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संसद सत्र में एक दिखेगी 'तीसरी ताकत'

दरवाजे पर दस्तक दे रहे लोकसभा चुनाव ने एक बार फिर गैर राजग-गैर संप्रग दलों को इकट्ठा दिखने पर मजबूर कर दिया है। अलग-अलग राज्यों में सिमटे इन दलों के बीच चुनावी तालमेल तो बहुत सार्थक नहीं है, लेकिन एक-दूसरे के लिए प्रचार प्रसार पर सहमति बनाने की कोशिश हो सकती है। तीसरे मोर्चे के नाम से डरी ये 'तीसरी ताकत' आगामी

By Edited By: Updated: Sun, 02 Feb 2014 07:43 AM (IST)
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नई दिल्ली [जाब्यू]। दरवाजे पर दस्तक दे रहे लोकसभा चुनाव ने एक बार फिर गैर राजग-गैर संप्रग दलों को इकट्ठा दिखने पर मजबूर कर दिया है। अलग-अलग राज्यों में सिमटे इन दलों के बीच चुनावी तालमेल तो बहुत सार्थक नहीं है, लेकिन एक-दूसरे के लिए प्रचार प्रसार पर सहमति बनाने की कोशिश हो सकती है। तीसरे मोर्चे के नाम से डरी ये 'तीसरी ताकत' आगामी संसद सत्र से ही अपने कुनबे की शक्ति दिखाएगी। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि करीब 10 गैर राजग, गैर संप्रग दल आम चुनाव में बेहतर विकल्प मुहैया कराने के लिए साथ आने को तैयार हैं।

कुछ महीने पहले वामदलों की पहल पर दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में जदयू, सपा, अन्नाद्रमुक, जदएस समेत कई दल इकट्ठे हुए थे। मुद्दा था सांप्रदायिकता के खिलाफ अभियान। उस वक्त भी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि चुनावी तालमेल पर न कोई बात हुई है और न ही होगी। चुनाव बाद ही अपनी इकट्ठी ताकत का आकलन किया जाएगा। बहरहाल, माना जा रहा है कि इन दलों के बीच एक वैचारिक समझौता हो सकता है, जिसके तहत हर कोई एक-दूसरे की गुडविल इस्तेमाल कर सकेगा। मसलन पश्चिम बंगाल में नीतीश कुमार वाम के लिए बिहार की जनता के बीच माहौल बनाएंगे, तो बिहार में वामदल नीतीश को समर्थन करेंगे। झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी ओडिशा में बीजद के लिए आदिवासियों को लुभाएंगे, तो बदले में नवीन पटनायक झारखंड में मदद करेंगे।

पढ़ें : भाजपा-कांग्रेस विरोधी पार्टियों को एकजुट करने में लगे नीतीश

इस मोर्चे में शामिल हो रहे राजनीतिक दलों के बीच बड़ी प्रतिस्पर्धा नहीं है। इनकी कोशिश होगी कि चुनाव के बाद भी इनका 100-125 सांसदों का खेमा तैयार हो, जिसे तीसरे विकल्प के रूप में पेश किया जा सके। बहरहाल, खुद यह मोर्चा सफलता को लेकर विश्वस्त नहीं है। लिहाजा, कोई भी रणनीति चुनाव के बाद तय की जाएगी। पांच फरवरी से संसद सत्र शुरू हो रहा है। कोशिश होगी कि हर मुद्दे पर पूरा खेमा एकजुट दिखे। ध्यान रहे कि इससे पहले भी कई बार तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशें हुई, लेकिन हर बार विफल रहीं।

करात ने कहा कि फिलहाल कोई मोर्चा नहीं है और न ही कोई इसकी बात कर रहा है। हम सिर्फ लोगों को बेहतर विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं। इसका स्पष्ट नजारा 5 फरवरी से शुरू हो रहे संसद सत्र में देखने को मिल जाएगा। माकपा नेता एसआर पिल्लई ने भी कहा कि कांग्रेस और भाजपा का विरोध करने वाले गैर-सांप्रदायिक व लोकतांत्रिक दलों को एक मंच पर लाया जाएगा।

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