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भारतीय राजनीति के 'भीष्म पितामह' हैं आडवाणी

नई दिल्ली। लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री हैं। भाजपा को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दो बार (1

By Edited By: Updated: Mon, 10 Jun 2013 09:09 PM (IST)
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नई दिल्ली। लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री हैं। भाजपा को भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी बनाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। वे कई बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में दो बार (1998 और 1999) केंद्रीय गृहमंत्री नियुक्त हुए। आडवाणी ने पार्टी को पुनर्जीवित कर मजबूत बनाने का प्रमुख रूप से उत्तरदायित्व निभाया। 1980 के दशक की शुरुआत में भारत के राजनीतिक मानचित्र पर वस्तुत: अस्तित्वहीन यह पार्टी भारत की सबसे मजबूत राजनीतिक शक्तियों में एक रूप में उभरी। कुछ मतभेदों के चलते आडवाणी ने आज पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है।

आइए उनके बारे में विस्तार से जानते हैं :-

जीवन परिचय :

जन्म

लालकृष्ण किशनचंद आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके पिता का नाम केडी आडवाणी और माता का नाम ज्ञानी आडवाणी है। 1947 में विभाजन के बाद वह भारत आ गए।

शिक्षा

आडवाणी की शुरुआती शिक्षा लाहौर में ही हुई थी पर बाद में भारत आकर उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में स्नातक की डिग्री हासिल की। जब आडवाणी सेंट पैट्रिक स्कूल में पढ़ रहे थे, उनके देश भक्ति विचारों ने उन्हें केवल 14 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। तभी से उन्होंने राष्ट्र की सेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित किया हुआ है। आज वे भारतीय राजनीति में एक बड़ा नाम हैं।

विवाह

आडवाणी ने 25 फरवरी, 1965 को कमला आडवाणी से विवाह किया। आडवाणी के परिवार की तरह ही कमला का परिवार भी देश के विभाजन के बाद कराची से विस्थापित होकर भारत आया था। उन्होंने लगभग 17 वर्षो तक दिल्ली और मुंबई के जनरल पोस्ट ऑफिस में कार्य किया।

संतान

आडवाणी के दो बच्चे हैं, एक पुत्र जयंत और दूसरी पुत्री प्रतिभा। दोनों अपना प्रोफेशनल जीवन जी रहे हैं। जयंत दिल्ली में अपना एक छोटा सा कारोबार चलाते हैं। वे क्रिकेट के बहुत ही शौकीन हैं। प्रतिभा एक प्रसिद्ध टीवी व्यक्तित्व हैं। कई चैनलों पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की एंकरिंग तथा प्रस्तुति करती हैं।

राजनीतिक जीवन

कराची में शुरुआती स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आडवाणी ने कानून की पढ़ाई के लिए बंबई विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वह आरएसएस में शामिल हो गए और देश के विभाजन के बाद उन्होंने राजस्थान में संगठन की गतिविधियों का कार्यभार संभाला। 1951 में जब डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ (आज की भाजपा) की स्थापना की, तो आडवाणी पार्टी की राजस्थान इकाई के सचिव बने। बाद में दिल्ली चले गए और उन्हें जनसंघ की दिल्ली इकाई का सचिव नियुक्त किया गया।

1970 में वह रज्च्यसभा के सदस्य बने और 1989 तक इस पद पर बने रहे। 1973 में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया और 1977 तक उन्होंने पार्टी का संचालन किया। जनता पार्टी के नेतृत्व वाली मोरारजी देसाई की गठबंधन सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री नियुक्त होने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया।

भाजपा का गठन

मोरारजी देसाई सरकार के पतन के बाद भारतीय जनसंघ का विभाजन हो गया। आडवाणी तथा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में भारतीय जनसंघ के लोगों ने 1980 में एक राजनीतिक पार्टी, भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। शुरुआती वर्षो में भाजपा को नाममात्र का जन समर्थन मिला और 1984 के संसदीय चुनावों में यह लोकसभा की सिर्फ दो सीटें जी जीत पाई। पार्टी को लोकप्रिय बनाने तथा जनता को इसके कार्यक्रम से अवगत कराने के लिए आडवाणी ने 1990 के दशक में देश भर में कई रथ यात्राएं (राजनीतिक अभियान) की। इनमें से पहली यात्रा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए निकाली।

चुनाव क्षेत्र

आडवाणी का चुनाव क्षेत्र गांधीनगर, गुजरात है।

सदस्यता

जच्यसभा, 1970-1989 (चार बार)

विपक्ष के नेता, राज्यसभा, 1979-1981

विपक्ष के नेता, लोकसभा, 1989-1991 और 1991-1993

केंद्रीय कैबिनेट मंत्री

सूचना और प्रसारण, 1977-1979

गृहमंत्री, 1998-1999 और 13 अक्टूबर 1999 से 29 जून 2002

उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 29 जून 2002 से 1 जुलाई 2002

उपप्रधानमंत्री, गृह मंत्री तथा कोयला और खान मंत्री, 1 जुलाई 2002 से 26 अगस्त 2002

उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री, 26 अगस्त, 2002 - 20 मई, 2004

राम यात्रा

राम रथ यात्रा 25 सितंबर, 1990 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिन पर सोमनाथ से शुरू हुई थी और जिसका 10,000 किमी की यात्रा करने के बाद 30 अक्टूबर को अयोध्या में समापन किया जाता था। यात्रा का सीधा सा संदेश जनता में एकता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना जागृत करना, परस्पर समझदारी बढ़ाना तथा जनता को सरकार की तुष्टिकरण तथा अल्पसंख्यकवाद की राजनीति के बारे में समझाना था। इस यात्रा को अभूतपूर्व सफलता मिली राजनीतिक तौर पर भीड़ जुटाने हेतु ऐसी लोकप्रियता कभी हासिल नहीं हुई। इस यात्रा ने जनता द्वारा दर्शायी गई लोकशक्ति और दिल्ली के शासकों द्वारा प्रस्तुत राजशक्ति के बीच तुलना की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया।

जनादेश यात्रा

आडवाणी ने निष्ठुर, लोकतंत्र-विरोधी और जन-विरोधी उपायों के विरुद्ध जनमत जुटाने हेतु नेतृत्व प्रदान किया। आडवाणी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के नेतृत्व में देश की चारों दिशाओं से यात्रा आरंभ करने की योजना बनाई। चारों यात्राएं 11 सितंबर, 1993 को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर देश की चारों दिशाओं से शुरू हुई। आडवाणी ने मैसूर से यात्रा का नेतृत्व किया था। भैरोसिंह शेखावत ने जम्मू से, मुरली मनोहर जोशी ने पोरबंदर से और कल्याण सिंह ने कलकत्ता से यात्रा शुरू की थी। 14 राज्यों और दो केंद्रशासित क्षेत्रों से यात्रा करते हुए यात्री एक बड़ी रैली में 25 सितंबर को भोपाल में एकत्र हुए। जनादेश यात्रा को जबरदस्त सफलता भी मिली थी।

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