दिल्ली में राजनीतिक घमासान पर जंग की नजर
सूबे के राजनीतिक घमासान को लेकर राजनिवास देखो और इंतजार करो की नीति पर काम कर रहा है। दिल्ली विधानसभा को भंग करने की मांग को लेकर आम आदमी पार्टी [आप] के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल नजीब जंग पर भले जोरदार सियासी हमला बोला हो, लेकिन जंग ने इस पूरे मामले में अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
By Edited By: Updated: Thu, 07 Aug 2014 08:27 AM (IST)
नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। सूबे के राजनीतिक घमासान को लेकर राजनिवास देखो और इंतजार करो की नीति पर काम कर रहा है। दिल्ली विधानसभा को भंग करने की मांग को लेकर आम आदमी पार्टी [आप] के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल नजीब जंग पर भले जोरदार सियासी हमला बोला हो, लेकिन जंग ने इस पूरे मामले में अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
भाजपा की ओर से कहा जा रहा है कि दिल्ली में अल्पमत की सरकार बनाई जा सकती है। उपराज्यपाल चाहें तो ऐसी सरकार बन सकती है। लेकिन ऐसा प्रस्ताव पार्टी ने उपराज्यपाल के समक्ष रखा नहीं है। जाहिर है कि इस पर विचार भी तभी किया जाएगा, जब औपचारिक तौर पर कोई पहल भाजपा करेगी। सनद रहे कि भाजपा लगातार कहती रही है कि वह चुनाव के लिए तैयार है, लेकिन यदि उपराज्यपाल ने उसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया तो वह इस विकल्प पर भी विचार कर सकती है। हालांकि उपराज्यपाल की ओर से उसे इस प्रकार का कोई निमंत्रण मिलना तो दूर, सूबे की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करने तक के लिए पार्टी को औपचारिक तौर पर नहीं बुलाया गया है। असल में इस मामले में फैसला केंद्र सरकार के स्तर पर लिया जाना है। उपराज्यपाल दिल्ली में केंद्र सरकार के ही प्रतिनिधि हैं। उनके फैसले को केंद्र के फैसले से ही जोड़कर देखा जाएगा। उन्होंने दिल्ली के मामले में की जा रही देरी और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मद्देनजर उठाए जा रहे कदमों को लेकर कहा कि वक्त रहते सही निर्णय हो जाएगा। जानकारों की मानें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद केंद्र व सूबे की सरकार पर राजनीतिक अनिश्चितता दूर करने का दबाव बढ़ा है। फैसला लेने में देरी की एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि भाजपा ने दिल्ली में अपनी सरकार के गठन का विकल्प अभी छोड़ा नहीं है। कयास लगाए जा रहे हैं कि संसद का बजट सत्र समाप्त होते ही इस दिशा में निर्णायक फैसला हो सकता है। विधायकों की धड़कनें बढ़ा रही है चुनाव की चर्चा
दिल्ली में नए सिरे से चुनाव कराने की चर्चा विधायकों की धड़कनें बढ़ा रही है। अलबत्ता, जो नेता पिछली बार शिकस्त खा गए अथवा टिकट से वंचित रह गए, उन्हें यह चर्चा जरूर पुरजोर सुकून का एहसास करा रही है। चुनाव पर मोटी रकम खर्च कर विधानसभा पहुंचे विधायकों को यह लग रहा है कि उन्हें फिर से चुनाव में झोंकने के लिए रकम जुटानी होगी। यदि ऐसा कर भी लिया जाए और चुनाव हार गए तो उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। उनकी परेशानी यह है कि चुनाव के आठ महीने बीत जाने के बावजूद वे अपने इलाकों में कोई काम नहीं करा पाए हैं। विधायक निधि पर लगी रोक हट गई है, लेकिन इस राशि से काम के टेंडर जारी कराने में ही तीन-चार महीने लग जाएंगे और जब तक काम शुरू होंगे, तब तक चुनाव सिर पर आ जाएगा। ऐसे में जनता के सामने कहने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी से लेकर साहिब सिंह चौहान तक कह चुके हैं कि दिल्ली में कोई विधायक चुनाव नहीं चाहता। अन्य दलों में भी अंदरखाने कुछ ऐसे ही हालात हैं। यह दीगर बात है कि ये लोग खुलकर बोलने से परहेज कर रहे हैं। ज्यादातर विधायक चाहते हैं कि दिल्ली में सरकार बन जाए। भाजपा के विधायक तो अपने तमाम आला नेताओं के यहां घूम-घूम कर अपनी यह बात भी कह चुके हैं।सियासी गलियारों में भी यह चर्चा है कि जल्दी चुनाव कराना भाजपा के हक में नहीं है। लेकिन बड़ी बात यह है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन गई तो फिर कैसे सरकार बनेगी। हरियाणा में हिंसक हुआ गुरुद्वारा आंदोलन शताब्दी व राजधानी के खानपान में होगा बदलाव