दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार निरोधी जनलोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिए किसी भी हद तक जाने की चेतावनी दी है। केजरीवाल ने समाचार एजेंसी पीटीआइ के संपादकों के साथ बातचीत के दौरान कहा, भ्रष्टाचार बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैं किसी भी हद तक जाऊंगा। यह पूछे जाने पर क्या वह इस्तीफा भी दे सकते हैं, आम आदमी पार्टी नेता ने कहा कि भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है, जिस पर वह किसी भी हद तक जा सकते हैं।
By Edited By: Updated: Sun, 09 Feb 2014 07:45 AM (IST)
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार निरोधी जनलोकपाल विधेयक को पारित कराने के लिए किसी भी हद तक जाने की चेतावनी दी है। केजरीवाल ने समाचार एजेंसी पीटीआइ के संपादकों के साथ बातचीत के दौरान कहा, भ्रष्टाचार बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है और मैं किसी भी हद तक जाऊंगा। यह पूछे जाने पर क्या वह इस्तीफा भी दे सकते हैं, आम आदमी पार्टी नेता ने कहा कि भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है, जिस पर वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह (इस्तीफा) आपकी व्याख्या है।
केजरीवाल के मुताबिक चूंकि उनकी सरकार ने राष्ट्रमंडल खेल परियोजनाओं में हुए भ्रष्टाचार की जांच कराने का निर्णय किया है इसलिए कांग्रेस ने अपना विरोध और तीखा कर दिया है। सात साल से दिल्ली नगर निगम पर काबिज भाजपा पर भी इस संबंध में आरोप लगे हैं। दिल्ली कैबिनेट ने पिछले हफ्ते चर्चित जनलोकपाल विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है, जिसके दायरे में मुख्यमंत्री से लेकर समूह डी के कर्मचारियों सहित सभी लोकसेवक आते हैं। प्रस्तावित विधेयक में भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने वालों के लिए अधिकतम आजीवन कारावास के दंड का प्रावधान है। आम आदमी पार्टी ने भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए जन लोकपाल विधेयक लाने का विधानसभा चुनाव से पहले जनता से वायदा किया था।
केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस के लोग जानते हैं कि अगर सख्त लोकपाल आ गया तो इन लोगों को परेशानी होगी। नगर निगम पर काबिज भाजपा को भी परेशानी होगी। अगर विधेयक पारित हो जाता है, तो खेलों से संबंधित सारे मामले लोकपाल के पास जाएंगे। इसीलिए कांग्रेस और भाजपा इस विधेयक को पारित कराने से बचना चाह रही हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, हमने गृह मंत्रालय से लिखा है कि वह (2002 के) आदेश को वापस ले, जो दिल्ली सरकार को निर्देशित करता है कि विधानसभा में किसी विधेयक को पारित कराने से पहले मंत्रालय की मंजूरी ली जाए। उनकी सरकार ऐसे असंवैधानिक नियमों को स्वीकार नहीं कर सकती है। वैसे भी वह सिर्फ एक आदेश था, जो संविधान के एकदम खिलाफ है। गृह मंत्रालय का आदेश दिल्ली विधानसभा के कानून बनाने की शक्तियों को भला कैसे कमतर कर सकता है। यह बहुत बहुत गंभीर मसला है। मैंने संविधान की शपथ ली है, गृह मंत्रालय के आदेश का नहीं, मैं संविधान का पालन करूंगा। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्री बनने के बाद जब मैंने आदेश देखा, मैं पूरी तरह हतप्रभ रह गया। वह ऐसा कैसे कर सकते हैं। तब मैंने अपने अधिकारियों से कहा कि मुझे इतिहास दिखाएं।
मेरे पास 13 विधेयकों की सूची है, जिनमें उन्होंने कोई मंजूरी नहीं ली है। केजरीवाल ने शुक्रवार को उप राज्यपाल नजीब जंग से कहा था कि वह कांग्रेस और गृह मंत्रालय के हितों का संरक्षण न करें, जो उनकी सरकार के जन लोकपाल विधेयक को बाधित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, हमने केंद्रीय गृह मंत्री को लिखा है कि वह सन 2002 के उस आदेश को वापस ले, जो दिल्ली सरकार को विधानसभा में किसी विधेयक को मंजूरी देने से पहले मंत्रालय की मंजूरी लेने का निर्देश देता है। कानूनी राय पर दिल्ली सरकार ने दी सफाई
जनलोकपाल पर मची रार के बीच शनिवार को दिल्ली सरकार ने कहा कि उसने विधानसभा के अधिकार को लेकर कानूनी राय ली है। उप राज्यपाल को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहीं भी यह नहीं लिखा है कि उसने जनलोकपाल बिल को लेकर कानूनी राय ली है। पढ़ें:
केजरी को करात ने दिखाया आईना यह पूरा मामला ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स (टीबीआर) दिल्ली एसेंबली 1993 के तहत आता है, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बनाया है और उस पर कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार के पास भेजा है। दिल्ली सरकार का यह स्पष्टीकरण उस चर्चा के बाद आया है जिसमें कहा गया कि जनलोकपाल को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तीन अधिवक्ताओं और एक पूर्व न्यायाधीश से राय ली। सभी चार कानूनविदों ने जनलोकपाल को लेकर दिल्ली सरकार के कदम को सही बताया। दिल्ली सरकार की मुश्किल तब बढ़ी जब उल्लेखित चार कानूनविदों में से दो ने ऐसी कोई राय देने से साफ इन्कार कर दिया। इससे पैदा अजीबोगरीब स्थिति को दूर करने के लिए दिल्ली सरकार ने सफाई दी है।
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