तारीख तय कर दी। उसी दिन करीब पौने चार बजे जब मजिस्ट्रेट दूसरे में मामले में आदेश लिखा रहे थे। तभी वकील अरुण कुमार अदालत में दाखिल हुआ और न्यायिक मजिस्ट्रेट को भला बुरा कहने लगा।

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